धड़ीचा प्रथा: आज भी यहां एक साल के लिए किराए पर मिलती है घरवाली

टीम भारत दीप |
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धड़ीचा प्रथा के तहत बीबी एक साल के लिए  किराये पर ले जाते हैं।
धड़ीचा प्रथा के तहत बीबी एक साल के लिए किराये पर ले जाते हैं।

मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिला में आज भी बहू -बीबी और पत्नी का किराया पर बकायदा व्यवसाय होता है। दूर -दूर से खरीदार आते हैं, अपनी हैसियत के हिसाब से एक साल के लिए पत्नी ले जाते हैं और समय पूरा होने पर वापस कर जाते हैं।

मध्यप्रदेश। एक तरफ सरकार महिला और पुरुष को बराबरी का दर्जा दे  रही  है, वही मध्य प्रदेश के शिवपुरी में आज भी महिलाओ की भेड़-बकरियों की तरह बोली लगाई जाती है।

उनका बकायदा स्टाम्प पेपर पर सौदा होता है। जी हां यह सुनने में जितना अजीब है, उतना ही सच है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिला में आज भी बहू -बीबी और पत्नी का किराए पर बकायदा व्यवसाय होता है।

दूर -दूर से खरीदार आते हैं और अपनी हैसियत के हिसाब से एक साल के लिए पत्नी किराए पर ले जाते है और समय पूरा होने पर वापस कर जाते हैं। यहां किराए पर देने के लिए स्टाम्प पर लिखा- पढ़ी करने बाद ही महिलाओं को सौंपा जाता है, स्टाम्प पर लिखा पढ़ी से पहले भाव-ताव होता है।

इसके बाद कितने दिन के लिए रखा जायेगा यह भी तय होता है।  पैसा लेकर खरीदार को इस हिदायत के साथ सौंप दी जाती है कि महिला को समय पूरा होने पारा सही सलामत लौटा दें अन्यथा जुर्माना देना होगा।

दूर-दूर से आते हैं खरीदार 

कोई बीबी की कमी पूरा करने के लिए तो कोई माँ की सेवा के लिए दूर-दूर से शिवपुरी पहुंचता है। धड़ीचा प्रथा के तहत बीबी एक  साल के लिए किराए पर ले जाते हैं।

पहले जिले में खुलेआम महिलाओं की बिक्री के लिए मंडी सजती थी, अब प्रशासन  के डर से चोरी छिपे दलालों के माध्यम यह धंधा अब भी जारी है। महिला की उम्र सुंदरता और उम्र के हिसाब से उसका सौदा होता  है।

इस प्रथा में कुंवारी लड़की, किसी की पत्नी या विधवा महिला भी हो सकती है। सौदा पक्का होने के बाद बकायदा महिला की खरीदने वाले से विवाह कराने के बाद विदाई की जाती है, यह सब घर वाले ख़ुशी-ख़ुशी करते हैं।

बढ़ाया भी जा सकता हैं  एग्रीमेंट 

वैसे तो अधिकांश लोग एक साल के लिए लेते हैं, लेकिन यदि कोई महिला को एक साल के बाद भी अपने साथ  रखना चाहता है तो उसे वापस आकर महिला के परिजनों के साथ एग्रीमेंट को स्टाम्प पेपर के माध्यम  से आगे बढ़ाना पड़ता है।

इसके लिए फिर से सौदा होता है, दाम तय किया जाता और फिर कितने दिन के लिए रखना है,  यह भी तय होता है।इसके अलावा महिला से किराए पर ले जाने वाले के व्यवहार के बारे में पता कर फिर भेज दिया जाता है।

बच्चा होने पर आपसी सहमति पर होता हैं फैसला 

सबसे बड़ा सवाल यदि महिला को लगातार कई साल कोई रखता है और महिला गर्भवती हो जाए या किसी बच्चे की मां बन जाए तो बच्चा किस की जिम्मेदारी पर होगा, इस विषय में अभी तो कोई बड़ा विवाद तो नहीं हुआ है।

अधिकांश मामलों में बच्चा मां अपने साथ ले आती है, यदि कोई बच्चे की चाहत में ही महिला को किराए पर लाया है तो वह बच्चे को अपने पास रख सकता  है।

इस मामले में 2015 में एक मामला सुर्ख़ियों में रहा जब एक महिला का लगातार पांच बार सौदा हुआ और महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया था जिसे खरीदने वाले ने अपने पास रखा लिए था।

अभी तक कोई पहल नहीं

शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार विपिन शुक्ला का कहना हैं कि अभी तक इस प्रथा को बंद करने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से कोई सार्थक पहल नहीं हुई है।

एनजीओ ने इस दिशा में थोड़ा बहुत काम किया हैं, लेकिन इस प्रथा को अभी तक कोई बंद नहीं करा पाया है। चोरी छिपे अभी भी इस प्रथा में महिलाओं की खरोद -फरोख्त जारी है।


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