सरकारी Vs प्राइवेटः किस्सा बीएसएनएल की सिम का, एक सरकारी अफसर के 'सच्चे बोल'
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![हम सरकारी संस्थान हैं।](https://www.bharatdeep.com/images/2021/02/09/story-of-a-government-employee-difference-between-psu-and-private-enterprises/60225141f3011.jpeg)
चूंकि यह सिम सीयूजी प्लान के लिए थीं। इसलिए मैंने अपनी ओर से एक आईडी देने की हामी भर दी। हम खुशी-खुशी दफ्तर आए और एसडीओ साहब को विजयी मुस्कान के साथ सारी बात बताई।
देश में बहस सरकारी संस्थानों को प्राइवेट बनाने की चल रही है। सरकार इनका कारण पीएसयू के फायदे में न होने को बता रही है लेकिन क्या वाकई सरकारी क्षेत्र की कंपनियां फायदे के लिए काम करती हैं। आखिर क्यों भारी भरकम कर्मियों वाली कंपनियां घाटे में हैं।
इस बात पर हम विचार कर रही रहे थे कि एक पाठक का पत्र हमें मिला। पाठक ने सरकारी क्षेत्र से जुड़े अपने एक अफसर की बात पत्र में साझा की और अपने अनुभव हमें बताए। हम उनका पत्र आपके बीच रख रहे हैं ताकि आप भी प्राइवेट और सरकारी के अंतर को एक और नजरिए से देख सकें-
संपादक महोदय,
बात आज से करीब 7 साल पुरानी है। मैं अपने बीटेक के तीसरे साल में इंडस्ट्यिल ट्रेनिंग के लिए भारत संचार निगम लिमिटेड के कार्यालय में तैनात था। यहां हमारी टैक्निकल ट्रेनिंग के बाद कुछ दिन के लिए मार्केटिंग डिवीजन में भेज दिया गया।
मार्केटिंग डिवीजन का काम देख रहे एसडीओ साहब ने हम चार-पांच साथियों को बीएसएनल की सिम के एक सीयूजी प्लान को बेचने की जिम्मेदारी दी। इसके लिए हम कई जगह संपर्क किया और करीब 15 दिन की मशक्कत के बाद हम एक स्कूल संचालक को सिम खरीदने के लिए राजी कर पाए।
स्कूल संचालक ने एक शर्त रखी कि हम सिम खरीद लेंगे लेकिन उसके लिए आईडी एक ही देंगे। चूंकि यह सिम सीयूजी प्लान के लिए थीं। इसलिए मैंने अपनी ओर से एक आईडी देने की हामी भर दी। हम खुशी-खुशी दफ्तर आए और एसडीओ साहब को विजयी मुस्कान के साथ सारी बात बताई।
हमारी बात सुनते ही एसडीओ साहब ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे हर सिम के साथ अलग आईडी चाहिए, वरना हम सिम नहीं देंगे। फिर चाहे सिम बिकें या न बिकें। हमने यह बात स्कूल संचालक को बताई, तो उसने सिम खरीदने से मना कर दिया।
हमें गुस्सा भी आया और निराशा भी हुई लेकिन एसडीओ साहब अपनी बात से नहीं डिगे। मैंने कहा भी कि सरकार प्राइवेट वाले तो ऐसे ही दे देते हैं आप क्यों नहीं। एसडीओ साहब ने उस दिन तो कुछ नहीं कहा लेकिन जब हमारी ट्रेनिंग का अंतिम दिन था तो हम उनसे मिलने गए। तब उन्होंने कहा कि देखो हम सरकारी संस्थान हैं।
हमारा उद्देश्य लाभ कमाना नहीं, जनता तक सेवाएं पहुंचाना है। इसलिए हमें नियमों से समझौता नहीं करना चाहिए। आप सुदूर पहाड़ों पर या दुर्गम स्थानों पर चलें जाएं जहां कोई सेवा नहीं मिलेगी वहां आपको बीएसएनल के टावर जरूर मिलेंगे।
एसडीओ साहब की बात मेरे मन में इस प्रकार बैठ गई कि फिर कभी किसी सरकारी संस्थान के लिए मेरे मन में दूसरा विचार नहीं आया। आज जब प्राइवेट और सरकारी पर बहस हो रही है तो सोचा यह अनुभव सभी के साथ साझा करूं।
आपके जरिए बात सरकार तक भी पहुंचे कि आखिर वे लाभ के लिए कंपनी को सरकारी से प्राइवेट तो कर देंगे लेकिन वह सेवा का भाव कहां से लाएंगे। जहां लाभ है, वहां लालच हो सकता है, सेवा नहीं।
आपका एक पाठक