अमेरिकी वैज्ञानिक तैयार कर रहे ऐसा पौधा, खाते ही यूं शरीर में पहुंच जाएगी कोरोना वैक्सीन

टीम भारत दीप |

(प्रतीकात्मक चित्र) यह ओरल वैक्सीन की तरह काम करेगी।
(प्रतीकात्मक चित्र) यह ओरल वैक्सीन की तरह काम करेगी।

सरल भाषा में समझें तो लोगों को पौधा खिलाकर कोविड की वैक्सीन दी जाएगी। इस वैक्सीन वाले पौधे को अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया रिवरसाइड के शोधकर्ता विकसित कर रहे हैं। बताया गया कि पौधे की मदद से कोरोना की mRNA वैक्सीन को इंसान में पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। फाइजर और मॉडर्ना ने अपनी वैक्सीन को तैयार करने में mRNA तकनीक का इस्तेमाल किया है।

नई दिल्ली। आज भी वैक्सीन का नाम सुनते ही तमाम लोगों को इंजेक्शन का भय सताने लगता है। ऐसे में अमेरिका के वैज्ञानिक इसी डर को समाप्त करने की कोशिश में लगे हुए हैं। दरअसल वो ऐसा पौधा विकसित कर रहे हैं जिसे खाने के बाद इंसान के शरीर में वैक्सीन खुद—ब—खुद पहुंच जाएगी। इसकी शुरुआत कोविड वैक्सीन से की जाएगी।

सरल भाषा में समझें तो लोगों को पौधा खिलाकर कोविड की वैक्सीन दी जाएगी। इस वैक्सीन वाले पौधे को अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया रिवरसाइड के शोधकर्ता विकसित कर रहे हैं। बताया गया कि पौधे की मदद से कोरोना की mRNA वैक्सीन को इंसान में पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फाइजर और मॉडर्ना ने अपनी वैक्सीन को तैयार करने में mRNA तकनीक का इस्तेमाल किया है। इससे पहले तक इस तकनीक का इस्तेमाल कम ही किया जाता था। वहीं हाल में कोविड वैक्सीन तैयार करने के बाद इस तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है। कई कंपनियां फ्लू का टीका बनाने के लिए mRNAतकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं।

बताया गया कि इस तकनीक से तैयार कोविड वैक्सीन रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम को ट्रेनिंग देती है कि कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन कैसा होता है। इस ट्रेनिंग के बाद शरीर स्पाइक प्रोटीन को समझने के काबिल बन जाता है। बताया गया कि जब भी कोरोना शरीर को संक्रमित करता है तो इम्यून सिस्टम उस वायरस के स्पाइक प्रोटीन को पहचान लेता है और उसे खत्म करने की कोशिश करता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जिस तकनीक से फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना ने कोविड वैक्सीन तैयार की है, हम उसी तकनीक से वैक्सीन तैयार करके पौधे के जरिए इंसानों तक पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं। बताया गया कि पौधे आसानी से पच जाते हैं जबकि सिरिंज से वैक्सीन लेने के बाद साइड इफेक्ट का खतरा बना रहता है। पौधों के रूप में दी जाने वाली वैक्सीन का रख-रखाव और लाना-ले जाना आसान होगा।

कम तापमान पर पौधों को रखने पर इसमें मौजूद वैक्सीन के खराब होने का खतरा भी नहीं होगा। बताया गया कि यदि यह प्रयोग सफल रहता है, निम्न आय वर्ग वाले देशों के लिए वैक्सीन वाला पौधा एक वरदान की तरह होगा।

जहां कोविड की वर्तमान वैक्सीन के मुकाबले इन पौधों का स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन आसान होगा और खर्चा भी कम आएगा। शोधकर्ताओं का मानना है कि पौधों में मौजूद क्लोरोप्लास्ट mRNA को संभाल सकता है। इससे साफ है कि इसमें काफी क्षमता है। दरअसल पौधों का रंग जिस पिगमेंट के कारण हरा होता है, उसे ही क्लोरोप्लास्ट कहते हैं।

इस क्लोरोप्लास्ट में mRNA को कैसे पहुंचाया जाए और लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जाए, वैज्ञानिकों की एक टीम इसका भी पता लगाने में जुटी हुई है। बताया जा रहा है कि यदि यह प्रयोग सफल रहता है तो यह ओरल वैक्सीन की तरह काम करेगी।
 


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