नवरात्र 5वां दिन: मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप जिनकी गोद में विराजमान हैं ये भगवान

टीम भारत दीप |
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मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना कर अपनी सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा।
मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना कर अपनी सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा।

ज्योतिषाचार्य अंजनी मिश्रा ने नवरात्र के पांचवें दिन के महत्व को बताते हुए कहा कि इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध चक्र’ में स्थित होता है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

लखनऊ। नवरात्र उत्सव के दौरान मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। आज पांचवें दिन श्रद्धालुओं ने मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना कर अपनी सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगा। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। 

इस दिन साधक की समस्त बाहरी क्रियाओं और चित्तवृतियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरुप की ओर अग्रसर होता है। उसका मन समस्त लौकिक, सांसारिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासनामां स्कंदमाता के स्वरुप में तल्लीन होता है। 

ज्योतिषाचार्य अंजनी मिश्रा ने नवरात्र के पांचवें दिन के महत्व को बताते हुए कहा कि इस दिन साधक का मन ‘विशुद्ध चक्र’ में स्थित होता है। भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। 

भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं, जो भगवान भोलेनाथ के पुत्र हैं। देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है, इनका वाहन मयूर है।

उन्होंने बताया कि स्कंदमाता के विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे हुए हैं। शास्त्रानुसार सिंह पर सवार स्कन्दमातृस्वरूपणी देवी की चार भुजाएं हैं, जिसमें देवी अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं। 

नीचे वाली दांईं भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं, ऊपर वाली बाईं भुजा से इन्होंने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है। नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्णन पूर्णतः शुभ है और ये कमल के आसान पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। 

मां स्कंदमाता के पूजन फल के विषय में बताते हुए ज्योतिषार्चा अंजनी मिश्रा बताते हैं कि स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धि तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। उसे परम शांति एवं सुख का अनुभव होने लगता है। 

स्कंदमाता की उपासना से बालरूप कार्तिकेय की स्वयं ही उपासना हो जाती है, यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है अतः साधक को इनकी उपासना पर विशेष ध्यान देना चाहिए। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक आलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। 

संतान सुख और रोगमुक्ति के लिए स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। पूजन विधि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए। 

मां के इस स्वरूप की पूजा कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से करें। चंदन लगाएं ,माता के सामने घी का दीपक जलाएं। आज के दिन भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

 
मां स्कंदमाता का मंत्र--

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

या देवी सर्वभूतेषुमां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।


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