श्रद्धांजलि सभा: वाम व दलित दृष्टिकोण के बीच की खाई को पाटने में 'पंजम' ने निभाया अहम रोल

टीम भारत दीप |

उपस्थित लोगों ने एक सुर में डॉ.पंजम की याद में एक पुस्तकालय के निर्माण का निर्णय भी लिया।
उपस्थित लोगों ने एक सुर में डॉ.पंजम की याद में एक पुस्तकालय के निर्माण का निर्णय भी लिया।

'एस. के. पंजम' की स्मृति में श्रध्दांजलि सभा का आयोजन गूगल मीट पर किया गया। कार्यक्रम में देश के कई हिस्सों के साहित्यकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता सोशलिस्ट चिंतक रामकिशोर व संचालन वीरेंद्र त्रिपाठी ने किया।अपने संबोधन में वीरेंद्र त्रिपाठी ने डॉ.पंजम के जीवनवृत्त पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि वैचारिक तौर पर उन्होंने ने वाम दृष्टिकोण और दलित दृष्टिकोण के बीच की खाई पाटने के लिए जो योगदान किया।

लखनऊ। जनवादी लेखक,सोशल एक्टविस्ट व अमीनाबाद इंटर कॉलेज के वरिष्ठ प्रवक्ता 'एस. के. पंजम' की स्मृति में श्रध्दांजलि सभा का आयोजन गूगल मीट पर किया गया। कार्यक्रम में देश के कई हिस्सों के साहित्यकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता सोशलिस्ट चिंतक रामकिशोर व संचालन वीरेंद्र त्रिपाठी ने किया।

अपने संबोधन में वीरेंद्र त्रिपाठी ने डॉ.पंजम के जीवनवृत्त पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि वैचारिक तौर पर उन्होंने ने वाम दृष्टिकोण और दलित दृष्टिकोण के बीच की खाई पाटने के लिए जो योगदान किया। कहा कि वह हमारी धरोहर है।

वे सामाजिक कार्यों के सक्रिय सहयोगी होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं के सुख-दुख के भी अनन्य सहयोगी और बेहद संवेदनशील इंसान थे।उनका पूरा जीवन इंसानियत और विवेकशीलता को समर्पित रहा और वे सामाजिक, सांस्कृतिक बदलाव के आंदोलन के एक सचेत योध्दा थे।

कार्यक्रम कों संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियन नेता वालेन्द्र कटियार ने कहा कि डॉ. एस.के. पंजम जिन्हें मैं पिछले लगभग 20 वर्षों से जानता हूं। वह एक बड़े साहित्यकार थे। उनके लेखन का विषय हमेशा ही समाज के दबे-कुचले लोग रहे। वह उनके हित में ही लिखते थे। समाज के दबे कुचले लोगों का उत्थान ही उनके जीवन का मूल मकसद बन गया था।

अपने संबोधन पूर्व प्राचार्य रूप राम गौतम ने डॉ.पंजम के जीवन संघर्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ.पंजम का जन्म 10 अप्रैल 1968 को मऊ जिले के घोसी तहसील अन्तर्गत गांव में हुआ था। बताया गया कि उन्होंने कुल 35 पुस्तकों की रचना की जिनमें से कुछ पुस्तकें अप्रकाशित है।

उनकी प्रमुख कृतियों में काव्य संग्रह अधिकार बैल और आदमी,भीख नहीं अधिकार चाहिए, बेहद प्रसिद्ध रहे। बताया गया कि उन्होंने तीन उपन्यास-दलित दहन,लालगढ़, गदर जारी रहेगा,लिखे तथा एक इतिहास प्रेरक पुस्तक शूद्रों का प्रचीनतम इतिहास भी लिखा। उन्होंने कहा​ कि उनकी आत्मकथा रक्तकमल बहुत चर्चित रही।

कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान ओ.पी. सिन्हा ने कहा कि इतने बड़े लेखक होने के बावजूद डॉ.पंजम  में सच को जानने के लिए एक बहुत ही जबरदस्त ललक मैंने देखी है। उन्होंने कहा कि मैं उनके जीवन की इस खास विशेषता का हमेशा ही कायल रहूंगा। 

कार्यक्रम में सभी उपस्थित लोगों ने एक सुर में डॉ.पंजम की याद में एक पुस्तकालय के निर्माण का निर्णय भी लिया।

इस अवसर पर अजय शर्मा, राजीव रंजन, आर.आर. गौतम, के.के. शुक्ला, के.पी.यादव,शिवाजी राय, पुष्पेंद्र विश्वकर्मा, राम बिलास भारती,ज्योति राय, डा. मंदाकिनी,जय प्रकाश, जय प्रकाश मौर्य,बुध्द प्रकाश, हरिकिशन पटेल, संजय मौर्या सहित अन्य लोग शामिल रहे।
 


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