यौन शोषण के मामले में विवादित फैसला देना जस्टिस गनेदीवाल को पड़ा भारी

टीम भारत दीप |
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न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गनेदीवाल की सिफारिश की थी, इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया।
न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गनेदीवाल की सिफारिश की थी, इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता।सर्वोच्च न्यायालय ने उनके इस फैसले पर रोक लगा दी है।

नईदिल्ली। उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाल को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बनाने के लिए केंद्र से की गई सिफारिश को वापस ले लिया है।

क्योंकि  यौन शोषण से जुड़े मामलों के आरोपियों को बरी करने के बाद पूरे देश में उनके फैसले को लेकर लोग सवाल करने लगे थे। मालूम हो कि बंबई उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति पुष्पा वी गनेदीवाल को सुप्रीम कोर्ट में स्थायी न्यायधीश बनाने की प्रक्रिया चल रही थी जो रोक दी गई है। 

न्यायमूर्ति गनेदीवाल ने 19 जनवरी को एक सत्र न्यायालय के आदेश को संशोधित किया था। इसमें उन्होंने पॉक्सो अधिनियम के तहत 39 साल के एक व्यक्ति को बरी कर दिया था। व्यक्ति पर 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने का आरोप लगा था।

अदालत ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि उनके बीच त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं बना था।न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके इस फैसले पर रोक लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने बंबई उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गनेदीवाल की सिफारिश की थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया।

दूसरे फैसले में जस्टिस गनेडीवाला ने कहा कि किसी बच्ची का हाथ पकड़ कर आरोपी अपने पैंट का जिप खोलता है तो इससे यौन शोषण नहीं होगा, तीसरे फैसले में जस्टिस गनेडीवाला ने बलात्कार के एक  निचली  अदालत के फैसले को पलट दिया और कहा कि बलात्कार के कोई सबूत नहीं मिले है, इस फैसले को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है।

आपको बतादें कि न्यायमूर्ति गनेदीवाल के त्वचा से त्वचा का संपर्क वाले आदेश के खिलाफ उनकी सार्वजनिक आलोचना शुरू हो गई थी। लोगों का कहना था कि यह यौन उत्पीड़न के मामले में बच्ची के प्रति जज की असंवेदनशीलता दिखाता है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड ने बंद दरवाजों के पीछे गनेदीवाल को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने के खिलाफ अपनी राय रखी थी। दोनों ने फरवरी 2019 में उन्हें बंबई उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाने का भी विरोध किया था।

2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट में अडिशनल जज बनीं थी पुष्पा 

महाराष्ट्र के अमरावती जिले में 1969 में जन्मीं पुष्पा गनेडीवाला ने बी.कॉम एलएलबी और फिर एलएलएम की पढ़ाई की है वो 2007 में डिस्ट्रिक्ट जज नियुक्त हुई थीं,इसके बाद मुंबई सिविल कोर्ट और नागपुर की डस्ट्रिक्ट और फैमिली कोर्ट में भी रहीं।

इसके बाद वह बॉम्बे हाईकोर्ट की रजिस्ट्रार जनरल बनाई गईं,इसके बाद 2019 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में अडिशनल जज का पदभार दिया गया था।


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