आसान नहीं है एक बैंककर्मी का हड़ताल पर जाना, दो दिन बाद फिर से लौटेंगे काम पर

संपादक |
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हमें बताया गया है कि कोई बैंकर यूं ही हड़ताल पर नहीं जाता।
हमें बताया गया है कि कोई बैंकर यूं ही हड़ताल पर नहीं जाता।

हड़ताल को देखा भी इस रूप में जाता है कि इससे सरकार का कामकाज प्रभावित होगा यानी रोजमर्रा में उसे घाटा होगा और उसका ध्यान हड़तालियों के मुद्दे पर जाएगा। शायद बैंक ही एक ऐसा सेक्टर है जिसमें हड़ताल पर जाने से सरकार के अलावा बैंकर्स भी घाटा उठाते हैं।

देश में बैंकों की हड़ताल में प्रमुख मुद्दे घाटे की गिनती में गुम हो जाते हैं। भारत में ट्रेंड रहा है कि बैंकों की हड़ताल का आकलन वित्तीय कारोबार में हुए घाटे के रूप में किया जाता है। अखबारों की हेडलाइन में अक्सर आप यही पढ़ते होंगे कि बैंकों की हड़ताल 10 हजार करोड़ का लेनदेन प्रभावित। 

हेडलाइन में वे मुद्दे कभी नहीं रहते जिनके लिए बैंककर्मी हड़ताल करते हैं। हमारी टीम जब सोशल मीडिया पर बैंककर्मियों के पोस्ट पढ़ रही थी तो हमारा ध्यान उनकी मांगों के अलावा हड़ताल से उन्हें होने वाले नुकसान पर गया। एक लोकतांत्रिक देश में कोई भी नागरिक हड़ताल अपने हक की आवाज उठाने के लिए करता है। 

हड़ताल को देखा भी इस रूप में जाता है कि इससे सरकार का कामकाज प्रभावित होगा यानी रोजमर्रा में उसे घाटा होगा और उसका ध्यान हड़तालियों के मुद्दे पर जाएगा। शायद बैंक ही एक ऐसा सेक्टर है जिसमें हड़ताल पर जाने से सरकार के अलावा बैंकर्स भी घाटा उठाते हैं। 

आप सोच रहे होंगे कैसे, लेकिन ये सच है। देश किसी भी सरकारी विभाग के कर्मचारी जब हड़ताल पर जाते हैं तो आपने उनका उस दिन का वेतन कटने की बात नहीं सुनी होगी लेकिन बैंककर्मी जिस दिन हड़ताल पर रहें तो उन्हें उस दिन का वेतन नहीं मिलता है। 

इतना ही नहीं हमें बताया गया है कि कोई बैंकर यूं ही हड़ताल पर नहीं जाता। पहले बैंक यूनियन बैंकों के मैनेजमेंट करीब 15 दिन का नोटिस देती हैं। उसके बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं होती तो बैंककर्मी अपनी यूनियन के आह्वान पर हड़ताल पर जाते हैं। 

यूं तो शांतिपूर्ण प्रदर्शन भारत में हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। बैंककर्मियों के किसी प्रदर्शन को देश ने हिंसक रूप में नहीं देखा है, ऐसे में हड़ताल के लिए उनका वेतन कटना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बारे में जब हमने कुछ बैंककर्मियों से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारा सिस्टम ही ऐसा है। 

वेतन कटने को लेकर कई तकनीकी कारण भी सामने आए। जैसे कि बैंकों में होने वाले कामकाज का दिनभर का हिसाब रखा जाता है। चूंकि कार्य रूपयों के लेनदेन से जुड़ा है इसलिए बैंकों के रोजाना के काम पर आरबीआई की भी नजर रहती है। यही कारण है कि काम न होने को नो वर्क नो पे के आधार पर ट्रीट किया जाता है। अन्य विभागों में ऐसा नहीं है। 

दूसरा अन्य विभाग के लोग छुट्टी लेकर हड़ताल पर चले जाते हैं लेकिन बैंक में यह भी संभव नहीं है। अब जबकि हम बैंक की हड़ताल को 30 हजार करोड़ के घाटे से मापते हैं तो उस 30 हजार करोड़ में से बैंककर्मियों को न मिलने वाली सैलरी को माइनस क्यों नहीं करते हैं। 

साधारण गणित में समझें तो यूएफबीयू के अनुसार करीब 10 लाख बैंककर्मी हड़ताल पर थे। यानी उन बैंककर्मियों का औसत वेतन एक दिन में 2000 रूपये भी है तो इसके हिसाब से सरकार को दो दिन में करीब 4 अरब रूपये का फायदा भी हुआ। चूंकि यह रूपया वेतन के रूप में नहीं देना पड़ा। 

इस मामले में सबसे बड़ा रोल बैंक यूनियनों का भी है। जब संविधान हमें शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार देती है तो यूनियन इस मांग को भी उठा ही सकती हैं कि हड़ताल के दिन कम से कम वेतन न कटे। इस मामले में देश की अन्य यूनियन बेहतर मालूम होती हैं। 

खैर, आपके मतलब की बात यह है कि बुधवार से बैंक फिर खुल रही हैं। आप अपने खाते का हिसाब कल से चेक कर सकते हैं, पैसा जमा, चेक, डीडी, सारी सुविधाएं कल से खुली हैं।  


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