यूपी में दूसरी शिक्षक भर्तीः पारदर्शिता ऐसी कि कम मेरिट वालों को नौकरी, ज्यादा वाले बाहर

संपादक |
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एक योग्य अभ्यर्थी का भविष्य संशय में है।
एक योग्य अभ्यर्थी का भविष्य संशय में है।

अधिकारियों पर आंख मूंदकर भरोसा करने की नीति ने एक बार फिर योगी सरकार को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। 69000 शिक्षक भर्ती में जिला आवंटन से लेकर नियुक्ति पत्र वितरण तक झोल ही झोल हैं।

रोजगार के मुद्दे को लेकर युवाओं के आक्रोश का सामना कर चुकी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बेसिक शिक्षा परिषद में शिक्षकों की नियुक्ति से रोजगार देने की शुरूआत कर दी। शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 31,277 सहायक अध्यापकों को ऑनलाइन नियुक्ति पत्र प्रदान किए। 

हालांकि, बेसिक शिक्षा विभाग में पिछली 68500 भर्ती की तरह ही इस भर्ती में भी गड़बड़ियों का अंबार है। अधिकारियों पर आंख मूंदकर भरोसा करने की नीति ने एक बार फिर योगी सरकार को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है। 69000 शिक्षक भर्ती में जिला आवंटन से लेकर नियुक्ति पत्र वितरण तक झोल ही झोल हैं। 

31, 277 योग्य शिक्षकों की भर्ती का दावा कर अपनी पीठ थपथपा रही सरकार को ही शायद पता ही नहीं कि उसने कम मेरिट वालों को नियुक्ति दे दी और अधिक मेरिट वाले अभ्यर्थी नियुक्ति मिलने से रह गए। अब सरकार की परिभाषा में अगर कम मेरिट वाला ही योग्य है तो फिर कहना ही क्या। 

बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2018 में 69000 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। जनवरी 2019 में यानी एक महीने बाद ही लिखित परीक्षा के बाद से कटऑफ अंकों को लेकर यह भर्ती हाईकोर्ट में चली गई। करीब डेढ़ साल बाद 6 मई 2020 को सरकार ने हाईकोर्ट में भर्ती को लेकर जीत हासिल कर ली लेकिन उसके बाद काउंसिल शुरू होते ही मामला फिर से हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में लंबित हो गया। 

सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती में शिक्षामित्रों के लगभग 38 हजार पद रिजर्व करते हुए शेष पदों पर भर्ती की छूट उत्तर प्रदेश सरकार को दी। हालांकि सरकार इस बात पर अड़ी रही कि हम पूरे पदों पर ही भर्ती करेंगे। इसके बाद 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर बेरोजगारों ने ताली और थाली बजाकर सरकार की जड़ें हिला दीं तो यूपी सरकार ने आनन-फानन में 69 हजार शिक्षक भर्ती के शेष पदों पर ही भर्ती करने का निर्णय लिया। 

इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 31, 661 पदों पर भर्ती करने का निर्णय लिया लेकिन दूसरी चयन सूची बनाने के बाद 31, 277 ही योग्य अध्यापक मिले और इसी के साथ ब्लंडर का सिलसिला शुरू हो गया। 

पारदर्शिता नंबर 1
6 मई को हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने 69000 पदों के लिए जिला आवंटन की जो सूची जारी की थी, उसमें कम मेरिट वाले सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थी को पहली च्वाइस का जिला मिल गया और उससे ज्यादा मेरिट वाली महिला अभ्यर्थी को दूसरी च्वाइस का जिला मिला। 

जबकि दोनों आवेदकों के च्वाइस भरने का क्रम एक सा है और दोनों में से कोई भी अन्य किसी आरक्षण के तहत नहीं आता। स्थानीय अधिकारियों से पूछा गया तो उनका कहना है कि जिला आवंटन एनआईसी के द्वारा हुआ है। इसमें हम कुछ नहीं कह सकते हैं। ऐसे ही कई और भी मामले हैं। 

पारदर्शिता नंबर 2
योगी सरकार की सभी शिक्षक भर्ती शुरू से ही प्रदेश स्तर पर हो रही हैं, इसमें नियुक्ति केवल जिला स्तर पर दी जाती है। 69000 शिक्षक भर्ती में सरकार ने कोर्ट के आदेश के चलते 31, 661 पदों के हिसाब से जिलों में जो पद कम किए उनमें अनियमितता साफ दिखाई दे रही है। 

