यूपी में फिर योगी राज, सपा के सपने हुए चकनाचूर, कांग्रेस-बसपा इकाई अंक में सिमटी

टीम भारत दीप |

मतदाताओं ने योगी के राशन और शासन को स्वीकार किया।
मतदाताओं ने योगी के राशन और शासन को स्वीकार किया।

चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना महामारी के भयंकर भंवर, कृषि कानून विरोधी आंदोलन को गांव-गांव पहुंचाने के विरोधियों के प्रयास और विपक्षी एकजुटता के बावजूद योगी आत्मविश्वास से 'सुशासन' की पतवार चलाते रहे, जिसका नतीजा सामने है कि 37 वर्ष बाद यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार की लगातार वापसी का इतिहास रच डाला।

लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव में एक फिर भगवा लहर ने सबकों परास्त कर दिया। अपने काम और चुस्त प्रशासन की वजह से योगी एक फिर यूपी की सत्ता पर कब्जा करके कई रिकॉर्ड अपने नाम किए।योगी फिर सत्ता मिलने का मतलब यूपी में योगी ही उपयोगी है, पूरे चुनाव भर जो योगी को मठ में रहने की सलाह दे रहे थे,

वह अब पांच साल विपक्ष में बैठेंगे। विपक्ष के इतने दुष्प्रचार के बाद भी मतदाताओं के बीच न तो 'मोदी मैजिक' कम हुआ है और न ही लहर पर कोई असर है। हां, इस बीच विकासवाद की राजनीति के प्रतीक बनकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जरूर उभरे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जनसभा में 'यूपी के लिए योगी ही उपयोगी' जैसा नारा देकर योगी के प्रति बढ़े जनविश्वास पर अपनी मुहर लगा दी।

विपक्ष की किलाबंदी हुई बेअसर

चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना महामारी के भयंकर भंवर, कृषि कानून विरोधी आंदोलन को गांव-गांव पहुंचाने के विरोधियों के प्रयास और विपक्षी एकजुटता के बावजूद योगी आत्मविश्वास से 'सुशासन' की पतवार चलाते रहे, जिसका नतीजा सामने है कि 37 वर्ष बाद यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार की लगातार वापसी का इतिहास रच डाला।

वहीं सपा जिससे कांटे की टक्कर मानी जा रही थी, वह औंधे मुंह गिर पड़ी। वहीं कांग्रेस और बसपा की सारी की सारी रणनीति पूरी तरह से फ्लाप सिद्ध हुई, वहीं कांग्रेस को प्रियंका मैजिक से काफी उम्मीदें थी, लेकिन प्रियका की सारी कवायद धरी की धरी रह गई। जहां भाजपा 273 सपा 125, कांग्रेस और राजभैया की पार्टी दो—दो सीट लाने में सफल हुई वहीं बसपा ने मात्र एक सीट पर जीत दर्ज कर सकीं।

योगी ने तोड़ा सबसे बड़ा मिथक

यूपी की सत्ता को लेकर कई मिथक लगातार हा​वी रहे, जिसे योगी ने अपने सुशासन के दम पर तोड़ते हुए वह रिकॉर्ड बना डाले जो अभी तक कोई सोच नहीं पा रहा था। पहला मिथक कि नोएडा जाने वाले सीएम की कुर्सी चली जाती है और उक्त सीएम की पार्टी बुरी तरह से हार जाती है।

इस बहम की वजह से कोई भी सीएम नोएडा जाने की साहस नहीं जुटा पाता, इसलिए अखिलखेश यादव पूरे पांच साल के कार्यकाल में एक बार भी नोएडा नहीं गए, जबकि योगी ने कई बार नोएडा का दौरा किया। 

एक मिथक यह भी था कि किसी भी पार्टी की लगातार दो बार सरकार नहीं बना पाती जैसे  बीते तीन विधानसभा चुनावों में हुए उलटफेर ने इस मिथक को और मजबूत किया। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा का तख्त 2012 में सपा ने पलटा तो सपा की बहुमत वाली सरकार 2017 की मोदी लहर में ढेर हो गई।

गरीबों के लिए किया गया काम बना सहारा

मोदी-योगी सरकार द्वारा गरीबों के लिए बनाई गई योजनाओं का इस चुनाव में काफी मदद मिली चाहे राशन बांटना या मकान या शौचालय किसानों को दो हजार की सहायता या पांच सौ रुपये श्रमिकों को हर माह देना यह सारे फैक्टर चुनाव में सकट मोचक बनकर उभरे, जिसका विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं था।

भले ही विपक्ष ने मतदाताओं को लुभाने के लिए एक से एक लुभावने वादे किए,लेकिन मतदाताओं ने योगी के राशन और शासन को स्वीकार किया। 

काम आया बाबा का बुल्डोजर

प्रदेश के चुनावों में अब तक कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा रही है। सपा को बेदखल कर 2017 में भाजपा इसी वादे के साथ सत्ता में आई थी कि कानून व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा।

इसके बाद माफियाराज पर लगातार प्रहार, अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति, लव जेहाद के खिलाफ कानून, माफिया की संपत्ति पर बुलडोजर जैसे योगी आदित्यनाथ के कई कदम थे, जिन्होंने प्रदेश में मजबूत कानून व्यवस्था संदेश दिया। चुनाव में पूरब से पश्चिम और रुहेलखंड से बुंदेलखंड तक इसका असर दिखाई दिया, जो चुनाव परिणामों में पूर्ण बहुमत के रूप में तब्दील भी हुआ है।

नहीं चली जात-पात की राजनीति

पूर्वांचल की राजनीति में जातीय समीकरणों का खास प्रभाव माना जाता है। सपा की आस इसी पर टिकी थी, इसलिए उन्होंने पिछड़ों में पैठ बनाने की रणनीति के तहत सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल कमेरावादी

महान दल के साथ गठबंधन किया। वहीं, भाजपा इस मैदान में गठबंधन के पुराने साथी अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के साथ थी। लेकिन इस बार जात पात की राजनीति की जगह राशन—शासन को पसंद किया गया, इस वजह से पूर्वांचल में बीजेपी को जबरदस्त फायदा मिला। 

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