राममंदिर के लिए कारसेवकों ने गोली खाई, बेइंतहा जुल्म सहने के बाद देखने को मिला ये दिन

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

लोगों ने अपने घरों में बैठकर पूरे आयोजन को देखा लेकिन इस दौरान उन्होंने स्वयं को अयोध्या में ही पाया।
लोगों ने अपने घरों में बैठकर पूरे आयोजन को देखा लेकिन इस दौरान उन्होंने स्वयं को अयोध्या में ही पाया।

भारत के प्रधानमंत्री जब रामलला विराजमान के सामने दंडवत हुए तो देशभर में उन लाखों परिवार के लोगों की आंखें भर आईं जिनके सदस्यों ने अयोध्या में कारसेवा की।

अयोध्या। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए 492 साल के संघर्ष के बाद आज यह दिन देखने को मिला है। भारत के प्रधानमंत्री जब रामलला विराजमान के सामने दंडवत हुए तो देशभर में उन लाखों परिवार के लोगों की आंखें भर आईं जिनके सदस्यों ने अयोध्या में कारसेवा की। 

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में राम मंदिर निर्माण के लिए आहुति देने वाले सभी लोगों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की और उन्हें नमन किया। लोगों ने अपने घरों में बैठकर पूरे आयोजन को देखा लेकिन इस दौरान उन्होंने स्वयं को अयोध्या में ही पाया। 

बता दें कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन तब तेज हुआ, जब आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा होने लगे। 25 सितंबर 1990 को भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवानी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गुजरात के सोमनाथ से राम रथ यात्रा निकाली। 

इस यात्रा को उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश से पहले बिहार सरकार ने रोक लिया। उस समय लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। यात्रा के अगुवा लाल कृष्ण आडवाणी को नजरबंद कर लिया गया। 

इसके बाद भी लाखों कारसेवकों का जत्था नहीं रूका। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने करीब डेढ़ लाख कारसेवकों को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस दिया। राम मंदिर को लेकर कार सेवकों का जोश उफान पर था। वे पैदल ही आगे बढ़े जा रहे थे। 

पूरे यूपी की सड़कों पर कारसेवक ही दिखाई दे रहे थे। सरकार के निर्देश पर पुलिस ने उन्हें काबू करने के लिए बेइंतहा जुल्म ढाए। इस संघर्ष गवाह रहे अमेठी के राजेश्वर सिंह बताते हैं कि जेलों में कारसेवकों को पेशाब तक पिलाई गई। 

‘गर्व से कहो हम हिंदू है‘ नारा लगाने वालों के जनेउ पुलिस तोड़ दे रही थी। फिरोजाबाद के विपिन शर्मा बताते हैं कि इंतहा तो तब हो गई जब अयोध्या में 30 अक्टूबर 1990 को अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई। 

 

इसमें सैकड़ों कारसेवक मारे गए हालांकि सरकारी रिकाॅर्ड में केवल 16 लोगों के मारे जाने का जिक्र है। अयोध्या के लोग बताते हैं कि पुलिस ने आंकड़े छिपाने के लिए या तो शवों का अंतिम संस्कार कर दिया या उन्हें सरयू में बहा दिया था। 

अयोध्या की वह गली जिसे अब शहीद गली कहा जाता है, में पुलिस ने कार सेवकों को गली के दोनों छोर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग की। इसी गली में फायरिंग के दौरान ढांचे पर भगवा झंडा लगाने वाले कोलकाता के कोठारी बंधुओं की भी मौत हो गई।  
आगर के रमेश अग्रवाल कहते हैं कि उस दौर में राम मंदिर के लिए बाधा कोई और नहीं सरकार खुद बनी थी। आज प्रधानमंत्री को रामलला के चरणों में साष्टांग प्रमाण करते देख लगा कि सरकार अपनी भूल सुधार रही है। 


संबंधित खबरें