उत्तराखंड आपदाः ऋषिगंगा में बनी यह खतरनाक झील अब बढ़ा रही एक और आपदा की आशंका

टीम भारत दीप |

प्रवाह रुका है तो इसका मतलब है कि नदी का पानी कहीं न कहीं एकजुट हो रहा है।
प्रवाह रुका है तो इसका मतलब है कि नदी का पानी कहीं न कहीं एकजुट हो रहा है।

चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद मलबा जमा होने के कारण ऋषिगंगा नदी की ऊपरी धारा में बहाव रुक चुका है। जानकारी के मुताबिक बहाव रूकने के चलते नदी के पानी ने झील का रूप ले लिया है।

उत्तराखंड। उत्तराखंड आपदा को लेकर प्रशासन पूरी मुस्तैदी से बचाव कार्य में जुटा है। लेकिन अब ऋषिगंगा पर बनी एक खतरनाक झील एक और आशंका को जन्म दे रही है।  दरअसल उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने के बाद मलबा जमा होने के कारण ऋषिगंगा नदी की ऊपरी धारा में बहाव रुक चुका है। जानकारी के मुताबिक बहाव रूकने के चलते नदी के पानी ने झील का रूप ले लिया है।

आशंका  है कि लगातार पानी के बढ़ते दबाव के कारण अगर झील टूटी तो पहाड़ों से पानी काफी रफ्तार से नीचे आएगा, जो निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो राहत कार्य भी प्रभावित हो सकता है। वहीं मौके पर पहुंचे वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि, जमा पानी का रंग नीला दिखाई दे रहा है।

इसलिए हो सकता है कि यह पानी काफी पुराना हो और ऋषिगंगा की ऊपरी धारा में इस तरह की पहले से कोई झील हो। अगर ऐसा है तो यह बहुत चिंता की बात नहीं है। वहीं दूसरी ओर यदि मलबा और गाद जमा होने के कारण ऋषिगंगा का प्रवाह रुका है तो इसका मतलब है कि नदी का पानी कहीं न कहीं एकजुट हो रहा है।

ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ऋषिगंगा के पास जो झील दिख रही है, वह कितनी बड़ी है और उसमें कितना पानी जमा है। यदि झील बड़ी हुई तो उसके टूटने से पहाड़ के निचले हिस्सों में बाढ़ जैसी स्थिति बन सकती है। बताया गया कि यदि झील बड़ी हुई तो वहां से पानी को कंट्रोल्ड तरीके से निकालने के उपाय करने पड़ेंगे।

वहीं दूसरी ओर वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जीयोलॉजी के ग्लेशियोलॉजी ऐड हाइड्रोलॉजी के सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक चमोली आपदा के तीन कारण सामने आ रहे हैं। ग्लेशियर का कुछ हिस्सा 6000 से अधिक की ऊंचाई से टूट कर गिरा। इसके अलावा सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि दो फरवरी को यहां बर्फ काफी कम थी।

लेकिन पांच फरवरी को बर्फ अधिक थी। बता दें कि हादसा सात फरवरी को हुआ था। बताया गया कि बर्फ के वजन और ग्रेविटी की वजह से ग्लेशियर टूटकर नीचे गिरा होगा। हालांकि, इतनी जल्दी बर्फ पिघल तो नहीं सकती, लेकिन घर्षण के कारण काफी तेजी से पिघली होगी। यही पिघलकर पानी बनी होगी और दो किलोमीटर तक नीचे आई।

वहीं तीसरा पहलू यह बताया गया है कि कुछ कुछ ग्लेशियर लेक इन जगहों पर हैं, लेकिन इसकी पुष्टि कम है।


 


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