वट सावित्री व्रत व शनि जयंती गुरूवार को, जानें इसका महत्व

टीम भारत दीप |

पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है।
पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है।

शनि ग्रह व पितृ बाधा से पीड़ित लोग पीपल वृक्ष के पूजन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं। उन्होंने बताया गया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही शनि जयन्ती मनाई जाती है इसी दिन छाया व भगवान सूर्य के अंश से शनि का प्रादूर्भाव हुआ था । महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं.राकेश बताते हैं कि यह अमावस्या साल में लगभग एक ही बार आती है। हिन्दू धर्म में इस अमावस्या का विशेष महत्व है।

धर्म डेस्क। शनि जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या तिथि पर मनाई जाती हैं। इस बार शनि जयंती 10 जून गुरुवार को पड़ रही है। इस बार ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या के दिन गुरुवार को रोहिणी नक्षत्र भोग करेगी। इस बार इसी दिन वट सावित्री व्रत भी पड़ रहा है। इस कारण इस दिन बरगद वृक्ष के पूजन से जहां महिलाओं के पति दीर्घायु को प्राप्त होते हैं,

वहीं इस दिन पीपल के वृक्ष पर तिल और जल अर्पित करने से पितृगण व शनि देव प्रसन्न होते है। ज्योतिषाचार्य राकेश पाण्डेय के मुताबिक स्नानदान अमावस्या,वट सावित्री व्रत व शनि जयन्ती विशेष फलदायक है। इसलिए शनि ग्रह व पितृ बाधा से पीड़ित लोग पीपल वृक्ष के पूजन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति कर सकते हैं।

उन्होंने बताया गया कि ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही शनि जयन्ती मनाई जाती है इसी दिन छाया व भगवान सूर्य के अंश से शनि का प्रादूर्भाव हुआ था । महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान ट्रस्ट के ज्योतिषाचार्य पं.राकेश बताते हैं कि यह अमावस्या साल में लगभग एक ही बार आती है। हिन्दू धर्म में इस अमावस्या का विशेष महत्व है।

विवाहित स्त्रियों द्वारा इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने का विधान है। इस दिन मौन व्रत रहने से सहस्र गोदान का फल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि इस दिन विवाहित स्त्रियां बरगद के वृक्ष के जड़ में दूध,जल,पुष्प,अक्षत,चन्दन इत्यादि से पूजा करती हैं और वृक्ष के चारों ओर 108 बार धागा लपेटकर परिक्रमा करती हैं। इस दिन भंवरी देने की भी परंपरा प्राचीन काल से रही है।

धान,पान और खड़ी हल्दी को मिला कर उसे विधान पूर्वक तुलसी के पेड़ पर चढ़ाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा।

ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों की आत्माओं को शान्ति मिलती है।


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