फीस माफी की मांग करने आए अभिभावकों से सेंट मैरी स्कूल के फादर ने कह दिया ये

टीम भारत दीप |

अभिभावक फीस माफी की मांग लेकर पहुंचे थे।
अभिभावक फीस माफी की मांग लेकर पहुंचे थे।

लोगों की सहूलियत के लिए प्रदेश सरकार ने केवल एक माह की फीस लेने का निर्देश दिया है। इसके बाद भी अभिभावकों का तर्क है कि जब लाॅकडाउन के दौरान स्कूल की छुट्टियां थीं तो उस दौरान की फीस हम क्यों दें।

इटावा। देश भर में कोराना महामारी के कारण हुए लाॅकडाउन के बाद इस सबसे ज्यादा असर स्कूल शिक्षा पर पड़ा हैं। ऐसे में सरकार की तमाम रियायतों के बीच अभिभावकों ने बच्चों की स्कूल फीस की मांग उठाई। ऐसा ही एक मामला यूपी के इटावा में सामने आया जहां के प्रतिष्ठित काॅन्वेंट स्कूल में अभिभावक फीस माफी की मांग लेकर पहुंचे थे। 

बता दें कि फीस माफी को लेकर सरकार भी एकराय होने से बच रही है। हालांकि लोगों की सहूलियत के लिए प्रदेश सरकार ने केवल एक माह की फीस लेने का निर्देश दिया है। इसके बाद भी अभिभावकों का तर्क है कि जब लाॅकडाउन के दौरान स्कूल की छुट्टियां थीं तो उस दौरान की फीस हम क्यों दें। 

इस पर कई स्कूलों ने आॅनलाइन क्लासेज के द्वारा बच्चों की पढ़ाई शुरू कर दी। इस पर मुद्दा उठा कि जब बच्चा घर पर रहकर पढ़ाई कर रहा है तो केवल ट्यूशन फीस ही ली जाए। ऐसी ही मांग को लेकर इटावा के सेंट मैरी इंटर कालेज में अभिभावक पहुंचे। 

यहां स्कूल के फादर यानी प्रिंसिपल से मुलाकात के बाद अभिभावकों ने लाॅकडाउन के दौरान फीस माफी की मांग की। इस पर फादर ने फीस माफी से इनकार कर दिया। नाम न लिखने की शर्त पर अभिभावकों ने बताया कि सेंट मैरी स्कूल के फादर फीस के मुद्दे को लेकर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि यदि आप फीस नहीं दे सकते तो बच्चे की टीसी ले जाइये।
 
फादर की इस बात से स्कूल के अभिभावकों में रोष है। फीस माफी के इस मुद्दे में असली प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है जिनके रोजगार पर संकट पैदा हुआ है। अभिभावकों की मांग है कि स्कूल प्रशासन बच्चे की पारिवारिक स्थिति के अनुसार निर्णय ले। ये कहां का तर्क है कि फीस नहीं दे सकते तो बच्चे की टीसी ले जाओ। 

इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है। फीस माफी के मुद्दे को लेकर कई स्कूल प्रबंधकों का कहना है कि यदि हम फीस नहीं लेंगे तो नौकरी करने वाले टीचर व अन्य स्टाफ को सैलरी कहां से देंगे। जाहिर है मुद्दा द्विपक्षीय है, ऐसे में इस पर सरकार ही कोई ठोस निर्णय ले तो अभिभावकों को होने वाली परेशानी से बचाया जा सकता है। 


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