बांबे हाईकोर्ट का एक और फैसलाः आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी बरी

टीम भारत दीप |

एक महिला के शादी के नौ साल बाद आत्महत्या करने का था।
एक महिला के शादी के नौ साल बाद आत्महत्या करने का था।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि पत्नी से पैसे मांगना उत्पीड़न नहीं है। इसे आईपीसी की धारा 498ए के अनुसार उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है। 

मुंबई। बाॅम्बे हाईकोर्ट की न्यायाधीश पुष्पा गनेडीवाल अपने एक और फैसले से मीडिया की सुर्खी बन रही है। पिछले दो तीन फैसलों के बाद आलोचना झेलने वाली न्यायाधीश गतदिवस एक सुनवाई के मामले फैसले के देने के दौरान की गई टिप्पणी पर फिर घिरती नजर आ रही है।

 बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि पत्नी से पैसे मांगना उत्पीड़न नहीं है। इसे आईपीसी की धारा 498ए के अनुसार उत्पीड़न नहीं माना जा सकता है। 

यह मामला एक महिला के शादी के नौ साल बाद आत्महत्या करने का था। इस मामले में उसके पति पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है। शिकायत में कहा गया था कि पति अपनी पत्नी से पैसे मांगता था, नहीं देने पर वह उसे पीटता था।

इस मामले पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाल ने कहा कि पत्नी से पैसा मांगना उत्पीड़न नहीं है। यह एक अस्पष्ट शब्द है, इस पर आईपीसी की धारा 498ए के तहत विचार नहीं किया जा सकता है।  जस्टिस पुष्पा गनेडीवाल ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया।

इन फैसलों से हुई आलोचना 

बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाल इन दिनों अपने फैसले के कारण सुर्खियों में बनी हुई हैं। जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला द्वारा यौन शोषण के मामले में दिए गए वह चार फैसले हैं, जिससे वह चर्चित हुई हैं।

हाल ही में उन्होंने एक 12 साल की नाबालिग बच्ची से छेड़छाड़ के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि नाबालिक बच्ची का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न के दायरे में नहीं आता।

इससे पहले, न्यायाधीश ने अपने एक फैसले को लेकर चर्चा में बनी हुई थीं। पिछले हफ्ते ही उन्होंने एक और यौन शोषण के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि कपड़े के ऊपर से नाबालिग के वक्षस्थल को जबरन छूना यौन शोषण के दायरे में नहीं आता।

उन्होंने कहा कि यौन शोषण तभी माना जाएगा त्वचा से त्वचा का संपर्क होगा। उनके इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले के अमल पर रोक लगा दी थी।


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