आंख के बदले आंखः ईरान में पिता के हत्यारिन मां को बेटी ने लटाकाया फांसी के फंदे पर

टीम भारत दीप |

ईरान की एक महिला मरियम करीमी पर अपने अत्याचारी पति की हत्या करने का आरोप था।
ईरान की एक महिला मरियम करीमी पर अपने अत्याचारी पति की हत्या करने का आरोप था।

आंख के बदले आंख वाले कानून के तहत एक बेटी ने अपने पिता की हत्या के आरोपी मां को खुद फांसी पर लटका दिया। ईरान के कानून के अनुसार, किसी भी दोषी को उसके जुर्म के बराबर की सजा दिए जाने का प्रावधान है।

तेहरान। आपको बता दें कि कुछ मुस्लिम देशों में अपराध के प्रति सख्त साज देने का प्रावधान है। ऐसे ही सख्त सजा का मामला ईरान से सामने आया है। यहां आंख के बदले आंख वाले कानून के तहत एक बेटी ने अपने पिता की हत्या के आरोपी मां को खुद फांसी पर लटका दिया।

ईरान के कानून के अनुसार, किसी भी दोषी को उसके जुर्म के बराबर की सजा दिए जाने का प्रावधान है। एजेंसियों के अनुसार इसी कानून के तहत मरियम करीमी नाम की महिला को उसी की बेटी ने ईरान के उत्तरी इलाके में स्थित राश्ट सेंट्रल जेल में फांसी दी।

मां को माफी देने से किया इनकार

ईरान की एक महिला मरियम करीमी पर अपने अत्याचारी पति की हत्या करने का आरोप था। इस मामले में आरोपित महिला की  बेटी ने कथित तौर पर पिता की हत्या के लिए अपनी मां को माफ करने से इनकार कर दिया।

बेटी ने पिता की मौत के बदले दी जाने वाली हर्जाना राशि को भी ठुकरा दिया। ईरान में ब्लड मनी दिया जाता है। बेटी ने अपनी खुद की मां को अपने हाथों से फांसी पर चढ़ाने का फैसला किया।

ससुर पर दामाद की हत्या का शक

बताया जा रहा है कि मरियम करीमी ने अपने पति की हत्या नहीं की बल्कि उसके पिता इब्राहिम ने यह काम किया। बताया जा रहा है कि इब्राहिम अपनी बेटी को तलाक दिलवाना चाहता था, लेकिन उसका पति इस बात के लिए राजी नहीं था।

 उलटे उसने मरियम के साथ ज्यादा मारपीट शुरू कर दी थी। हालांकि यह अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इब्राहिम को इस मामले में सजा क्यों नहीं मिली। लेकिन 13 मार्च को उसे अपनी बेटी को फांसी के तख्ते पर झूलते हुए देखने पर मजबूर होना पड़ा।

आंख के बदले आंख का कानून

ईरान के कानून के तहत मरियम पर सुनियोजित हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया था,  जिसे किसास के रूप में जाना जाता है। जिसका मतलब आंख के बदले आंख का नियम है।ईरान में सभी पूर्व निर्धारित हत्याओं के लिए एक ही कानून है। 

यहां निर्मम हत्या और साधारण हत्या के बीच कोई फर्क नहीं है। इस वजह से नैतिक रूप से फांसी देना आसान हो जाता है। इस कानून के तहत फांसी के वक्त पीड़ित पक्ष का कोई रिश्तेदार मौजूद होता है और वह फांसी देने में भूमिका निभाता है।

बच्चों को भी होती है फांसी

आपकों बता दें कि ईरान में जो कानून है, उसके तहत 15 साल तक के लड़के-लड़कियों तक को मौत की सजा सुना दी जाती है। कई मामलों में तो उन्हें ही सजा देने का अवसर भी दिया जाता है।

इस कानून के तहत कम उम्र के अपराधियों को भी मौत की सजा दी जा सकती है, क्योंकि शरिया कानून के अनुसार, नौ साल की उम्र के बाद लड़कियों को और 15 साल की उम्र के बाद लड़कों को अपराधी ठहराया जा सकता है।

साल 2019 में कम से कम चार मामलों में बच्चों को फांसी दी गई थी। इसी साल 221 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। हालांकि मरियम की फांसी के बाद से मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले को लेकर आवाज उठानी शुरू कर दी है।

भारत  में आजादी के बाद नहीं दी गई किसी महिला को फांसी

आपकों बता दें कि हमारे देश में आजादी के बाद अब तक किसी भी महिला को फांसी पर नहीं लटाया गया। अब तक कई कई महिलाओं को फांसी की सजा सुनाई गई है, लेकिन किसी न किसी कारण से उनकी फांसी की सजा को को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।

इस समय अमरोहा की रहने वाली अपनों की हत्यारिन शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई है, जिसने सजा माफ करने के लिए राष्ट्रपति से गुहार लगाई है। शबनम को मथुरा जेल में फांसी देने की तैयारी चल रही है। 


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