16 करोड़ का इंजेक्शन रहा नाकाम,इस दुर्लभ बीमारी ने ले ली 11 माह की मासूम की जान

टीम भारत दीप |

बच्ची को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA)नाम की जेनेटिक बीमारी थी।
बच्ची को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA)नाम की जेनेटिक बीमारी थी।

हजारों लोगों की दुआएं और 16 करोड़ का इंजेक्शन भी 11 महीने की वेदिका शिंदे को नहीं बचा सका। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रविवार रात सांस लेने में तकलीफ के बाद उसे पुणे के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट किया गया, जहां देर रात मासूम ने दम तोड़ दिया।

पुणे। अभी तो उसने जमीन पर ठीक से खड़ा होना भी नहीं ​सीखा था। मां—बाप उसे जमीन पर चलते हुए देखने की तमाम हसरत अपने जेहन में संजोए हुए थे। मगर अब उनकी ये हसरत कभी पूरी न हो सकेगी। क्योंकि एक दुर्लभ बीमारी ने उनकी 11 माह की मासूस को उनसे छीन लिया। हजारों लोगों की दुआएं और 16 करोड़ का इंजेक्शन भी 11 महीने की वेदिका शिंदे को नहीं बचा सका।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रविवार रात सांस लेने में तकलीफ के बाद उसे पुणे के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट किया गया, जहां देर रात मासूम ने दम तोड़ दिया। जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र के पिंपरी चिंचवाड़ में रहने वाले सौरभ शिंदे की बेटी को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA)नाम की जेनेटिक बीमारी थी।

बताया गया कि माता-पिता ने क्राउड फंडिंग से 16 करोड़ रुपए जमा करके जोलगेन्स्मा (Zolgensma) नाम का इंजेक्शन अमेरिका से मंगवाया था। दरअसल इस बीमारी का यही अंतिम इलाज माना जाता है। बताया गया कि वेदिका को जून में यह इंजेक्शन लगा भी दिया गया था। जिसके बाद पूरा परिवार बेहद खुश था और वेदिका की कहानी सोशल मीडिया में भी खूब वायरल हो रही थी।

मगर यह खुशियां ज्यादा दिनों तक परवान न चढ़ सकीं और रविवार रात को वेदिका ने दुनिया को अलविदा कह दिया। वेदिका के इस तरह से जाने के बाद उसकी मदद करने वाले कई लोग और उसके परिवार वाले काफी सदमे में है। वहीं 16 करोड़ रुपए का इंजेक्शन देने के बाद भी वेदिका की मौत कैसे हुई, इस बात को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं।

चिकित्सकों के मुताबिक यह बीमारी शरीर में SMA-1 जीन की कमी से होती है। बताया गया कि इससे बच्चे की मांसपेशियां कमजोर होती हैं। शरीर में पानी की कमी होने लगती है। स्तनपान या दूध की एक बूंद भी सांस लेने में दिक्कत पैदा करती है। बताया गया कि बच्चा धीरे-धीरे एक्टिविटी कम कर देता है और उसकी मौत हो जाती है।

जानकारी के मुताबिक ब्रिटेन में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या ज्यादा है। वहां हर साल करीब 60 बच्चों को यह जन्मजात बीमारी होती है। बताया गया कि इस बीमारी में इस्तेमाल होने वाला जोलगेन्स्मा इंजेक्शन अमेरिका, जर्मनी और जापान में बनता है। चिकित्सकों के मुताबिक इंजेक्शन की सिर्फ एक डोज ही कारगार होती है।

बताया गया कि यह जीन थेरेपी का काम करता है। जीन थेरेपी मेडिकल की दुनिया में एक बड़ी खोज है। बताया गया कि यह लोगों के अंदर उम्मीद जगाती है कि एक डोज से पीढ़ियों तक पहुंचने वाली जानलेवा बीमारी ठीक की जा सकती है। 
 


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