6 माह बाद फिर हुआ कवियों का संगम, कहा- गीत मैं गाने चला हूं, तुम भी स्वर में स्वर मिला दो

टीम भारत दीप |
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कवि तारेश अग्निहोत्री ने काव्यपाठ किया।
कवि तारेश अग्निहोत्री ने काव्यपाठ किया।

प्रत्येक माह की 30 तारीख को मैनपुरी के होली पब्लिक स्कूल में होने वाली इस काव्यगोष्ठी 92वां माह का बीती 30 सितंबर को संपन्न हुआ। गोष्ठी कवि दिनेश चन्द्र सक्सेना निर्भय की स्मृति में बुधवार शाम को आयोजित की गई।

साहित्य डेस्क। कोरोना वायरस ने जहां पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेकर उथल-पुथल मचा दी, वहीं उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में कविता और हिंदी साहित्य को समर्पित आयोजन भी प्रभावित हुआ। आठ साल से अनवरत हिंदी की सेवा में समर्पित सरस्वती साधना परिषद की काव्य गोष्ठी भी 6 माह के ब्रेक के बाद फिर सदानीरा सी बह चली है।  

कवि एवं साहित्यकारों के सम्मान एवं स्मरण की शृंखला में प्रत्येक माह की 30 तारीख को मैनपुरी के होली पब्लिक स्कूल में होने वाली इस काव्यगोष्ठी 92वां माह का बीती 30 सितंबर को संपन्न हुआ। इस बार काव्यगोष्ठी कवि दिनेश चन्द्र सक्सेना निर्भय की स्मृति में बुधवार शाम को आयोजित की गई।  

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे भोगांव के कवि श्रीचन्द्र वर्मा और मुख्य अतिथि श्रीकृष्ण मिश्र एडवोकेट ने बताया कि निर्भय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, कथाकार, शायर, चित्रकार और कलाकार थे। उनकी कविताएं जीवन का स्वर लिए हुए थीं। 

 

भोगांव में जन्मे निर्भय जी शांत रस के कवि और यथार्थवादी थे। उनकी स्मृति में हुई काव्यगोष्ठी में जिले के प्रमुख कवियों ने भाग लिया। कवि श्रीचन्द्र वर्मा (चन्द्र) ने कहा साहित्य जगत में निर्भय जी की स्मृति सदा रहेगी, पावन पुण्य पुनीता गंगा उनकी सदा वहेगी। 

कवि तारेश अग्निहोत्री ने कहा गीत मैं गाने चला हूं, तुम भी स्वर में स्वर मिला दो। एक दीपक में जला दूं, एक दीपक तुम जला दो। 

श्रीचन्द्र सरगम ने कहा मेरे मन के भीतर कोई क्यों झांका करता है, चिंतन के आंगन में आकर मुझसे कुछ मांगा करता है।

वासुदेव मिश्र लालबत्ती ने कहा शिवा ने आंख जब खोली पृथ्वी कांप कर बोली दुनाली धाएं से बोली जगत जन में मची होली। 

प्रशान्त भदौरिया ने कहा तलाक-तलाक कह देने भर से हो जाता है तलाक क्या, जिन्दगी जिन्दगी होती है जनाब जिन्दगी भी कोई मजाक है क्या। 

डाॅ. सन्तोष दुबे ने पढ़ा इस मां को शीश नवाना भारत की गाथा गाना। संकल्प दुबे ने पढ़ा शब्द से अरचन हुआ न भावना घर कर न पाई। 

सतीश दुबे एडवोकेट ने कहा कितने मगरूर हो गए तुम मेरे मनाने से, जुल्म हम सहते रहे तुम पूछ लो जमाने से। 

उर्मिला पाण्डेय ने कहा मर जाएंगे मिट जाएंगे, हम चीन को सबक सिखाएंगे गलवान नही देंगे। 

शिवसिंह चैहान निसंकोच ने कहा धर्म या जाति मजहब पर कलम जब जब चली होगी, कबीरा के हृदय को बात ये तब तब खली होगी। 

काव्यगोष्ठी में शिवदत्त दुबे, प्रज्ञा श्रीवास्तव, बालकराम राठौर एडवोकेट, चन्द्रप्रकाश रहस्य, जयप्रकाश मिश्रा आदि ने भी काव्यपाठ किया। ज्ञानेन्द्र दीक्षित, अभय शर्मा, डा. अनुराग दुबे, विद्यासागर शर्मा, ओमप्रकाश वर्मा, एमएस कमठान, संजीव शर्मा शिवराम सिंह चैहान, आदि उपस्थित थे। संयोजक विनोद माहेश्वरी ने कवि एवं आगंतुकों को धन्यवाद दिया।


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