दिल्ली की घटना पर एक पुलिस अधिकारी के 'मन की बात', हम मारें तो भी मरें, ना मारें तो भी

टीम भारत दीप |
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एक पुलिस अधिकारी के साथ ही  किसान का बेटा होते हुए अपने मन की बात सोशल मीडिया पर रखी।
एक पुलिस अधिकारी के साथ ही किसान का बेटा होते हुए अपने मन की बात सोशल मीडिया पर रखी।

किसान आंदोलन के नाम पर जो अराजकता दिल्ली में फैली उसके बाद यह मुद्दा सभी के बीच चर्चा का विषय बन गया है। आपने अब तक किसानों की बात हर माध्यम से सुनी होगी लेकिन इस अराजकता से आम आदमी को बचाने वाली पुलिस के मन की बात कोई नहीं जानता।

सोशल मीडिया डेस्क।  गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में हुए उपद्रव और लाल किले की घटना के बाद देश का हर नागरिक व्यथित है। कल पूरे दिन सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी भावनाएं जाहिर कीं। कुछ घटना के समर्थन में दिखे तो अधिकतर विरोध में। 

किसान आंदोलन के नाम पर जो अराजकता दिल्ली में फैली उसके बाद यह मुद्दा सभी के बीच चर्चा का विषय बन गया है। आपने अब तक किसानों की बात हर माध्यम से सुनी होगी लेकिन इस अराजकता से आम आदमी को बचाने वाली पुलिस के मन की बात कोई नहीं जानता। 

ऐसे में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में  तैनात डिप्टी एसपी अभय नारायण राय ने एक पुलिस अधिकारी के साथ-साथ किसान का बेटा होते हुए दोहरी अपने मन की बात सोशल मीडिया पर रखी। 

राय ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि-  

आज मेरा मन बहुत व्यथित और दुविधा में है। कुछ सवाल मेरे मन में बार-बार आ रहे हैं। मेरा पहला सवाल  क्या दाता कभी याचक हो सकता है । जब से होश संभाला किसानों को अन्नदाता ही सुनता आया।

यदि किसान अन्नदाता है तो भिखारियों की तरह याचना बार-बार क्यों कर रहे हैं। इस फसल की कीमत कितनी होनी चाहिए उस फसल की कीमत उतनी होनी चाहिए। यह बार-बार मोल भाव क्यों कर रहे हैं।

मुझे लगता है कि यह अन्नदाता शब्द एक राजनीतिक जुमला है जिसे आजादी के बाद से भारत के किसानों को सुना सुना कर उनका निरंतर शोषण किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा। हम किसान भाइयों को अन्नदाता कहलाने का शौक त्यागना होगा ।

हम अन्नदाता नहीं है। दाता तो वह होता है जो राजा होता है जिसे ईश्वर धन संपदा वैभव और सबसे बढ़कर दान करने की शक्ति से नवाजा होता है। किसान खेती का व्यवसाय करने वाला एक व्यवसाई है जिसे अपने व्यवसाय की उचित कीमत चाहिए। मुझे लगता है कि शायद इसी बात की जद्दोजहद विगत 2 महीने से दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसान कर रहे हैं।

मेरा दूसरा सवाल मैं कौन हूं एक किसान का बेटा जो कुछ दिनों पहले तक उन्हीं खेतों में कुदाल फावड़े खुरपी हसिया और हल बैल लिए खेती कर रहा था अथवा वेतन भोगी पुलिसकर्मी जिसकी जिम्मेदारी शांति एवं कानून व्यवस्था बनाए रखना है जिसके सामने खड़ा किसान है। 

मेरी दुविधा यह है कि हम मारें तो भी हम मारें ना मारें तो भी हम मरें। क्योंकि आमने-सामने सामने तो हम ही हैं। यदि कोई सामने नहीं है तो तथाकथित हमारे राजनेता चैनलों पर बैठकर बहस करने वाले समीक्षा करने वाले हमारे समाज के प्रबुद्ध लोग।

मेरा तीसरा सवाल आखिर हमारे देश कि राजनीति से कूटनीति कब जाएगी। यह राजनीति में होने वाली कूटनीति ना केवल संसद और विधानसभाओं में चल रही है बल्कि विभिन्न व्यवस्थाओं और भिन्न-भिन्न समाज के तथाकथित नेताओं के द्वारा भी की जा रही है। 

मसलन किसान नेता फलां पार्टी के नेता ढमाका पार्टी के नेता। मुझे लगता है अब हमें जुमले और भावनाओं को कुरेदने वाली बातें से ऊपर उठकर फूट डालो और राजनीति करो के कुत्सित विचारों से ऊपर उठकर एक स्वस्थ मन से अपने राष्ट्र के लिए अपने राष्ट्र में निवास करने वाले विविध प्रकार के देशवासियों के उत्थान के लिए मनन और चिंतन करना होगा। 

यह कार्य युवा शक्ति के बगैर संभव नहीं है। लेकिन युवा शक्ति भीम आर्मी सवर्ण आर्मी तमाम राजनीतिक दलों की युवा मोर्चा आर्मी से ऊपर उठकर भारत आर्मी बनकर एकजुट होकर राष्ट्र को एक बार फिर अपनी जवानी समर्पित करें यह केवल तभी संभव होगा। 

सुधी पाठकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि अगर व्यथित मन से भावनाओं में बहकर मैंने कुछ ऐसा लिख दिया हो जिससे आप को चोट पहुंच रही हो तो कृपया करके मुझे क्षमा करें।


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