वाराणसी में स्वास्थ्य विभाग हुआ पंगु, इलाज के अभाव में युवक की मौत, शव लेकर भटकती रही मां

टीम भारत दीप |

बीमार जवान बेटे के इलाज के लिए बनारस में  भटकते भटकते मां के आंसू ही मानो सूख चले थे।
बीमार जवान बेटे के इलाज के लिए बनारस में भटकते भटकते मां के आंसू ही मानो सूख चले थे।

पांच बार इलाज के लिए बीएचयू अस्पताल में जाकर लाइन लगाई लेकिन किसी डॉक्टर ने नहीं देखा। सोमवार को तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अपनी मां चंद्रकला सिंह के साथ वह इलाज के लिए बीएचयू आया था। जब वहां डॉक्टरों ने कोरोना की वजह से नहीं देखा तो ककरमत्ता स्थित प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए। वहां भी उसे भर्ती नहीं किया गया।

वाराणसी। प्रदेश में इन दिनों कोरोना महामारी भयंकर तबाही मचा रही है। सरकारी मशीनरी फेल हो गई। कोरोना के संक्रति तो मर ही रहे है, वहीं दूसरी बीमारियों से पीड़ित भी इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे है। सोमवार को ऐसा ही एक मामला सामने आया जहां एक बीमार युवक को उसकी मां इलाज के लिए इस अस्पातल से उस अस्पताल भटकती रही। 

लेकिन इलाज न मिलने के अभाव में युवक की मौत हो गई। इस ​बड़ी विडंबना यह हुई कि बेटे के मृत शव को लेकर महिला कई घंटे तक वाराणसी में भटकती रही, न तो परिजन आग आए और न ही प्रशासनिक अधिकारी।आपकों बता दे कि वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है, लगातार वह यहां की व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाले ही निकल रहे है।   

दरअसल जौनपुर जिले के मडियांहू निवासी विनय सिंह का भतीजा विनीत सिंह मुंबई में काम करता था। बीते दिसंबर माह में वह शादी समारोह में आया तभी से गांव में ही रुक गया था। उस समय उसकी तबीयत खराब होने पर परिवार के लोगों ने जौनपुर में एक डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने किडनी में समस्या बताई। 

युवक के बड़े पिता विनय सिंह ने बताया कि दिसंबर से लगातार पांच बार इलाज के लिए बीएचयू अस्पताल में जाकर लाइन लगाई लेकिन किसी डॉक्टर ने नहीं देखा। सोमवार को तबीयत ज्यादा खराब हुई तो अपनी मां चंद्रकला सिंह के साथ वह इलाज के लिए बीएचयू आया था। जब वहां डॉक्टरों ने कोरोना की वजह से नहीं देखा तो ककरमत्ता स्थित प्राइवेट हॉस्पिटल में ले गए। वहां भी उसे भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद उसकी इलाज के अभाव में मौत हो गई इसके बाद मां कई घंटों तक अपनों के आने इन्तजार में ई रिक्शा में शव लेकर परेशान होती रही है।

किडनी की बीमारी से बीमार जवान बेटे के इलाज के लिए बनारस में  भटकते भटकते मां के आंसू ही मानो सूख चले थे। लेकिन कोरोना के आगे किसी और को न ​देखने की जिद्द ने धरती के भगवान कहे जाने वालों ने अपने पेशे के साथ नाइंसाफी की।

अस्‍पताल में पहली बात तो बेड ही नहीं। दूसरे जगह है भी तो मरीज का आरटीपीसीआर टेस्‍ट रिपोर्ट आने के बाद ही इंट्री मिल रही है। उसपर भी टेस्‍ट रिपोर्ट सप्‍ताह भर बाद तक मिलने तक लोगों की हालत और भी खराब हो जा रही है।  

घर से मां इलाज कराने निकली मां, बेजान बेटे के साथ लौटी

मालूम हो कि विनीत को लंबे वक्त से किडनी की बीमारी थी। मई 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो वो मुंबई का प्राइवेट जॉब छोड़कर मां के पास गांव चला गया। तब से दोनों गांव में ही रहते थे। सोमवार को उसकी हालत बिगड़ी। मां ने लोगों से मदद मांगी और विनीत को कार से बीएचयू ले आईं। मां को वहां की जानकारी तो थी नहीं, इसलिए भटकती रही।

बीएचयू में विनीत को भर्ती नहीं किया गया। थक-हारकर मां उसे ई-रिक्शा से ककरमत्ता के किसी अस्पताल पहुंची। वहां भी इलाज नहीं मिला। इसी दौरान भाई ने रिक्शा में ही दम तोड़ दिया। एक राहगीर सचिन ने महिला की बेबसी देख मदद को आगे। सचिन ने बताया कि  मैंने देखा कि एक बुजुर्ग महिला ई-रिक्शा में बैठी है।

बैग में कुछ खोज रही है। उस महिला के पैरों के पास एक लड़के का शव रखा था। मैंने उनसे बातचीत की तो उन्होंने कहा कि वे परिजनों को फोन लगाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन लग नहीं रहा। मैंने उनके कहने पर कुछ लोगों को फोन लगाया, लेकिन उन परिजनों ने फोन ही काट दिया। आखिरकार मैंने मुंबई में धर्मेंद्र को फोन लगाया। धर्मेंद्र महिला का बडा बेटा है। मां बेटे में बात होने के बाद काफी देर बाद महिला के गांव से कुछ लोग आने को तैयार हुए इसके बाद शव गांव ले जाया जा सका। 


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