बदलाव: अब जर्मनी और पोलैंड के बाद भारत में भी हाइड्रोजन से चलेंगी ट्रेन

टीम भारत दीप |

अभी पूरे ट्रैक को बिजली से चलाने के साथ ही अब हाइड्रोजन फ्यूल से भी ट्रेन चलाने की कवायद तेज हो गई है।
अभी पूरे ट्रैक को बिजली से चलाने के साथ ही अब हाइड्रोजन फ्यूल से भी ट्रेन चलाने की कवायद तेज हो गई है।

आपकों बता दें कि शुरुआत में 2 डेमू रैक को हाइड्रो इंजन में बदला जाएगा। बाद में 2 हाइब्रिड नैरो गेज इंजन को हाइड्रोजन फ्यूल सेल पावर मूवमेंट आधारित सिस्टम में बदलने की तैयारी है। भारत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऐसी बैटरी 10 डिब्बों वाली डेमू ट्रेन में लगाई जाएगी। इस तरह की बैटरी 1600 हार्स पॉवर की क्षमता के साथ ट्रेन को खींचेगी।

नई दिल्ली। पर्यावरण से प्रदूषण को घटाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। वृहदस्तर पर पौधारोपण किया जा रहा है। इसे अलावा ट्रेनों से निकलने वाले कार्बन डाई आक्साइड को कम करने के लिए  सीएनजी के साथ हाइड्रोजन ईंधन से ट्रेनें चलाने की तैयारी की जा रही है।

ग्रीन ट्रांसपोर्ट सिस्टम (हरित परिवहन व्यवस्था) के क्षेत्र में रेलवे ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। अभी तक जर्मनी व पोलैंड में ही इस तकनीक से ट्रेन चलती है। जल्द ही भारत में भी इसकी शुरुआत होगी। खास बात यह है कि रेलवे अपने डीजल इंजन को ही रेट्रोफिटिंग करके हाइड्रोजन फ्यूल आधारित तकनीक विकसित की है। इस तकनीक पर आधारित ट्रेन चलाने के लिए रेलवे जल्द ही बोलियां मंगाएगा। 

ऐसे होगी शुरूआत

आपकों बता दें कि शुरुआत में 2 डेमू रैक को हाइड्रो इंजन में बदला जाएगा। बाद में 2 हाइब्रिड नैरो गेज इंजन को हाइड्रोजन फ्यूल सेल पावर मूवमेंट आधारित सिस्टम में बदलने की तैयारी है। भारत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऐसी बैटरी 10 डिब्बों वाली डेमू ट्रेन में लगाई जाएगी। इस तरह की बैटरी 1600 हार्स पॉवर की क्षमता के साथ ट्रेन को खींचेगी।

प्रदूषण मुक्त सफर की मुहिम

रेलवे प्रदूषण मुक्त सफर कराने की मुहिम में जुटा है। अभी पूरे ट्रैक को बिजली से चलाने के साथ ही अब हाइड्रोजन फ्यूल से भी ट्रेन चलाने की कवायद तेज हो गई है। जीवाश्म ईंधन पर से निर्भरता खत्म करने के लिए डीजल इंजन को भी पटरियों से हटाया जा रहा है। यहां तक कि ट्रेन से डीजल जेनरेटर सेट को भी हटा कर सीधा ओवर हेड वॉयर सिस्टम से जोड़ा जा रहा है।

इसी कड़ी में भारतीय रेलवे ने हाइड्रोजन ईंधन तकनीक से ट्रेन चलाने की योजना बनाई है।इसका मकसद खुद को ग्रीन ट्रांसपोर्ट सिस्टम के रूप में तब्दील करना है। यह योजना नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी मिशन के तहत बनाई है। लक्ष्य 2030 तक भारत में रेलवे को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करना है। 

निजी साझेदारों से इस योजना को जोड़ने के लिए निविदा आमंत्रित की गई है। रेलवे अधिकारियों के अनुसार इंडियन रेलवे आर्गेनाइजेशन ऑफ अल्टरनेट फ्यूल ने उत्तर रेलवे के 89 किमी क्षेत्र में रेट्रोफिटिंग करके हाइड्रोजन फ्यूल आधारित तकनीक के विकास के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं। 

एक इंजन से सालाना 2.5 करोड़ की होगी बचत

इस तरह के एक इंजन से रेलवे को सालाना करीब ढाई करोड़ रुपये की बचत भी होगी। इसके साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी नहीं होने से प्रदूषण की समस्या नहीं होगी। डीजल से चलने वाली डेमू को हाइड्रोजन सेल तकनीक में बदलने से हर साल 11.12 किलो टन कार्बन फुटप्रिंट का उत्सर्जन नहीं होगा तो .72 किलो टन पार्टिकुलेट मैटर का भी उत्सर्जन रुकेगा।

इस तकनीक से करेगी काम

रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ट्रैक पर ट्रायल सफल रहा तो डीजल इंजन को हाइड्रो इंजन में बदला जाएगा। हाइड्रोजन फ्यूल ग्रीन एनर्जी में सबसे अच्छा है। पानी को सोलर एनर्जी से विद्युत अपघटन कर के एनर्जी को पैदा किया जाएगा। हाइड्रोजन फ्यूल सेल आधारित डेमू रेक के लिए बोलियां 21 सितंबर से शुरू होंगी और 5 अक्टूबर तक चलेगी। इसके लिए 17 अगस्त को 11:30 बजे एक प्री-बिड कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया जाएगा। 

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