भगवान शिव के 101 मंदिरों की कहानी, जहां यमुना जी बदल लेती हैं अपना बहाव

टीम भारत दीप |
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एक कतार में बने भगवान शिव के मंदिर
एक कतार में बने भगवान शिव के मंदिर

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में एक गांव है बटेश्वर। मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी पंचपरमेश्वर में इसे बटेसर कहा गया है। भौगोलिक रूप से ये इलाका चंबल क्षेत्र से लगा हुआ है।

उल्टी गंगा बहना मुहावरा तो सभी ने सुना ही होगा लेकिन आपको आजतक किसी ने उल्टी यमुना बहने की बात बताई है। हम बताते हैं, उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में एक गांव है बटेश्वर। मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी पंचपरमेश्वर में इसे बटेसर कहा गया है। भौगोलिक रूप से ये इलाका चंबल क्षेत्र से लगा हुआ है। वही चंबल जिसके डकैतों की कहानियां मशहूर हैं। इसके पास ही शौरीपुर गांव हैं, जो कि जैन धर्मावलंबियों का प्रसिद्ध तीर्थ है। 

बटेश्वर की खासियत यहां एक कतार में बने भगवान शिव के 101 मंदिर हैं। यह मंदिर यमुना के किनारे से शुरू होकर दूर जंगल तक एक ही पंक्ति में बने हैं। साथ ही बटेश्वर में जो यमुना की धारा बहती है वह उल्टी यानी यमुनोत्री से निकली धारा जिस दिशा में बहकर आगरा तक पहुंची है उस दिशा के विपरीत है। 

बटेश्वर की से खासियत यूं ही नहीं बन गईं। इनके पीछे एक रोचक कहानी है, जिसे कि यहां आसपास के लोगांे से और बटेश्वरनाथ की लीला नामक साहित्य में पढ़ा जा सकता है। भारत दीप ने इस कहानी को विस्तार से जानने के लिए यहां समीप के गांव मई में रहने वाले सत्यप्रकाश पाठक जी से बात की। 

सत्यप्रकाश पाठक ने बताया कि बटेश्वर के पास एक कस्बा है भदावर। यहां भदावर राजवंश का शासन था। बटेश्वर भी पहले भदावर राजवंश की सीमा में ही आता था। एक बार राजा भदावर शिकार खेलने के लिए गए तो उन्होंने एक शेर पर निशाना लगाया। उसी समय दूसरी ओर से मैनपुरी के राजा भी शिकार खेलने के लिए पहुंचे थे। यह घटना मैनपुरी और भदावर राज्य की सीमा की है। 

संयोगवश भदावर के राजा और मैनपुरी के राजा का तीर एक साथ शेर को लगा। इसके बाद जब दोनों राजा मृत शेर के पास पहुंचे तो दोनों ने शेर पर अपना दावा किया। इस पर दोनों के बीच युद्ध होने लगा। काफी देर तक युद्ध के बाद भी जब इसका निर्णय नहीं हो सका तो दोनों राजाओं ने संधि कर ली और तय किया कि भविष्य में वे अपने पुत्र-पुत्री का विवाह कर आपस में संबंध स्थापित करेंगे। 

वापस आकर राजाओं ने यह बात अपनी-अपनी रानी को भी बताई। कुछ समय बाद मैनपुरी के राजा को पु़त्री रत्न की प्राप्ति हुई। संयोगवश भदावर नरेश के घर भी लक्ष्मी ने ही जन्म लिया। जब रानी भदावर को यह बात पता चली तो वे घबरा गईं। राजवचन के पूरा न होने पर दोनों राज्यों के बीच दुश्मनी का भय उन्हें सताने लगा। 

इस पर रानी की दाई ने राजा से जाकर कह दिया कि आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। अब मैनपुरी और भदावर राज्य में खुशी का माहौल छा गया। रानी भदावर ने अपनी पुत्री का पालन एक पुत्र की तरह ही किया और राजा को यह भनक भी नहीं लगने दी कि वह एक पुत्री है। अब जब वयावस्था का समय आया तो मैनपुरी और भदावर के राजा ने विवाह की तैयारियां शुरू कीं। 

पाठक जी बताते हैं कि पुरानी कहावत है कि एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। यही रानी भदावर के साथ भी हो रहा था। विवाह तय हुआ। जल्द ही विवाह का अवसर भी आ गया। जब यह बात उस बालिका को पता चली कि उसकी शादी एक बालिका से होने जा रही है तो विवाह के दिन ही वह बालिका यमुना नदी में कूद पड़ी। अब तो सारे राज्य में हड़कंप मच गया। राजा और रानी यमुना नदी के किनारे पहुंचे। यहां रानी ने राजा को सारी बात बताई। राजा को पहले तो क्रोध आया लेकिन शोक में वे इसे जाहिर न सके। 

मान्यता है कि इसके बाद राजा और रानी ने मिलकर भगवान शिव की आराधना की। रानी ने अपनी भूल की क्षमा मांगते हुए पुत्री को पुनः जीवित करने और राज्य की रक्षा की याचना की। इस पर भगवान शिव की अनुकंपा से ही उनकी पुत्री पुत्र बनकर यमुना से वापस आ गई। इसके बाद राजा ने यमुना किनारे ही भगवान शिव के भव्य मंदिर का निर्माण कराया और यमुना नदी के किनारे संुदर घाटों की भी व्यवस्था की। इसके बाद उनके वंशजों ने ही यमुना किनारे एक पंक्ति में 101 मंदिरों का निर्माण कराया। मान्यता यह भी है कि इस घटना के बाद से ही यमुना की धारा भी उल्टी दिशा में बहने लगी। जब से इस क्षेत्र में यमुना जी यूं ही प्रवाहमान हैं।


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