शिवकाशी आतिशबाजी की राजधानी: यहां तीन सौ दिन बनते है पटाखे, हादसे ना के बराबर

टीम भारत दीप |

शिवकाशी पूर्ण रूप से पटाखा व्यवसाय के भरोसे है।
शिवकाशी पूर्ण रूप से पटाखा व्यवसाय के भरोसे है।

ऐसे में देश का एक शहर ऐसा भी है जिसे आतिशबाजी की राजधानी के रूप में जाना जाता है। यहां साल के तीन सौ दिन पटाखा निर्माण होता है। इसके बाद भी यहां निर्माण के दौरान होने वाली दुर्घटनाएं लगभग जीरो है।

तमिलनायडु। पटाखा अब हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है। कोई भी खुशी का मौका हो,उसे सेलिब्रेट करने के लिए पटाखा बहुत जरूरी बनता जा रहा है। यह जितना खुशी देता है।

उतना ही गम हर साल कई परिवारों को देता है। हर साल उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पटाखा बनाते समय कई लोगों की जान चली जाती है विस्फोट से कई घर जमींदोज हो जाते है। ऐसे में देश का एक शहर ऐसा भी है जिसे आतिशबाजी की राजधानी के रूप में जाना जाता है।

यहां साल के तीन सौ दिन पटाखा निर्माण होता है। इसके बाद भी यहां निर्माण के दौरान होने वाली दुर्घटनाएं लगभग जीरो है। इसकी मुख्य वजह यहां का मौसम और यहां विकसित की गई सुविधाएं है। 

शिवकाशी का दीवाली के साथ गहरा नाता है। देश में 'आतिशबाजी की राजधानी' के तौर पर प्रसिद्ध इस छोटे से शहर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटाखा निर्माण पर टिकी हुई है। शिवकाशी में देश का 90 प्रतिशत पटाखा बनता है। एक समय सूखे से बेहाल शहर इस समय रोशनी का व्यापार करने वाला सबसे बड़ा केंद्र बन गया। 

19वीं सदी की शुरुआत में कोलकाता में माचिस की एक फैक्ट्री चलती थी। शिवकाशी में सूखा और रोजगार की कमी से परेशान दो भाई शानमुगा नाडर और पी अय्या नाडर कोलकाता की इसी फैक्ट्री में पहुंचे। यहां माचिस बनाते हुए उन्होंने पटाखा निर्माण के बारे में भी जाना। वे वापस अपने गांव लौटे और पटाखा निर्माण का कारोबार शुरू किया।

इस कारोबार के लिए शिवकाशी का सूखा मौसम वरदान साबित हुआ। आतिशबाजी निर्माण के दौरान मौसम में थोड़ी भी नमी होना बारूद की कंपोजिशन को गड़बड़ा सकता है, जिसका परिणाम घातक ही रहता है।

इन मायनों में शहर का रूखा-सूखा मौसम काम के लिए अच्छा है। दो भाइयों की पहल ने धीरे-धीरे पूरे शहर को रोजगार कमाने का तरीका सुझा दिया।अब यहां सात लाख से ज्यादा लोग पटाखा निर्माण व्यवसाय में लगे हुए हैं। नाडर समुदाय अब भी इस काम में वर्चस्व रखता है। 

सुरक्षा के लिए शहर में अपना खुद का फायरवर्क्स रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर (एफआरडीसी) है। अत्याधुनिक अस्पताल है। आतिशबाजी इंडस्ट्री के लिए यहां मानक तय होते हैं।

इसमें कच्चे माल की जांच, पटाखा निर्माण के दौरान सुरक्षा मानकों की जांच और निर्माण उद्योग में जुटे हुए लोगों के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करने पर जोर दिया जाता है।  इस कारण निर्माण के दौरान होने वाली दुर्घटना में यहां नुकसान कम होता है। 
 


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