आचार्य रामचंद्र शुक्ल को समर्पित रही गोष्ठी, संजय दुबे ने पढ़ा कसैला सबाद हूं, फिर भी आबाद हूं

टीम भारत दीप |

काव्यपाठ करते कवि संजय दुबे।
काव्यपाठ करते कवि संजय दुबे।

साहित्यकार एवं कवि श्रीकृष्ण मिश्र एडवोकेट ने बताया आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के संवर्धन और उत्कर्ष के लिए अपनी समालोचना, मानव-प्रकृति के विभिन्न भागों पर गंभीर निबंधकार के रूप में स्मरण किए जाते हैं।

मैनपुरी। मैनपुरी के होली पब्लिक स्कूल में कवि एवं साहित्यकारों के सम्मान व स्मरण की शृंखला में प्रत्येक माह की 30 तारीख को आयोजित होने वाली काव्य गोष्ठी का 93वां माह का कार्यक्रम संपन्न हुआ। यह गोष्ठी हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के जन्म माह शुक्रवार को आयोजित की गई।  

शुभारंभ के अवसर पर साहित्यकार एवं कवि श्रीकृष्ण मिश्र एडवोकेट ने बताया आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के संवर्धन और उत्कर्ष के लिए अपनी समालोचना, मानव-प्रकृति के विभिन्न भागों पर गंभीर निबंधकार के रूप में स्मरण किए जाते हैं। आपकी प्रसिद्ध कृतियां गोस्वामी तुलसीदास, जायसी ग्रंथावली, चिंतामणि, हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि हैं।

आचार्य शुक्ल का जन्म 4 अक्टूबर 1884 को हुआ और मृत्यु 1941 में हुई थी। काव्यगोष्ठी में आए जनपद के प्रमुख कवियों में से जय प्रकाश मिश्र ने पढ़ा कि कंसमल्ल फोकट में माखन खाए बृज को यह कुकृत्य श्याम को न सुहायो। यश कुमार मिश्रा ने कहा नहीं तुमसे शिकायत हैं यही तकदीर ह,ै मेरी बहुत दस्तूर ऐसे थे निभाने भी नहीं आये। 

प्रशांत भदौरिया ने कहा कि मशवरा है कि तुम्हें डर जरूरी हैं, थोडा ही सही पर मगर जरूरी हैं। धर्मेन्द्र सिंह धरम ने कहा हमारे गांव में आओ तुम्हारा खैर मकदम है। यहां हर ओर खुशहाली यहां हर ओर छमछम हैं। 

ईएम अनम ने कहा आप हरसिंगार की शाखंे हिलाना छोडिए, आपकी बातें बहुत हैं फूल झरने के लिए। डाॅ. अरविंद कुमार पाल ने कहा बदौलत सैनिकों से ही हमारा देश जिंदा है, विविध है धर्म और भाषा, अलग परिवेश जिंदा है। 

डाॅ. मनोज कुमार सक्सेना ने कहा जब जब घना अंधेरा छाये, तब तब जगमग दीप जलाना। इस आंगन से उस आंगन तक खुशियों का मेला लगवाना। ब्रिजेन्द्र सिंह सरल ने कहा उन्नति के पथ पर चलकर हम इतने मद में चूर हो गए, ढेरों भौतिक संशाधन पर मानवता से दूर हो गए। 

डाॅ. संतोष दुबे ने कहा इस निशा में कोई दीप वाले चलो, भर के अंजुरी में जगमग उजाले चलो। वासुदेव मिश्र लालबत्ती ने कहा राजनिति में उडती चिडिया बहुत सुहानी लगती है, वोट-वोट की बोली बोले वो दीवानी लगती हैं। संजय दुबे ने कहा कसैला सबाद हूं फिर भी आबाद हूं। 

संकल्प दुबे ने पढ़ा कि संबधों का मेला लगा रे आज फिर है किसी की बारी, जीत पाई जगत के नियम ने, पर प्रणय कल्पना है हारी। श्री कृष्ण मिश्र ने कहा सूख निचुड रीता हुआ हर्षानन का नीर, नयन नाव लंगर मिलन लटकाति सुधिबन तीर। 

गोष्ठी की अध्यक्षता कवि ओमप्रकाश वर्मा भोगांव ने की और मुख्य अतिथि विद्यासागर शर्मा जी थे। संचालन बदन सिंह मस्ताना ने किया। 

काव्यगोष्ठी में रमेश चन्द्र चक, अभय शर्मा, ज्ञानेन्द्र दीक्षित, डा. अनुराग दुबे, शिवराम सिंह चैहान, उर्मिला पांडेय, अनुभव सक्सेना, बालकराम राठौर एडवोकेट, उमेश दुबे, ज्ञानेश्वर सक्सेना आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में संयोजक विनोद माहेश्वरी ने कवि और आगुंतकों को धन्यवाद दिया।


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