उनके नाम पर खेल दिवस है, पद्म विभूषण है, लेकिन हाॅकी के जादूगर को भारत रत्न कब!

संपादक |
अपडेट हुआ है:

ध्यानचंद चंद्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस किया करते थे।
ध्यानचंद चंद्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस किया करते थे।

ध्यानचंद के भाई रूप सिंह भी भारतीय हाॅकी टीम के खिलाड़ी थे। 1932 के ओलंपिक में दोनों भाइयों ने भारतीय टीम के 35 में से 25 गोल अकेले किए थे।

देश मेजर ध्यानचंद की 116वीं जयंती मना रहा है। आज का दिन भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। लेकिन, हाॅकी के इस जादूगर को हम भारत रत्न मानने से पीछे क्यों हैं। वैसे ध्यानचंद को हाॅकी ही नहीं खेल जगत का सबसे नायाब खिलाड़ी माना जाता है। 

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद कभी हाॅकी खेलना ही चाहते थे। उनका मन रमता था, भारत के पारंपरिक खेल कुश्ती में। ध्यानचंद के पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश आर्मी में थे और हाॅकी खेला करते थे। ध्यानचंद ने खुद कहा था कि उन्हें ध्यान नहीं कि सेना में जाने से पहले कभी उन्होंने हाॅकी खेली हो। 

लेकिन भारत का यह लाल जब स्टिक और बाॅल के इस खेल में आया तो इसका जादूगर बन गया। उनके खेल का भय खुद अंग्रेजों के मन में इतना बैठा कि 1928 के ओलंपिक से पहले भारत से हारने के बाद ब्रिटेन ने अपनी टीम ही ओलंपिक के लिए नहीं भेजी। 

1928 में अपने पहले ओलंपिक में भारतीय हाॅकी टीम ने स्वर्ण जीतकर इतिहास रचा और इसी के साथ अखबारों की हेडलांइस में सेंटर फारवार्ड के खिलाड़ी ध्यानचंद हाॅकी के जादूगर कहे जाने लगे। पूरे टूर्नामेंट में अकेले 14 गोल उन्हीं के नाम थे। 

11 अगस्त 1932 को भारतीय हाॅकी टीम ने अमेरिका की टीम को 24-1 के अंतर से हराया था। यह विश्व रिकार्ड 71 साल बाद 2003 में आकर टूटा। ध्यानचंद के भाई रूप सिंह भी भारतीय हाॅकी टीम के खिलाड़ी थे। 1932 के ओलंपिक में दोनों भाइयों ने भारतीय टीम के 35 में से 25 गोल अकेले किए थे। 

1932 के ओलंपिक के बाद भारतीय टीम को टाइफून आॅफ ईस्ट कहा जाने लगा। ध्यानचंद ने अपने करियर के 185 मैचों में करीब 570 गोल किए। 3 दिसंबर 1979 को दिल्ली एम्स में निधन के बाद उनका झांसी के उसी हाॅकी मैदान में अंतिम संस्कार किया गया जहां से उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की थी। 

अपने जीवनकाल में 1956 में ध्यानचंद को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। हालांकि उनके चाहने वाले लंबे समय से उनके लिए भारत रत्न की मांग कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ध्यानचंद जैसा खिलाड़ी आज तक हुआ ही नहीं। 

यूं तो ध्यानचंद स्वयं अपने आप में पुरस्कार हैं। भारतीय हाॅकी में उनके योगदान के आगे सारे पुरस्कार फीके हैं लेकिन देश जिसे सबसे बड़ा पुरस्कार मानता है, वह पुरस्कार ध्यानचंद के नाम क्यों नहीं है। 2014 में खेल मंत्रालय ने उनके नाम की सिफारिश भारत रत्न के लिए की थी लेकिन बताया जाता है कि सरकार ने सचिन तेंदुलकर के नाम के चलते उनके नाम की सिफारिश को माना ही नहीं। सचिन के नाम की घोषणा नवंबर 2013 में ही कर दी गई थी। 

ऐसे में सवाल है कि जब भारत रत्न जैसा सम्मान देश के राजनेताओं तक को दिया जा सकता है तो आखिर ध्यानचंद ही उससे अछूते क्यों हैं। भारत सरकार एक बार पुनः उनके नाम को भारत रत्न के लिए प्रस्तावित करे तो भारत रत्न मेजर ध्यानचंद को मिलने से खेल जगत ही नहीं, स्वयं भारत रत्न की साख भी बढ़ जाएगी। 

चंद के पीछे की कहानी


ध्यान चंद के मूल नाम में चांद की जगह सिंह जुड़ा हुआ था। उस दौर में मैदानों में फ्लड लाइट्स नहीं होती थीं। ध्यानचंद चंद्रमा की रोशनी में अपनी नौकरी के बाद प्रैक्टिस किया करते थे। चांद की रोशनी में प्रैक्टिस करने के कारण उनके नाम के साथ चंद मशहूर हो गया। 


संबंधित खबरें