‘आज किसानों पर भी देखो कितनी विपदा भारी है जबकि देश के भोजन की भी इन पर जिम्मेदारी है‘

टीम भारत दीप |

गाजियाबाद से आए कवि एवं साहित्यकार डा. राजीव पांडेय का सम्मान भी किया गया।
गाजियाबाद से आए कवि एवं साहित्यकार डा. राजीव पांडेय का सम्मान भी किया गया।

यश कुमार मिश्रा ने कहा भौजी यौवन पे आय गओ बसंत, होरी खेलो न। तेरे भईया ने बांधी डोर, देवर मुझे छेड़ो न। श्रीचंद्र वर्मा ‘चन्द्र‘ने कहा होली हंसि-हसि जलती, पनिहारिन पनघाट विन वर्षा भोगो मिले, जो भी निकसै बाट।

मैनपुरी। कवि और साहित्यकारों के सम्मान एवं स्मरण की शृंखला में प्रत्येक माह की 30 तारीख को आयोजित होने वाली काव्यगोष्ठी मैनपुरी के होली पब्लिक स्कूल में आयोजित की गई। 98वें माह की यह काव्यगोष्ठी कवि श्याम सुंदर श्याम के जन्मदिवस मंगलवार को आयोजित हुई। इसमें जिले के प्रमुख कवियों ने भाग लिया।

गोष्ठी की अध्यक्षता कवि राजेंद्र तिवारी ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गाजियाबाद से आए कवि एवं साहित्यकार डा. राजीव पांडेय रहे। डा. राजीव पांडेय का सम्मान भी किया गया। विशिष्ट अतिथि शिवराम सिंह चैहान मैनपुरी रहे। गोष्ठी में बताया गया कि कवि एवं साहित्यकार श्याम जी श्याम का जन्म मार्च 1916 में हुआ था। उनकी कविता राष्ट्रीय चिंताआंे व राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित समाज में व्याप्त विषमता एवं संत्रास के लिए सूरज बनकर सवेरा लाने के लिए युवाओं का आव्हान है। 

इस दौरान श्रीकृष्ण मिश्र ने पढ़ा कि नाय नाय कर भजाति है खुद पकराई देन मुँह गुलाल मिडबयबे अघरन को रसलेन।   धर्मेन्द्र सिंह धरम ने पढ़ा कि आओ आज मिलें सब होली। जाति-पाँत को मार के गोली। सबका जीवन भरें रंगों से, हो ललाट पर चन्दन रोली। 

डा० अनिलमान मिश्र ने कहा अब भरोसे की नहीं होली की मौज भी क्या पता किस हाथ में कैसा गुलाल है। डा० मनोज कुमार सक्सेना ने कहा कल्लू धनियां गिल्लू, पिंकी सब एक दूजे के हम जोली कोई फाग में नाच रहा है, कोई खेले होली।

प्रबोध भदौरिया ने कहा गुटबंदी ना आत है करने की है चाह। कवियन संग बैठन लगो या नेतन की राह। राजकिशोर प्रजापति ‘राज‘ ने कहा आज किसानों पर भी देखो कितनी विपदा भारी है जबकि देश के भोजन की भी इन पर जिम्मेदारी है। 

उपेन्द्र भोला ने कहा मिले जो नैन-नैनों से मने सिगार हो जाए किसी की याद में तड़पे दिले दिलदार हो जाए। इरादा भी नहीं कोई नहीं है चाह भी बाकी, मिले पर भर छुअन तन को भले बलिहार हो जाए। शिवसिंह निसंकोच ने कहा प्रेम के रंग में रंग जाओ तो समझो होली, ब्रह्म बेला में गर जग जाओ तो समझो होली। 

यश कुमार मिश्रा ने कहा भौजी यौवन पे आय गओ बसंत, होरी खेलो न। तेरे भईया ने बांधी डोर, देवर मुझे छेड़ो न। श्रीचंद्र वर्मा ‘चन्द्र‘ने कहा होली हंसि-हसि जलती, पनिहारिन पनघाट विन वर्षा भोगो मिले, जो भी निकसै बाट। बिजेन्द्र सिंह ‘सरल‘ ने कहा कि इतने क्यों गिर जाते लोग अंदर से मन बिलकुल काला, बाहर फेर रहे है, माला हरिशचन्द्र बनते महाफिल में, झठी कसमें खाते लोग। 

डा० अरविन्द कुमार पाल ने कहा बिछे जो राह में कांटे उठाना हमने सीखा है। तुमारे दर्द से सीना लगाना हमने सीखा है। ओउम् प्रकाश वर्मा ‘ओम‘ ने कहा आई फगुना की अजब बहार सखीरी मेरो मनडोल। पर देश गयो है भरतार मदन भारै हिचकोले। 

बासूदेव लालबत्ती ने कहा होली के पीछे क्या है रंगों के नीचे क्या है, होली के पीछे मस्ती, मस्ती में राधा हंसती। काव्यगोष्ठी में श्रीचन्द्र सरगम, नवाब सिंह राजपूत, बालकराम राठौर, शिशुपाल सिंह चैहान, संजय दुबे, रामप्रकाश पांडेय, रघुनन्दन लाल पाठक, राजीव नागर करहल आदि ने भी काव्यपाठ किया। अभय शर्मा, डा. अनुराग दुबे, ज्ञानेंद्र दीक्षित, उमेश चंद्र दुबे, विद्या सागर शर्मा, आयुष सक्सेना, श्रीकृष्ण मौर्य, आदि मौजूद रहे। संचालन संयोजक विनोद माहेश्वरी ने किया व अंत में सभी को धन्यवाद दिया। 


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