अहा पुराने दिन: सरकारी से निजीकरण पर आलोक पुराणिक का व्यंग्य, बैंकर्स जरूर पढ़ें

टीम भारत दीप |

पहले सिर्फ सरकारी कंपनियां ही होती थीं फोन कारोबार में।
पहले सिर्फ सरकारी कंपनियां ही होती थीं फोन कारोबार में।

फोन कंपनी सरकार चलाती है, तो दो ही सूरतें होती हैं कि या तो चल नहीं पाती, जैसे एमटीएनएल और बीएसएनएल, या फिर अगर ये चलती भी हैं, तो हालत रुकी हुई कंपनी से बेहतर ना होती। सेलरी रुकी हुई होती है और काम भी रुका हुआ होता है।

आलोक पुराणिक। निजी क्षेत्र की बड़ी मोबाइल कंपनी वोडाफोन के मुखिया ने हाथ खड़े करते हुए कहा कि अब हमसे ना संभलती कंपनी, सरकार ले ले इसको।सरकार ने जब ना संभलती कोई कंपनी, कोई कारोबार, तो वह निजी क्षेत्र के हवाले कर देती है।

अब जैसे कई सरकारी बैंकों का हाल यही है, सरकार कह रही है कि ले जाओ भईया निजीवाले ले जाओ। सरकार ने एयर इंडिया न संभली और ऐसी बिगड़ी कि अब निजी क्षेत्र वाले कोई आगे ना आ रहे, ऐसी बिगड़ गयी है।

फोन कंपनी सरकार चलाती है, तो दो ही सूरतें होती हैं कि या तो चल नहीं पाती, जैसे एमटीएनएल और बीएसएनएल, या फिर अगर ये चलती भी हैं, तो हालत रुकी हुई कंपनी से बेहतर ना होती। सेलरी रुकी हुई होती है और काम भी रुका हुआ होता है।

पहले सिर्फ सरकारी कंपनियां ही होती थीं फोन कारोबार में। अहा क्या दिन थे, वो। जब सरकारी कंपनियों के फोन कर्मचारियों का रिश्ता फोनधारियों से राजा और प्रजा का होता था, अब तो दुकानदार और कस्टमर का है। पुराने जमाने के राजा अपनी फोन प्रजा से सीधे मुंह बात ना करते थे। अब की जनरेशन को शायद यह बात सुनकर अचंभा हो कि एक जमाने में सरकारी फोन कंपनियों के कर्मी होली दीवाली पर बख्शीश के नाम पर रिश्वत वसूलने के लिए आते थे।

फोन का काम करना लाइनमैन की मरजी पर निर्भर होता था, लाइनमैन की मरजी रिश्वत देयक क्षमताओं पर निर्भर होती है। पड़ोस के कारोबारी का फोन धकाधक चलता रह सकता था, गरीब लेखक का फोन मृत पड़ा हो सकता था, फोन सिर्फ टेलीकाम लाइन से ही ना चलते, बल्कि रिश्वत की लाइन से चलते हैं, इस सत्य का साक्षात्कार उन दिनों होता था।

अहा कैसे तो टेढ़े एंगल से बात करते थे फोन लाइनमैन अब तो निजी फोन कंपनियों के कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव मिमिया कर बात करते थे, पुराने जमाने की सरकारी फोन कंपनी का फोन लाइनमैन जैसे शाहाना बात करते थे, वैसी बात तो अब निजी टेलीकाम कंपनी के चैयरमैन भी ना करते। वो तो बिचारे यही कह रहे हैं-हम से ना संभल रही है। ले जाओ। ले जाओ।

अहा पुराने दिन।


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