गोरखपुर में क्लीनिक पर चला बुलडोज़र तो मलबे पर बैठकर डॉक्टर ने जारी रखा इलाज

टीम भारत दीप |
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बिजली निगम ने व्यावसायिक कनेक्शन दिया था।
बिजली निगम ने व्यावसायिक कनेक्शन दिया था।

डाॅक्टर आरएन सिंह का जुनून ही था कि उन्होंने जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के सात जिलों- गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, संतकबीर नगर में निजी प्रयासों से स्वच्छता और इंसेफेलाइटिस के शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम किया।

गोरखपुर। कोरोना संकट के दौर में जहां आम जन चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं, वहीं गोरखपुर प्रशासन को एक डॉक्टर का क्लीनिक गिराने में भी रहम नहीं आया। वहीं, डॉक्टर का समर्पण कुछ ऐसा कि उन्होंने अपने क्लीनिक के मलबे पर ही मरीजों का उपचार जारी रखा। यह मामला कहीं और नहीं उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर का है। 

यह डाॅक्टर भी कोई सामान्य चिकित्सक नहीं गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में मस्तिष्क ज्वर जापानी इंसेफेलाइटिस के पहले मरीज का इलाज करने वाले डॉ. आरएन सिंह हैं। उनके क्लीनिक को अवैध बताकर बुलडोजर चला दिया गया। अब आईएमए ने डीएम को पत्र लिखकर मामले की जांच की मांग की है। 

डाॅ. आरएन सिंह जाने माने बाल रोग विशेषज्ञ हैं। गोरखपुर के सुमेर सागर क्षेत्र में उनका क्लीनिक है। वह गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग में रेजिडेंट डॉक्टर रह चुके हैं। उन्होंने वर्ष 2002 में एक प्लॉट खरीदा था, जिसकी रजिस्ट्री और खारिज दाखिल राजस्व विभाग की ओर से किया गया था। जिसमें फिलहाल उनका क्लीनिक चलता था। 

जैसा कि आईएमए ने डीएम को पत्र में बताया कि विकास प्राधिकरण ने इस प्लाॅट पर निर्माण की अनुमति दी थी। नगर निगम ने यहां सड़क, नाली आदि सामुदायिक सुविधाओं का निर्माण किया था। हाउस टैक्स भी लिया जा रहा था। बिजली निगम ने व्यावसायिक कनेक्शन दिया था।

वहीं दूसरी ओर प्रशासन का कहना है कि बिल्डिंग अवैध है। डाॅ. आरएन सिंह की ओर से इस मामले में उच्च न्यायालय में वाद भी दाखिल है, जिसकी सुनवाई अगस्त माह में होनी है। इसके बावजूद प्रशासन ने उनकी गैरमौजूदगी में बिल्डिंग को ध्वस्त कर दिया। आईएमए ने बताया कि इस कार्रवाई के लिए उन्हें कोई नोटिस भी नहीं दिया गया था। 

डाॅक्टर साहब भी पीछे हटने वाले नहीं थे, उन्होंने मलबे पर बैठकर ही मरीजों का इलाज शुरू कर दिया। मीडिया में मामला उछलने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन उनके पक्ष में उतर आया और डीएम को पत्र लिखा है। आईएमए ने पत्र में ये भी कहा है कि अगर निर्माण अवैध था, तो यह राजस्व विभाग में अनियमितता एवं भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण है। 

आईएमए के अध्यक्ष डॉ एससी कौशिक और सचिव डॉ राजेश गुप्ता ने बताया कि डॉ आरएन सिंह 45 वर्षों से चिकित्सा सेवा दे रहे हैं। मस्तिष्क ज्वर के खिलाफ उन्होंने बड़ी भूमिका भी निभाई। ऐसे में प्रशासन का उनके खिलाफ यह कार्रवाई उचित नहीं है।

बता दें कि डॉ. आरएन सिंह ने बीआरडी में 1978 में जापानी इंसेफेलाइटिस का पहला केस देखा था। यहां से अपनी रेजिडेंसी पूरी करने के बाद गोरखपुर में निजी प्रैक्टिस शुरू की। डाॅक्टर आरएन सिंह का जुनून ही था कि उन्होंने जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के सात जिलों- गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, देवरिया, संतकबीर नगर में निजी प्रयासों से स्वच्छता और इंसेफेलाइटिस के शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम किया। 

सीएम की प्राथमिकता में है एईएस 
जापानी इंसेफेलाइटिस या एईएस से पूर्वी उत्तर प्रदेश को मुक्त कराना खुद सीएम योगी आदित्यनाथ का सपना रहा है। उन्होंने गोरखपुर में सांसद रहते हुए इसके लिए काफी कार्य किया। ऐसे में इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे चिकित्सक को प्रशासन द्वारा यूं परेशान किया जाना सीएम के सपनों पर पानी फेरने जैसा है।


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