अमिताभ ठाकुरः सिस्टम ने जब हाथ काटे तो आवाज के दम पर लड़ता रहा यह आईपीएस

संपादक |
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कई घटनाएं उनके जीवन में आई होंगी लेकिन अमिताभ ठाकुर फिर भी अमिताभ ठाकुर ही रहे।
कई घटनाएं उनके जीवन में आई होंगी लेकिन अमिताभ ठाकुर फिर भी अमिताभ ठाकुर ही रहे।

बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मे अमिताभ ठाकुर ने आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक के बाद भारतीय पुलिस सेवा को अपने करियर के रूप में चुना था। 1992 बैच के इस आईपीएस अधिकारी ने उत्तर प्रदेश कैडर में रहते हुए करीब 10 जिलों में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य किया।

उत्तर प्रदेश के चर्चित आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को पुलिस सेवा से जबरन रिटायर कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश के गृह विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनको सेवाओं के लिए उपयुक्त नहीं पाया है। ऐसे में उन्हें तीन महीने का वेतन देकर जबरन रिटायर किया जा रहा है। 

सरकारी भाषा में इसे वीआरएस यानी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कहा जाता है लेकिन अमिताभ को जानने वाले इसका कारण उनका सरकार के खिलाफ लगातार मुखर रहना बता रहे हैं। अमिताभ ठाकुर ने खुद अपने ट्विटर और फेसबुक पर इस आदेश की प्रति साझा की है। इसके साथ ही उनके समर्थन में भी आवाज उठनी शुरू हो गई है। 

बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मे अमिताभ ठाकुर ने आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक के बाद भारतीय पुलिस सेवा को अपने करियर के रूप में चुना था। 1992 बैच के इस आईपीएस अधिकारी ने उत्तर प्रदेश कैडर में रहते हुए करीब 10 जिलों में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य किया। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जनपद में पुलिस अधीक्षक रहने के दौरान का एक किस्सा हमारे एक पाठक ने हमसे साझा किया- 

फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद शहर में खेड़ा मोहल्ला है। इस मोहल्ले में एक पुलिस चौकी है। तब यह चौकी यहां की छोटी बगिया में हुआ करती थी। अब भी शायद वहीं हो। मेरा बचपन यहीं बीता तो जब से कुछ समझना सीखा तो खेड़ा मोहल्ले की पहचान खेड़ा पुलिस चौकी से ही पाई। यह मोहल्ला शहर के एक छोर पर था,जहां से ग्रामीण परिवेश की शुरुआत हो जाती थी। खेड़ा पुलिस चौकी भी मोहल्ले के एक तरफ बड़े से तालाब के किनारे बने पुराने से भवन की ऊपरी मंजिल पर चलती थी। अक्सर वहां 2-3 सिपाही दिख जाते थे। उसी पुराने से भवन पर ही एक छोटा बोर्ड टंगा रहता था जिस पर पुलिस चौकी लिखा रहता था। 

छोटी बगिया बच्चों के और युवाओं के खेलने का स्थान थी तो हम अक्सर दोपहर के समय वहीं पहुंच जाते थे। एक रोज हम कुछ लोग बगिया में थे तो दो चार पुलिस वालों के साथ हाफ शर्ट में एक सज्जन पैदल ही चौकी की ओर चले आ रहे थे। बचपन में पुलिस के दिख जाने का मतलब मैन में कौतूहल हो जाना ही होता था। पुलिस को देखकर एक आम नागरिक की सोच तब भी वही होती थी कि कुछ हो गया होगा। 

इसी जिज्ञासा को मिटाने के लिए हम सभी बच्चे चौकी की ओर से दौड़े। वहां जाकर मैं दूर ही खड़ा हो गया और उनकी बातें सुनने लगा। जो सज्जन आये थे उनके पैर के जूते में पैदल चलने के कारण कोई कील लग गई थी तो वे आसपास के लोगों से बात करते-करते वह खड़े-खड़े कील भी निकालने का प्रयास कर रहे थे। इसी बीच एक व्यक्ति ने चौकी में तैनात पुलिस वालों की तारीफ में दो चार बातें कह दीं। 

