राजकीय हिंसा हिंसा न भवति

संपादक |
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एनकाउंटर वाली जगह को पुलिस ने सील कर दिया है।
एनकाउंटर वाली जगह को पुलिस ने सील कर दिया है।

वह जुर्म और जरायम की दुनिया का शहंशाह बन गया। जेल में रहकर चुनाव लड़ा, जनता के वोट से नेता बना और फिर वो कईयों का गाॅडफादर हो गया।

कानपुर, उत्तर प्रदेश के बिकरू गांव में 8 पुलिसकर्मियों को मारने वाला विकास दुबे आखिर अपने अंजाम तक पहुंच गया। एक हत्यारे, गुंडे का यही अंजाम होना भी चाहिए था। आप भी यही चाहते थे। फिर इस पुलिस कार्रवाई पर सवाल मत उठाइए। 

सवाल उठते तो 2001 से उठते जब उसने थाने में घुसकर पुलिस के सामने एक बड़ी पार्टी के नेता की हत्या कर दी। यह हत्याकांड भी पुलिस के सामने हुआ था। इसके बाद वह जुर्म और जरायम की दुनिया का शहंशाह बन गया। जेल में रहकर चुनाव लड़ा, जनता के वोट से नेता बना और फिर वो कईयों का गाॅडफादर हो गया। अपने करीबियों के लिए वह डाॅन और दुश्मनों के लिए माफिया बना। 

आप यदि इतना चुप रहे हैं तो और चुप रहने में क्या हर्ज है। चुप रहना सभी मर्जाें की दवा है। शुक्रवार की सुबह कानपुर में भौंती के पास जो हुआ, वह विकास के पुराने कर्माें की सजा नहीं थी। यह तो उसके उस खतरनाक कृत्य का परिणाम था, जो कि उसने अपने गांव में आठ पुलिसवालों को मारकर किया था। इसलिए पुलिस ने अपना बदला लिया है, आपका नहीं। 

आप बदला लेते तो उसे राजनीति की गद्दी से उतारकर ले सकते थे। उसके खिलाफ खड़े होकर ले सकते थे। हकीकत है कि तब हम चुप रहे। हमारी यही चुप्पी हर बार समाज में कई विकास दुबे पैदा करती है। अभिनेता अजय देवगन की फिल्म गंगाजल का संवाद है कि- समाज को पुलिस वैसी ही मिलती है, जैसा समाज खुद है। खाकी वर्दी के अंदर का आदमी भी आपके बीच का है, खुदगर्ज और कमजोर। 

ऐसे में उस खुदगर्ज तंत्र ने खुद पर हुए हमले का बदला ले लिया है, क्योंकि उसके पास शक्ति है। कानून ने उसे अधिकार दिए हैं जिसे वह समय आने पर अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सके। आपकी तिलमिलाहट बस इसलिए है क्योंकि आप विकास को सजा नहीं दे पाए। आपका बदला अभी पूरा नहीं हुआ है। बस इसी खिसियाहट में आप जले जा रहे हैं। कल भी पुलिस पर सवाल उठा रहे थे, आज भी उठा रहे हैं। 

सवाल उठाने की यह भूख ऐसे खत्म नहीं होगी। सोशल मीडिया पर एक पक्ष कह रहा है कि विकास से पूछताछ में कई नाम सामने आते, तो किसका नाम जानना चाहते हैं आप। या किसका नाम आपको नहीं पता है। विकास के संबंध हर पार्टी से थे, ये जगजाहिर है। 

ऐसे में उसके आकाओं का भविष्य आपके हाथ में है। लोकतंत्र में यदि सरकार का हथियार पुलिस है तो जनता का हथियार वोट है। अपने इस गुस्से को ईवीएम तक जाने तक बचाकर रखिए। 

यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो वाकई विकास दुबे से बदला ले पायेंगे। आप इसी तरह जातिवादी, सांप्रदायिक बनकर चुप रहेंगे तो फिर से यह तंत्र विकास दुबे जैसे अपराधियों की गोदी में खेलेगा और जब भी विकास दुबे जैसे अपराधी राज्य के लिए चुनौती बनेंगे, राज्य इसी प्रकार उनसे बदला लेगा क्योंकि भारतेंदु हरिश्चंद के ‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति‘ की तरह आज के परिप्रेक्ष्य में ‘राजकीय हिंसा हिंसा न भवति‘ ही सार्थक है। क्योंकि, सरकार को सब माफ है।


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