स्मृति शेष:'लगा सका न कोई उसके कद का अंदाज़ा,वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था'

टीम भारत दीप |

उनके जाने से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जो कभी भरा नहीं जा सकता।
उनके जाने से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जो कभी भरा नहीं जा सकता।

रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे अपने मुखिया के जाने से गमगीन है। अनिल दुबे ने चौ.साहब के साथ गुजारे अपने लम्हों को याद करते हुए इन पक्तियों के जरिए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने चौ. साहब के व्यक्तित्व को लेकर कहा,'लगा सका न कोई उसके कद का अंदाज़ा, वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था।'

लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक व मुखिया चौधरी अजित सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। कोरोना वायरस ने उनकी जिन्दगी लील ली। आज आई इस खबर को लेकर चहुंओर शोक की लहर है। उनके जाने से रालोद परिवार काफी दुखी है। इस बीच रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे अपने मुखिया के जाने से गमगीन है।

अनिल दुबे ने चौ.साहब के साथ गुजारे अपने लम्हों को याद करते हुए इन पक्तियों के जरिए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने चौ. साहब के व्यक्तित्व को लेकर कहा,'लगा सका न कोई उसके कद का अंदाज़ा, वो आसमां था मगर सर झुकाये चलता था।'

दरअसल राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष, 8 बार के लोकसभा/राज्यसभा सांसद एवं 4 बार केन्द्रीय मंत्री रह चुके चौ. अजित सिंह के निधन के साथ भारतीय राजनीति में एक युग का अंत हो गया। उन्हें कृषि और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में गहरी रुचि थी।

जनता का दर्द समझने की ताकत तो जैसे उनके खून में ही थी। पेशे से कंप्यूटर वैज्ञानिक रहे, चौधरी साहब ने किसान व वंचित वर्ग को उनकी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया तथा उन्हें उनके हक़ दिलाने के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष किया। चौ. अजित सिंह देश के ग्रामीण विकास केंद्रित मॉडल के एक प्रमुख वकील थे।

उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बढ़े हुए निवेश और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए स्थायी प्रौद्योगिकियों के प्रसार और किसानों के लिए आर्थिक पैदावार बढ़ाने के उपायों पर जीवनपर्यन्त जोर दिया।

विशेष रूप से 1996 में, उन्होंने चीनी मिलों के बीच की दूरी को 25 किमी से घटाकर 15 किमी कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप चीनी उद्योग में अधिक निवेश और प्रतिस्पर्धा बढ़ी और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ।

कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने कोल्ड स्टोरेज क्षमता को बढ़ाने के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना भी शुरू की, जिसने उद्योग में निजी निवेश के लिए आवश्यक प्रवाह को सक्षम किया। 2002 के सूखे के संकट का सामना कर रहे किसानों को राहत देने के लिए कृषि मंत्री चौ. अजीत सिंह ने सभी संभव प्रयास किये।

इसके लिए लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। उन्होंने कैलमिटी रिलीफ फंड (सीआरएफ) से सहायता को सभी किसानों को उपलब्ध करवाया, जो उस समय तक दो हेक्टेयर या उससे कम भूमि वाले किसानों तक ही सीमित थी। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में कृषक समुदायों के लिए महत्वपूर्ण था, जहां औसत भूस्खलन अधिक था लेकिन उत्पादकता कम थी।

उन्होंने देश में पुरातन और असमान भूमि अधिग्रहण कानूनों के खिलाफ जनता के आंदोलन को गति दी थी और दिल्ली में गन्ना किसानों द्वारा एफआरपी संशोधन (2009) के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के खिलाफ सफल आंदोलन भी किया। इसके फलस्वरूप देश में गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ।

इसी के साथ साथ उन्होंने आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित भारत के कुछ बड़े और प्रशासनिक रूप से शासन न करने योग्य राज्यों के पुनर्गठन के लिए आंदोलन किया। चौधरी साहब को भारतीय राजनीति में सदैव एक कुशल वक्ता एवं किसान व वंचित वर्ग को उनका हक़ दिलवाने वाले एक संघर्षशील राजनेता के रूप में याद रखा जाएगा।

उनके जाने से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया जो कभी भरा नहीं जा सकता। 
 


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