कलम आज ‘इनकी‘ जय बोल

संपादक |
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कानपुर में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
कानपुर में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

जिस समय प्रधानमंत्री लेह का दौरा कर रहे थे, उसी समय देश एक और बड़ी घटना का गवाह बन चुका था। यह घटना थी कानपुर, उत्तर प्रदेश के बिकरू गांव में उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवानों की शहादत की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को लेह पहुंचे। उनके लेह पहुंचते ही पूरा देश, वहां जाने का कारण और पीएम की यात्रा के उद्देश्य को जान गया। पीएम की यात्रा से गलवां घाटी की वो घटना भी ताजा हो गई जिसमें भारत ने चीन के सैनिकों को अपनी धरती से खदेड़ने के दौरान 20 बहादुर जवानों को खो दिया। 

मोदी का लेह जाना और सैनिकों से बात करना वाकई भारतीय सेना के लिए उत्साहवर्धक रहा। हमें अपने प्रधानमंत्री के इस कदम पर गर्व है। यहीं जवानों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘कलम आज उनकी जय बोल‘ की की पंक्तियां पढ़ीं - 

‘‘जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम आज उनकी जय बोल‘‘

जिस समय प्रधानमंत्री लेह का दौरा कर रहे थे, उसी समय देश एक और बड़ी घटना का गवाह बन चुका था। यह घटना थी कानपुर, उत्तर प्रदेश के बिकरू गांव में उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवानों की शहादत की। इन जवानों में एक सर्किल आॅफिसर, तीन एसओ और 4 कांस्टेबल थे शामिल थे। इसके अलावा पांच पुलिसकर्मी गोली लगने से गंभीर घायल भी हुए। 

दरअसल ये पुलिसकर्मी एक अपराधी को पकड़ने बिकरू गांव गए थे। एक ओर प्रधानमंत्री का लेह दौरा मीडिया में छाया हुआ था, दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की ये खबर। लेकिन, तीन जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश की खबर के लिए ही पहचाना जाना चाहिए क्योंकि ये घटना किसी आतंकी हमले से कम नहीं थी। 

उत्तर प्रदेश पुलिस में आईजी अमिताभ ठाकुर ने तो लिखा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के इतिहास में पुलिस पर इतना बड़ा हमला नहीं सुना। उन्होंने याद किया कि एक बार मिर्जापुर जिले में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान भी शहादत इतनी बड़ी ही हुई थी। 

शहादत इसलिए भी बड़ी थी क्योंकि हमारी सिविल पुलिस इस प्रकार के हमलों के लिए अच्छी तरह प्रशिक्षित नहीं होती। इसके बाद भी जवान गए। उन्हें रोकने के लिए बदमाशों ने जेसीबी लगाकर रास्ता रोका लेकिन वे गाड़ी से उतरकर बदमाश को पकड़ने गए, जबकि उन्हें पता था कि उनका सामना मौत से भी हो सकता है। 

वास्तव में वे निडर और कर्तव्यपथ का अनुसरण करते हुए आगे बढे़ होंगे। उन्हें इसका भी ज्ञान होगा कि जैसा हमारा विभाग है, उस परिस्थिति में उनकी जानकारी भी लीक हो सकती है। फिर भी वे एक सैनिक की भांति बढ़े। ऐसे में गलवां घाटी में शहीद सैनिक और इन पुलिस के जवानों का शौर्य एक सा ही है। 

इसलिए तीन जुलाई 2020 का दिन इन जवानों की जय बोलने का है। वे जवान जिनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो अपने परिवार का एक मात्र सहारा थे। आगरा के बबलू कुमार के पिता और भाई मजदूरी कर गुजारा करते हैं। 2018 में जब बबलू की नौकरी लगी तो परिवार को उम्मीद बंधी कि अब दिन संवर जाएंगे। 

बबलू उस पथ पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर गए जिसके लिए उन्होंने शपथ खाई थी। सरकार की सहायता राशि परिवार संभलने का मौका देगी लेकिन कोई परिवार अपने बेटे की कीमत पर क्या कोई सहायता चाहेगा। 

शहीद सीओ बिल्हौर देवेंद्र कुमार मिश्र का तो नौ माह बाद रिटायरमेंट था लेकिन वे तिरंगा ओढ़कर घर लौटे।

ऐसे में कलम को आज इन जवानों की जय बोलना है। 3 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश पुलिस हमेशा याद रखे। हम भारतवासी भी इस सर्वोच्च बलिदान को नहीं भूलेंगे।


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