जौनपुर के रास्ते इस तरह अयोध्या पहुंचे थे कार सेवक

टीम भारत दीप |

लोगों में जबर्दस्त गुस्सा था। हर कोई विवादित ढांचे को गिरा देना चाहता था।
लोगों में जबर्दस्त गुस्सा था। हर कोई विवादित ढांचे को गिरा देना चाहता था।

ट्रेन और बसों समेत दूसरे साधन नहीं चल रहे थे। इसके बावजूद हजारों की भीड़ अलग—अलग झुंड में पैदल ही अयोध्या का रास्ता तय कर रही थी।

जौनपुर। छह दिसंबर 1991 को अयोध्या में हजारों—लाखों राम भक्तों की भीड़ मौजूद थी। विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। शायद इस आंदोलन की रूप—रेखा पहले ही तैयार हो चुकी थी। छह दिसंबर को जो हुआ या जो होने वाला था, इस बारे में अधिकतर कार सेवक पहले से वहां तय करके ही पहुंचे थे। बिहार, बंगाल से हजारों की तादाद में रामभक्त जौनपुर के रास्ते ही अयोध्या पहुंचे थे।

बात नवंबर माह 1991 की है। सारे रास्ते बंद ​कर दिए गए थे। ट्रेन और बसों समेत दूसरे साधन नहीं चल रहे थे। इसके बावजूद हजारों की भीड़ अलग—अलग झुंड में पैदल ही अयोध्या का रास्ता तय कर रही थी।

रास्ते में जौनपुर में बिहार और बंगाल के हजारों कार सेवकों के लिए जलपान और खानपान की व्यवस्था की गई थी। जगह—जगह उन्हें भोजन कराया जा रहा था। तब के आंदोलन में शामिल हुए कुछ भाजपा नेताओं नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि लोगों में जबर्दस्त गुस्सा था। हर कोई विवादित ढांचे को गिरा देना चाहता था।

जौनपुर से भी हजारों की तादाद में रामभक्त वहां जाना चाहते थे। जिसमें राजा जौनपुर यादवेंद्र दुबे, उमानाथ सिंह, सुरेंद्र सिंह राम इकबाल सिंह आदि शामिल थे। इन लोगों को स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया गया था। बीआरपी कॉलेज में अस्थाई जेल में बंद कर दिया गया था। 

मुख्य रास्तों पर पुलिस का पहरा था। इस वजह से राम भक्तों ने खेत—खलिहान वालेे रास्ते चुने। खेतों के ज़रिए नदी—नाला और नहर आदि पारकर आंबेडकरनगर पहुुंचे और वहीं से अयोध्या पहुंचे। रास्ते में दूसरे रामभक्त उनकी सेवा करते रहे। 


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