महंगाई और मानसून की मार से आम आदमी परेशान, इसलिए घटा सोने में निवेश के प्रति रूझान

टीम भारत दीप |

कोविड-19 की तीसरी लहर नहीं आती, तो देश में सोने की मांग तेजी से बढ़ सकती है।
कोविड-19 की तीसरी लहर नहीं आती, तो देश में सोने की मांग तेजी से बढ़ सकती है।

घरेलू बचत पर महंगाई दर से भी कम ब्याज, खेती-किसानी से जुड़े श्रमिकों को कम भुगतान की वजह से देश में सोने की चमक फीकी पड़ सकती है। विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि आय में वृद्धि सोने की मांग बढ़ने का सबसे बड़ा कारक है। 

नई दिल्ली। तेजी से बढ़ रही महंगाई और मौसम की मार की वजह से किसानों को इस बार फसल काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह से देश की अर्थव्यस्था पर पड़ सकता है।

किसानों के साथ ही आम लोगों के निवेश का सबसे सुलभ माध्यम सोना होता है। लेकिन पिछले दो सालों से पहले कोरोना ने रूलाया अब महंगाई और मौसम ने लोगों को परेशान कर दिया है। ऐसे में लोग अब सबसे पहले अपनी मूलभूत जरूरतों को पूरा करेंगे, इसके बाद सोने में निवेश के विषय में सोचेंगे। 

इसी को लेकर मंगलवार को डब्ल्यूजीसी ने  एक रिपोर्ट जारी की है इस रिपोर्ट में, 2021-22 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में सोने का आयात पिछले साल की तुलना में 252 फीसदी बढ़कर 24 अरब डॉलर पहुंच गया है। लेकिन इस बार भारतीयों की मौजूदा घरेलू बचत उनकी पूर्व क्षमता से काफी कम हो रही है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इससे सोने में उनका निवेश घट सकता है।

महंगाई ने निकाला दम

घरेलू बचत पर महंगाई दर से भी कम ब्याज, खेती-किसानी से जुड़े श्रमिकों को कम भुगतान की वजह से देश में सोने की चमक फीकी पड़ सकती है। विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि आय में वृद्धि सोने की मांग बढ़ने का सबसे बड़ा कारक है। 

30 साल का किया विश्लेषण

डब्ल्यूसीजी ने इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 1990 से 2020 तक के बाजार और मांग का विश्लेषण कर अपनी तरह की पहली रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बताया है कि अगर भारतीयों की कमाई और बचत में इजाफा होता है और कोविड-19 की तीसरी लहर नहीं आती, तो देश में सोने की मांग तेजी से बढ़ सकती है।

2021-22 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में सोने का आयात पिछले साल की तुलना में 252 फीसदी बढ़कर 24 अरब डॉलर पहुंच गया है। गर भारतीयों की मौजूदा घरेलू बचत उनकी पूर्व क्षमता से काफी कम हो रही है।

यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इससे सोने में उनका निवेश घट सकता है। इसके अलावा अब ज्यादातर लोगों की पहुंच बैंकों व अन्य वित्तीय उत्पादों तक हो रही है। यह निवेशकों को अपना पैसा अन्य बचत स्रोत में लगाने का विकल्प देता है, जो सोने की चमक फीकी कर सकता है। 

दिसंबर तक तेजी की उम्मीद 

डब्ल्यूजीसी के सीईओ पीआर सोमासुंदरम का कहना है कि बचत पर दबाव के बावजूद अक्तूबर-दिसंबर के त्योहारी सीजन में हमें तेज बिक्री की उम्मीद है। भारत अब महामारी से उबर रहा है और यह सराफा कारोबारियों के लिए स्वर्णिम अवसर है।

लिहाजा हमें निश्चित तौर पर बिक्री बढ़ती हुई दिख रही, लेकिन छोटे खरीदारों के तंग हाथ बाजार का रंग फीका कर सकते हैं। महामारी ने छोटे-मझोले उद्यमों व असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसका खामियाजा भारतीय स्वर्ण बाजार को भी उठाना पड़ सकता है।

चार तरह से प्रभावित होता है सोने का बाजार

सरकारी शुल्क : सोने पर आयात शुल्क व अन्य करों से लंबी अवधि में सोने की खपत पर असर पड़ता है। हालांकि, यह इस पर तय होता है कि सोने का इस्तेमाल आभूषण बनाने में होगा या सिक्के अथवा ईंट बनाने में। 2012 से सोने पर ज्यादा आयात शुल्क की वजह से मांग में सालाना 1.2 फीसदी की दर से कमी आई।

महंगाई : भारतीय निवेशक सोने को हेज फंड की तरह इस्तेमाल करते हैं और बढ़ती महंगाई के बीच सोने में पैसे लगाना बेहतर समझते हैं। यही कारण है कि महंगाई का सोने की खरीद पर असर पड़ता है।

मानसून : बेहतर बारिश से सोने की घरेलू खपत में भी इजाफा होता है, क्योंकि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने की उम्मीद पैदा होती है। अगर बारिश में एक फीसदी इजाफा हुआ, तो सोने की मांग 0.2 फीसदी बढ़ जाएगी,लेकिन इस बार बारिश ऐसे समय में हुई है कि उससे किसानों को नुकसान ही हुआ है। 

शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं में अंतर

ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं के लिए स्वर्ण आभूषण ज्यादा मायने रखते हैं। यह उनके लिए निवेश के साथ-साथ रीति-रिवाज और संस्कृति से भी जुड़ा होता है।  शहरी क्षेत्र के निवेशक स्वर्ण आभूषणों की तुलना में ईंट और सिक्के को ज्यादा तरजीह देते हैं।

उनका मकसद टैक्स व महंगाई से निपटना रहता है। लंबी अवधि में देखें तो स्वर्ण आभूषणों की मांग ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन हाल-फिलहाल में निवेशकों का ज्यादा रुझान सोने की ईंट और सिक्कों की तरफ है। 

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