हाथरस कथित गैंगरेपः बिटिया की मर्यादा को तार-तार करने वालों को खानी पड़ सकती है जेल की हवा!

टीम भारत दीप |

नूतन ठाकुर की शिकायत पर ट्विटर और वेबसाइटों पर मुकदमा दर्ज किया गया है।
नूतन ठाकुर की शिकायत पर ट्विटर और वेबसाइटों पर मुकदमा दर्ज किया गया है।

लड़की को रेप पीड़िता बताकर उसके कई वीडियो वायरल किए गए थे। इसकी तमाम लोग आलोचना भी कर रहे हैं।

लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के हाथरस के थाना चंदपा क्षेत्र में बिटिया के साथ कथित गैंगरेप व उसकी मौत के बाद तमाम तरह वीडियो व फोटो के जरिए बिटिया की मर्यादा को तार-तार करने वालों अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है।

दरअसल बिटिया के साथ हुई हैवानियत व उसकी मौत के बाद सोशल मीडिया पर तरह तरह के वीडियो व फोटो वायरल होते रहे। अब इसके लिए घटना से जुडे़ उन लोगों को पुलिस तलाश रही है, जिन्होंने लड़की का वीडियो बनाकर उस्तादी दिखाई थी। टीवी चैनलों पर भी ऐसे पोस्ट किए गए, जिनके संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही रोक लगा रखी है। सोशल मीडिया और चैनलों ने पहले भी ऐसी गलती की थी।

दरअसल हाथरस मामले को लेकर लड़की को रेप पीड़िता बताकर उसके कई वीडियो वायरल किए गए थे। इसकी तमाम लोग आलोचना भी कर रहे हैं। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी आपत्ति दर्ज कराई है। इसके बाद से पुलिस सोशल मीडिया पर अपलोड वीडियो डिलीट करवाने में सक्रिय हो गई है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नूतन ठाकुर द्वारा की गई शिकायत पर ट्विटर और वेबसाइटों पर मुकदमा दर्ज किया गया है। चंदपा थाने की पुलिस ने नूतन ठाकुर को अवगत कराया है कि रिपोर्ट दर्ज होनेे के बाद मृतका के वास्तविक फोटो और वीडियो हटवाए जा रहे हैं। उनके मुताबिक धारा 228ए आईपीसी के अनुसार, पीड़िता की पहचान को उजागर करना दंडनीय अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी निपुण सक्सेना मामले में स्पष्ट किया था कि किसी भी स्थिति में पीड़िता की पहचान का प्रकटीकरण नहीं किया जा सकता है। इसका उल्लंघन करने पर 02 साल की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। बता दें कि अप्रैल 2018 में उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार और हत्या की शिकार हुई कठुआ की आठ साल की बच्ची सहित बलात्कार पीड़िताओं की पहचान सार्वजनिक करने पर टिप्पणी की थी कि मृतक की भी गरिमा होती है।

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए, का मुद्दा उठाए जाने पर सख्त टिप्पणी की थी। पीठ ने कहा था कि मीडिया रिपोर्टिंग नाम लिए बगैर भी की जा सकती है। 

न्यायालय ने 12 मीडिया दफ्तरों को कठुआ बलात्कार पीड़िता की पहचान सार्वजनिक करने की वजह से दस-दस लाख रुपए बतौर मुआवजा अदा करने का आदेश दिया था, बाद में इन सभी ने क्षमा मांगी थी।

वहीं एक मामले में जून 2017 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी गलती की थी। उन्होंने  ट्विटर पर नाबालिग रेप पीड़िता की फोटो शेयर कर दी थी। उस दौरान नायडू की खूब आलोचना हुई थी। 

रेप पीड़िता अपने माता-पिता के साथ मुख्यमंत्री से मदद की गुहार करने गई थी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण की पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर शांता सिन्हा ने मुख्यमंत्री पर कार्रवाई की मांग की थी।

इस वर्तमान मामले में भी पुलिस सक्रिय होकर उन तमाम उस्तादी दिखाने वालों की तलाश कर रही है जिन्होंने बिटिया की मर्यादा को तार-तार करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।


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