पीएम मोदी ने बांग्लादेश में जिस आंदोलन में भाग लेने की बात कही उसकी यूं हुई शुरुआत

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

चूंकि पहले ये भारत का ही हिस्सा था और यहां से शरणार्थियों के भारत में आने का क्रम जारी था।
चूंकि पहले ये भारत का ही हिस्सा था और यहां से शरणार्थियों के भारत में आने का क्रम जारी था।

कई लोगों के मन में यह सवाल होगा कि आखिर बांग्लादेश के संघर्ष में हमारे देश का नागरिक कैसे भाग ले सकता है? यह जानने के लिए आपको इतिहास में जाना पड़ेगा। आप यह तो जानते ही होंगे कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। दरअसल उस दिन भारत ही आजाद नहीं हुआ था।

इंटरनेशनल डेस्क। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय बांग्लादेश की यात्रा पर हैं। शुक्रवार 26 मार्च को वे बांग्लादेश के स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि 20-22 साल की उम्र में उन्होंने भी बांग्लादेश की मुक्ति के संग्राम में योगदान दिया था। 

कई लोगों के मन में  यह सवाल होगा कि आखिर बांग्लादेश के संघर्ष में हमारे देश का नागरिक कैसे भाग ले सकता है? यह जानने के लिए आपको इतिहास में जाना पड़ेगा। आप यह तो जानते ही होंगे कि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था।

दरअसल उस दिन भारत ही आजाद नहीं हुआ था। एक दिन पहले हमारे देश के दो हिस्से भी हमसे अलग हो गए थे। जिनमें से एक को आज हम पाकिस्तान के नाम से जानते हैं। यह वर्तमान में भारत के पश्चिम में है। दूसरा हिस्सा भी पाकिस्तान ही था जिसे आज बांग्लादेश और तब पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। यह हिस्सा बंगाल से अलग होकर बना। 

चूंकि यह बंगाल का हिस्सा था, इसलिए यहां की भाषा और संस्कृति दोनों बंगाली थीं। मुस्लिम बहुल होने के बाद भी यहां लोग बंगाली को ही प्राथमिकता दे रहे थे। 1950 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के बाद से लियाकत अली सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान पर उर्दू को आधिकारिक भाषा के रूप में थोपना शुरू कर दिया। 

साल 1952 में इसी उर्दू विरोध का जो आंदोलन शुरू  हुआ वही बांग्लादेश की मुक्ति के संग्राम का कारण बना। इस आंदोलन को प्रमुख रूप से बांग्लादेश के नेता शेख मुजीबुर्रहमान लीड कर रहे थे।

इन्ही की बेटी शेख हसीना आज बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं। भाषा विरोध के रूप में शुरू हुए इस आंदोलन को इतना समर्थन मिला कि 25 मार्च 1971 को इसे कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट के नाम से हिंसक कार्रवाई शुरू की। 26 मार्च 1971 को बांग्ला मुक्ति मोर्चा ने स्वतंत्रता की घोषणा की। पाकिस्तानी सेना की इस बर्बर कार्रवाई में भारी नरसंहार (Genocide) हुआ।

बाद में भारत से युद्ध के बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेके और आज जो बांग्लादेश हम देख रहे हैं उसका एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ। तब से बांग्लादेश अपनी स्वतंत्रता को घोषणा की तारीख यानी 26 मार्च को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता आ रहा है।

अब बात पीएम मोदी की

आप अभी तक ये सोच रहे होंगे कि बाकी सब तो ठीक लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस आंदोलन में कैसे भाग लिया, तो आपको बता दें कि बांग्ला मुक्ति संघर्ष को भारत के राइट विंग नेताओं का समर्थन था।

चूंकि पहले ये भारत का ही हिस्सा था और यहां से शरणार्थियों के भारत में आने का क्रम जारी था। इसलिए बांग्ला मुक्ति संग्राम से जुड़े आंदोलन भारत में भी हो रहे थे और वे भारत में चर्चा का विषय थे।


संबंधित खबरें