इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार से पूछा कितने स्कूलों में नहीं है एक भी छात्र

टीम भारत दीप |

कोर्ट ने राज्य सरकार से पूरे प्रदेश के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड मांगा है।
कोर्ट ने राज्य सरकार से पूरे प्रदेश के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड मांगा है।

याचिका में यात्री द्वारा प्रयागराज के दारागंज स्थित उच्च प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति का हवाला दिया गया है। मामले में प्रतिपक्षी खंड शिक्षाधिकारी की एक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया गया है कि पूर्व माध्यमिक विद्यालय में वर्तमान में एक भी छात्र नहीं है, ऐसा अध्यापकों व शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से हो रहा है।

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार से एक मामले की सुनवाई करते हुए  पूछा है कि सरकार बताए कि प्रदेश में कितने ऐसे प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां एक भी छात्र नहीं पढ़ रहा है। कोर्ट ने परिषदीय विद्यालयों की खस्ता हालत और शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर भी सरकार से जानकारी मांगी है।

मालूम हो कि नंदलाल की ओर दायर एक याचिक पर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा था। याचिका में यात्री द्वारा प्रयागराज के दारागंज स्थित उच्च प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालय सहित कई विद्यालयों की बदहाल स्थिति का हवाला दिया गया है।

मामले में प्रतिपक्षी खंड शिक्षाधिकारी की एक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट को बताया गया है कि पूर्व माध्यमिक विद्यालय में वर्तमान में एक भी छात्र नहीं है, ऐसा अध्यापकों व शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से हो रहा है। इसी प्रकार अन्य विद्यालयों में शिक्षा का स्तर काफी खराब है।

कई शिक्षकों को कक्षा चार के स्तर की अंग्रेजी भी नहीं आती है। हिंदी भी शुद्ध नहीं है। विज्ञान के फॉर्मूले मालूम नहीं हैं। याची की ओर से कहा गया कि विद्यालयों की दुर्दशा के कारण अभिभावक अपने बच्चों को परिषदीय विद्यालयों में नहीं भेज रहे हैं जिससे छात्रों की संख्या शून्य हो गई है। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से पूरे प्रदेश के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या का रिकॉर्ड मांगा है। 

अध्यापकों की मनानी

यह देखने में आया है कि परिषदीय विद्यालयों के शिक्षक पढ़ाने में कम रूचि लेते है। कई शिक्षकों का ज्ञान स्तर इतना कमजोर है कि वह किताब को भी सही तरीके से नहीं पढ़ा पाते हैं। अधिकांश शिक्षक स्कूल आते जरूर है,लेकिन वह अन्य कामों में खुद को बिजी रखते है, इसलिए अभिभावकों का सरकारी स्कूलों से भरोसा खत्म होता जा रहा है और वह मजबूरी में प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को भेज रहे है।

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