सरकार ने दोबारा जिला च्वाइस लेने के बजाय पुरानी लिस्ट पर ही चयन सूची जारी कर दी। इसमें आगरा जनपद में 820 में से 782 पदों पर चयन किया तो अलीगढ़ जनपद में 940 में से केवल 279 पर ही चयन किया। फतेहपुर जनपद में जहां 520 में से 508 पद भर दिए गए तो फर्रूखाबाद जनपद में 1000 में से केवल 177 ही पद भरे। 

इसका नतीजा यह हुआ है कि कम पदों वाले जिलों में अधिक मेरिट वाला नियुक्ति पाने से रह गया और अधिक पद वाले जनपदों में उससे बहुत कम मेरिट वाले को भी नियुक्ति मिल गई। जबकि आवेदकों ने तो च्वाइस फिलिंग 69000 पदों के अनुसार जिलों में आवंटित सीटों पर की थी।  

अब यदि कोर्ट में शिक्षामित्रों के पक्ष को जीत मिलती है तो संभव है कि अधिक मेरिट वाले अभ्यर्थी चयन से बाहर हो जाएंगे और कम मेरिट वाले तो नौकरी की मलाई मार ही रहे हैं। यानी एक योग्य अभ्यर्थी का भविष्य संशय में है। 

यह तो पारदर्शिता की हद है 
31,277 शिक्षकों की चयन सूची में यूपी के फिरोजाबाद जनपद में जो चयन सूची जारी हुई है, उसमें सामान्य वर्ग की अधिक मेरिट वाली अभ्यर्थी नियुक्ति पत्र मिलने से रह गई है और उससे कम मेरिट वाले दो पुरूष अभ्यर्थी जो कि सामान्य वर्ग के हैं उन्हें नियुक्ति पत्र मिल गया है। 

इसी प्रकार अन्य पिछड़ा वर्ग का एक पुरूष अभ्यर्थी चयन से वंचित है और इसी वर्ग के उससे बहुत कम मेरिट वाले शनिवार को शिक्षक बनकर कार्य शुरू कर चुके हैं। फिरोजाबाद जिला सिर्फ बानगी भर है, लगभग हर जिले में इसी प्रकार गड़बड़ियों के मामले सामने आ रहे हैं। 

इन सभी गड़बड़ियों को देखकर लग रहा है कि सरकार की परिभाषा में कम मेरिट वाला ही योग्य है। हालांकि सरकार कोर्ट में जीत के बाद सभी को नियुक्ति का आश्वासन दे रही है। चलो सरकार की बात मान भी लें लेकिन कम मेरिट वाला जो पहले नियुक्ति पा चुका है, ज्यादा मेरिट वाले बाद में नियुक्ति पाने से सीनियर हो जाएगा।

उसके बाद सरकारी प्रक्रिया के अनुसार वह हर प्रमोशन में ज्यादा मेरिट वाले से सीनियर रहेगा। यानी हंस चुंगेगा दाना तिनका, कौआ मोती खाएगा।  

हाईकोर्ट में कल सुनवाई
31, 277 की चयन सूची के मामले में संजय कुमार यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। संजय अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं और आरक्षण के हकदार हैं। संजय ने कोर्ट को बताया है कि उन्हें आवंटित हुए जिले में ओबीसी वर्ग के उनसे कम मेरिट वाले अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए बुलाया गया लेकिन उनका नाम सूची में नहीं है। 

हाईकोर्ट ने सरकार से मामले में 19 अक्टूबर को जवाब दाखिल करने को कहा है। हालांकि सरकार के अधिकारी बार-बार यही तर्क दे रहे हैं कि भर्ती सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हो रही है। लेकिन, वे ये नहीं बता रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने किस आदेश के तहत कम मेरिट वालों को नौकरी देने और ज्यादा वालों को बाहर करने को कहा है। 

सरकार खुद 69000 शिक्षक भर्ती को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में योग्यता का तर्क दे रही है। 65/60 प्रतिशत कट आॅफ को लेकर सरकार यही कहती आ रही है कि हम योग्य शिक्षकों को भर्ती करना चाहते हैं। इसका मतलब जिसकी मेरिट ज्यादा वह योग्य, लेकिन हकीकत में सरकार कम मेरिट वाले को नियुक्ति दे रही है। 


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