चीन से परेशान उसका हर पड़ोसी, दक्षिण चीन सागर पर भी विवाद

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

दक्षिणी चीन सागर
दक्षिणी चीन सागर

विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश चीन से उसका हर पड़ोसी परेशान है। लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही से चलने वाले देश में न तो प्रेस की स्वतंत्रता है, न विचारों की। भौगोलिक रूप से भी उसने अपने ज्यादातर पड़ोसियों से रिश्ते खराब कर लिए हैं।

विश्व में सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश चीन से उसका हर पड़ोसी परेशान है। लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही से चलने वाले देश में न तो प्रेस की स्वतंत्रता है, न विचारों की। भौगोलिक रूप से भी उसने अपने ज्यादातर पड़ोसियों से रिश्ते खराब कर लिए हैं। ऐसा ही नहीं उसने भारत की सीमा में अतिक्रमण किया हो, दक्षिणी चीन सागर का लगभग हर देश चीन से खफा है। कारण, चीन पूरे सागर पर अपनी हुकूमत चाहता है। ऐसे में वह किसी अन्य देश की संप्रभुता का सम्मान भी नहीं कर रहा है।

बता दें कि दक्षिण चीन सागर दक्षिण-पूर्वी एशिया में पश्चिम प्रशांत महासागर का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह चीन के दक्षिण भाग, वियतनाम के दक्षिणी एवं पूर्वी भाग, फिलीपिंस के पश्चिम और बोर्नियो द्वीप समूह के उत्तरी भाग में अवस्थित है। यह समुद्री इलाका सिंगापुर और मलक्का जलडमरूमध्य से लेकर ताइवान जलडमरूमध्य तक 35 लाख वर्ग किलोमीटर में है। यह समुद्री क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है। यूएस एनर्जी इन्फाॅरमेशन प्रशासन के अनुसार यहां के समुद्र तल में कम से कम 11 बिलियन बैरल तेल तथा बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस और मूंगे के विस्तृत भंडार मौजूद हैं। दुनिया भर में जो मछलियां पकड़ी जाती हैं, उनका 12 प्रतिशत दक्षिणी चीन सागर में ही होने का अनुमान है। 

दक्षिण चीन सागर विश्व का एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। चीन के 80 प्रतिशत से अधिक तेल आयात इसी मार्ग से गुजरते हैं। यही कुछ कारण हैं कि चीन की नीयत इसे लेकर खराब हो चली है। बताया जाता है कि चीन की साम्यवादी सरकार 1947 के एक पुराने नक्शे के सहारे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करती है। कई एशियाई देश इससे असहमत हैं। मुख्य रूप से चीन ताइवान और वियतनाम इस क्षेत्र पर अपना-अपना दावा करते हैं। 

नाइन डैश लाइन मुख्य विवाद
चीन ने द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद 1947 में दक्षिणी चीन सागर में एक काल्पनिक रेखा खींची। इसे एक सीधी रेखा में न खींच कर नाइन डैश में पूरा किया गया। इसीलिए इसे नाइन डैश लाइन कहा जाता है। चीन ने इस रेखा के जरिए पूरे दक्षिणी चीन सागर की घेराबंदी कर रखी है।

यह रेखा दक्षिणी चीन सागर से लगने वाले फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया तथा सिंगापुर के आधिकारिक 200 समुद्री मील क्षेत्र से होकर गुजरती है। चीन इस सागर के 80 प्रतिशत भाग पर अपना दावा करता है। मुख्य रूप से इस क्षेत्र में स्प्रैटली, प्राटा, मैक्लेसफील्ड बैंक, स्कारबोरो शोल, और पारासेल द्वीप पर विवाद है।

समुद्री सीमा का नियम
सन 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन आॅन द लाॅ आॅफ द सी के अनुसार किसी देश की पहुंच अपने समुद्री तटों से 200 नाॅटिकल मील की दूरी तक ही होगी। इसे चीन, वियतनाम, फिलीपींस और मलेशिया सभी ने मंजूर किया है, लेकिन अमेरिका ने मंजूर नहीं किया है।

इंटरनेशनल कोर्ट की भी अनदेखी
नाइन डैश लाइन को लेकर चीन और फिलीपींस के बीच विवाद 2013 में यूनाइटेड नेशंस के हेग स्थित इंटरनेशनल परमानेंट कोर्ट आॅफ आर्बिट््रेशन के समक्ष लाया गया। कोर्ट ने समुद्री कानून के अनुच्छेद 258 के तहत नाइन डैश लाइन क्षेत्र में चीन के ऐतिहासिक अधिकार के दावे को खारिज कर दिया लेकिन चीन ने इस आदेश को भी आजतक नहीं माना है। न्यायाधिकरण ने साफ कहा कि चीन ने फिलीपींस की संप्रभुता के अधिकार का हनन किया है। 


संबंधित खबरें