इस समुदाय के लिए मृत्यु से बुरा कुछ भी नहीं, घर तक देते हैं तोड़

टीम भारत दीप |
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बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहती है।
बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहती है।

उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी बैगा समुदाय के लोग रहते हैं। इस समुदाय की अन्य शाखाएं बिझवार, नारोटिया, भारोटियानाहर, रायभैना और कधभैना के नाम से भी जानी जाती हैं, उनका मानना है कि जगह बदलने से उनके परिवार पर आया संकट दूर हो जाता है।

परंपरा डेस्क। हमारा देश विभिन्नताओं वाला देश है। यहां एक कहावत है कोस- कोस पर पानी बदले पांच कोस पर बानी। इसी तरह हर राज्य हर समुदाय की अपनी एक अलग प्रथा और परंपरा होती है।

हर समाज अपनी प्रथा और परपरा के हिसाब से अपना जीवन यापन करना है। कुछ परंपराएं समय के साथ बदलती रहती है, कुछ समय के साथ नहीं बदल पाती है तो वह परंपरा से कुप्रथा के रूप में बदल जात है।

ऐसी ही एक प्रथा बैगा जाति के आदिवासी समुदाय में यहां परिवार के किसी सदस्य की मौत के बाद परिवार वाले इसे अपशकुन मानकर नए आाशियाने की तलाश करते हुए पुराने घर को तोड़ देते है।

मृत्यु को अपशकुन मानते है बैगा समुदाय के लोग

बैगा समुदाय के लोग मृत्यु को अपशकुन मानते है, इसलिए जब किसी सदस्य की मौत हो जाती है तो पूरा परिवार अपने पुराने घर को तोड़कर नया घर बनाता है। उनका मानना है कि जगह बदलने से उनके परिवार पर आया संकट दूर हो जाता है।

उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी बैगा समुदाय के लोग रहते हैं। इस समुदाय की अन्य शाखाएं बिझवार, नारोटिया, भारोटियानाहर, रायभैना और कधभैना के नाम से भी जानी जाती हैं।

बैग समुदाय की खासियत

छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले बैगा जनजाति दूसरी जनजातियों और समुदाय के लोगों से ज्यादा मिलना-जुलना पसंद नहीं करते हैं। ये जनजाति अलग-थलग ही रहना पसंद करती है। ये समाज अपनी अनोखी परंपराओं के कारण जाना जाता है।

बैगा नाम की यह जनजाति नई जगह और नए घर में एक बार फिर से अपनी दुनिया बसाते हैं और नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करते हैं। बैगा जनजाति मुख्य रूप से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में रहती है।

देवता नाराज होने का डर

बैगाओं में यह  मान्यता है कि परिवार के किसी भी व्यक्ति की मौत होने के पीछे कुल देवता का नाराज होना है। आगे जाकर कुल देवता की नाराजगी परिवार के किसी दूसरे सदस्य को न झेलना पड़े, इसलिए यह जनजाति पुराने मकान में रहना छोड़कर दूसरा ठिकाना तलाशती है।

दक्षिण बस्तर के कटेकल्याण क्षेत्र के अलावा पखनार, बास्तानार, अलनार, छिंदबहार, तथा चंद्रगिरी आदि इलाकों में रहने वाले आदिवासियों में यह अजीबो-गरीब परंपरा कई सालों से चली आ रही हैं।


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