आरटीई के 10 सालः कोरोना संकट के बीच स्कूली शिक्षा की उपलब्धि, चुनौतियां व अवसर

टीम भारत दीप |
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उत्तर प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार किये हैं
उत्तर प्रदेश ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार किये हैं

वैश्विक महामारी कोरोना के संकट के बीच देश में शिक्षा का अधिकार कानून आरटीई ने हाल ही में 1 अप्रैल को अपने 10 साल पूरे कर लिए हैं। बुनियादी शिक्षा को फ्री और अनिवार्य बनाने वाला यह कानून भारत देश में किसी नई सुबह से कम नहीं रहा।

वैश्विक महामारी कोरोना के संकट के बीच देश में शिक्षा का अधिकार कानून आरटीई ने हाल ही में 1 अप्रैल को अपने 10 साल पूरे कर लिए हैं। बुनियादी शिक्षा को फ्री और अनिवार्य बनाने वाला यह कानून भारत देश में किसी नई सुबह से कम नहीं रहा। असर 2018 की रिपोर्ट को देखें तो यह कानून देश के 95 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोडने में सफल रहा है। कानून के लागू होने से ही शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बीते 2 सालों ने उत्तर प्रदेश जैसी सबसे बडी आबादी और गुजरात जैसे बडे क्षेत्रफल वाले राज्यों ने शिक्षा की गुणवत्ता में 5 प्रतिशत तक सुधार किया है, बावजूद इसके बच्चों का पढ़ाई के बीच ही स्कूल छोड़ना बड़ी चुनौती है। 
कोरोना संकट के कारण हुए लॉकडाउन ने स्कूली शिक्षा के सामने नई चुनौतियां खड़ी की हैं। बीते एक माह में ऑनलाइन शिक्षा अवसर के रूप में उभर रही है लेकिन उससे गुणवत्ता का लक्ष्य हासिल करने और नामांकन व उपस्थिति को उसी स्तर पर बनाए रखने के लिए दोबारा प्लानिंग की आवश्यकता है जिसमें ऑनलाइन शिक्षा के लिए संसाधन जुटाना भी शामिल होना चाहिए।   

शिक्षा का अधिकार कानून 
सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत सरकार ने 2002 में शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार अनुच्छेद 21क बनाकर इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया। 26 अगस्त 2009 को राष्टपति ने शिक्षा का अधिकार बिल पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद भारत विश्व के उन 135 देशों में शामिल हो गया जहां बुनियादी शिक्षा एक मूल अधिकार है। इस कानून के तहत- 
- घर के नजदीक स्कूल में 6-14 साल के बच्चों के लिए बुनियादी शिक्षा की फ्री और अनिवार्य व्यवस्था है।
- आउट ऑफ स्कूल बच्चों को उनकी आयु के अनुसार कक्षा में प्रवेश का प्रावधान है।
- शिक्षा से जुड़े प्रशासनिक तंत्र की जिम्मेदारियों का निर्धारण है जिसमें मुख्य रूप से वित्तीय जिम्मेदारियां शामिल हैं।
- स्कूल में छात्रों के अनुपात में शिक्षक, विद्यालय भवन और आवश्यक संसाधनों की भी बात की गई है।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए योग्य शिक्षकों की तैनाती व चुनाव, जनगणना, आपदा राहत जैसे कार्याें को छोड़कर गैर शैक्षणिक कार्याें में शिक्षकों की तैनाती पर प्रतिबंध है।
- विद्यालय में बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना पर रोक है।
- इसके अलावा बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए संविधान की भावनाओं के अनुरूप पाठ्यक्रम निर्माण की बात की गई है।


उपलब्धि
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े एक एनजीओ की सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता रिद्धिमा गर्ग बताती हैं कि बीते दस साल में आरटीई कानून की उपलब्धियों को देखें तो यह बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में सफल रहा है। असर 2018 सर्वे की रिपोर्ट भी कहती है कि-
- वर्ष 2007 से 2018 के बीच स्कूलों में नामांकन 95 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
- 2018 में पहली बार गैर नामांकित बच्चों का प्रतिशत 3 प्रतिशत से नीचे रहा है।
- 2006 में स्कूल न जाने वाली लड़कियों का जो प्रतिशत 10 था अब 4.1 है।
हालांकि रिद्धिमा कहती हैं यह उस लक्ष्य का बहुत छोटा सा भाग है जो यह कानून निर्धारित करता है।  आरटीई का लक्ष्य बच्चों में बुनियादी शिक्षा की समझ पैदा करना है जिससे हम अभी काफी दूर हैं।