फिर और दो चार बातों के बाद वह सज्जन अपने अमले के साथ चले गए। अगले दिन अखबार की सुर्खियों ने बताया कि हमारे पास खड़े वह सज्जन कोई और नहीं फिरोजाबाद के नए एसपी अभिताभ ठाकुर थे। मेरी जानकारी में उस दिन तक खेड़ा पुलिस चौकी पर किसी एसपी का आना नहीं हुआ था। हम तब आईपीएस का मतलब भी नहीं जानते थे बस अखबारों से यह ज्ञान मिल गया था कि एसपी जिले में पुलिस का सबसे बड़ा अधिकारी होता है। 

ऐसे में एक अधिकारी के इतने पास खड़ा होने में भी हम गर्व का अनुभव कर रहे थे। इसके बाद अमिताभ ठाकुर जी की रोजाना कार्रवाइयों ने हमें बहुत रोमांचित किया। तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और आज की भाषा में कहें तो अमिताभ ठाकुर फिरोजाबाद जिले के सिंघम बन चुके थे। अमिताभ ठाकुर जी की एक खासियत थी कि इनकी सरकारी कार में इनकी सीट के पास डायरियों के अलावा एक सिपाही वाला डंडा भी रहता था। 

मतलब कि जहां कानून व्यवस्था का उल्लंघन दिखता ठाकुर साहब खुद ही लीड करते थे। चाहे दुकान में चोरी की घटना हो उसकी जांच में वहां एसपी साहब मौके पर सबसे पहले मिलेंगे। अपने छोटे से कार्यकाल में अमिताभ ठाकुर साहब ने फिरोजाबाद जिले में अपने कार्यों से खूब वाहवाही पाई। फिर फिरोजाबाद में जसराना से समाजवादी पार्टी के विधायक के साथ हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के बाद उनकी विदाई फिरोजाबाद जनपद से हो गई। 

अमिताभ ठाकुर उस दिन फिरोजाबाद से ही नहीं गए बल्कि फील्ड पुलिसिंग से भी लगभग उनकी विदाई ही हो गई। अब उनकी कार्यशैली के किस्से अखबारों की सुर्खियां थे। एक बार पढ़ने को ये भी मिला कि अमिताभ ठाकुर आईजी नागरिक सुरक्षा के पद पर तैनाती के दौरान फिरोजाबाद जनपद आये लेकिन उनको लोकल पुलिस ने प्रोटोकॉल नहीं दिया। ऐसी कई घटनाएं उनके जीवन में आई होंगी लेकिन अमिताभ ठाकुर फिर भी अमिताभ ठाकुर ही रहे।

साइड पोस्टिंग के दौरान भी अमिताभ ठाकुर रूके नहीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और आईआईएम लखनउ से डाॅक्टरेट की डिग्री हासिल की। अपने कार्याें को लेकर बेबाक रहने वाले अमिताभ ठाकुर किसी भी सरकार के सांचे में सेट नहीं हो पाए। उन्होंने अपना दुःख एक बार सोशल मीडिया पर जाहिर भी किया कि उनके साथ के अफसर इस समय एडीजी हो गए और वे अब तक आईजी ही हैं। 

इतना ही नहीं उनको एसपी से भी सीधे आईजी के पद पर प्रमोट किया गया था क्योंकि उनके प्रमोशन के समय कई मामलों में जांच चल रही थी। सरकारों ने केस लादकर अमिताभ हाथ काट दिए लेकिन इस वेबाक आईपीएस ने अपनी आवाज के दम पर अपनी लड़ाई जारी रखी। 

चाहे पूर्व मुख्यमंत्री से फोन पर मिली कथित धमकी हो या रेप के झूठे आरोप। अमिताभ कहीं भी डिगे नहीं। उनके हर कठिन समय में उनकी सहयोगी अधिवक्ता पत्नी नूतन ठाकुर बनीं। सिस्टम में रहकर सिस्टम का सितम झेलने वाले अमिताभ के लिए वीआरएस एक नए युद्ध की तरह है। 53 साल के इस आईपीएस को सरकार ने यह कहकर रिटायर कर दिया कि वे सेवाओं के लिए उपयुक्त नहीं हैं। ऐसे में लगता है कि बदलती राजनीति ने उपयोगिता की शायद कोई और परिभाषा गढ़ ली है। 

खैर, सरकार के लिए अनुपयोगी आईपीएस ने जबरन रिटायरमेंट का आदेश मिलते ही सरकारी गाड़ी और ड्राइवर भी वापस करने में देर नहीं की। यह गाड़ी और ड्राइवर सरकार के लिए आगे भी उपयोगी रहेंगे। 


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