उत्तर प्रदेश में बदली तस्वीर
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश बुनियादी शिक्षा को लेकर सरकार के प्रयासों का असर दिखने लगा है। असर 2018 की रिपोर्ट कहती है कि 2016 के बाद जिन तीन राज्यों में प्राइवेट स्कूलों में नामांकन दर घटी है उनमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है। अन्य राज्य राजस्थान व केरल हैं। पढ़ाई के स्तर की बात करें तो कक्षा तीन और पांच में उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 2016 के बाद 5 प्रतिशत का सुधार हुआ है। कक्षा आठ में गणित विषय के लिए यह प्रतिशत 7 है। हालांकि असर की रिपोर्ट कक्षा आठ में बहुत ज्यादा सुधार की बात नहीं करती है लेकिन इससे यह उम्मीद तो की जा सकती है कि हवा बदल रही है। 


चुनौतियां
रिद्धिमा आने वाले समय में आरटीई के लिए सबसे बड़ी चुनौती शैक्षणिक गुणवत्ता को बताती हैं क्योंकि इसी के द्वारा पढ़ाई के बीच स्कूल छोड़ने की दर को कम किया जा सकता है। असर 2019 की प्री स्कूल रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि कक्षा 1 में केवल 16 प्रतिशत बच्चे ही निर्धारित स्तर पर पढ़ पाते हैं। 40 प्रतिशत बच्चे अक्षर भी पहचान नहीं पाते हैं। निजी स्कूल में कक्षा 1 के जहां 41.5 प्रतिशत बच्चे शब्दों को पढ़ सकते हैं वहीं सरकारी स्कूल में यह प्रतिशत 19 प्रतिशत है। इतना ही अंतर गणित में सरल जोड़ को लेकर भी है। सबसे बड़ी चुनौती कोरोना संकट के बाद खड़ी हो गई है जहां ऑनलाइन शिक्षा ही भविष्य जान पड़ता है। हालांकि सभी बच्चे अभी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हैं। यह अभिभावकों पर भी दोहरा भार डालती है। भारत रत्न प्रो. सीएनआर राव भी ऑनलाइन शिक्षण को सही नहीं बताते हैं। उनका कहना है कि बेहतर शिक्षा के लिए मेल-मिलाप जरूरी है।


अवसर
कोरोना संकट के बाद शिक्षा को लेकर सरकार की नीतियों में बदलाव जरूरी है। अब पूर्व निर्धारित तरीकों से लर्निंग आउटकम के लक्ष्यों को नहीं पाया जा सकता। देश भर में 24 मार्च से स्कूल और कालेज बंद हैं और आनलाइन माध्यमों से स्कूल और छात्र संपर्क में हैं। सरकार इसे अवसर के तौर पर लेकर स्कूलों में संसाधन की पूर्ति की जा सकती है साथ ही शिक्षकों की जवाबदेही और उपस्थिति के सही आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं। 
बुनियादी शिक्षा में सुधार और गुणवत्ता की प्राप्ति के लिए राष्ट्र्ीय शिक्षा नीति 2019 में प्री स्कूल से 12वीं तक शिक्षा को अनिवार्य बनाने की बात की गई है। साथ ही आरटीई 2009 का विस्तार करते हुए इसमें 3-18 वर्ष के बालक-बालिकाओं को शामिल करने का प्रावधान है। केंद्रीय बजट 2018-19 में समग्र शिक्षा अभियान की बात की गई है जिसमें प्री स्कूल से 12वीं तक शिक्षा के साथ सबसे ज्यादा जोर लर्निंग आउटकम पर है। शिक्षा के लिए विकास के लक्ष्यों में वर्ष 2030 तक मुफ्त शिक्षा के साथ लर्निंग आउटकम भी शामिल है। उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा के प्रत्येक विद्यालय को एक स्मार्ट टीवी उपलब्ध कराने की योजना है और भविष्य में शिक्षकों के सभी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी दीक्षा एप के माध्यम से ही कराने पर विचार चल रहा है।  
 


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