ज्ञानवापी मस्जिद केस: फैसले को देंगे चुनौती,मौलाना बोले, कुछ लोग बाबरी मस्जिद जैसा मुद्दा बनाने में जुटे

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

इसी से संबंधित हाईकोर्ट में एक मुकदमा विचाराधीन है।
इसी से संबंधित हाईकोर्ट में एक मुकदमा विचाराधीन है।

अब कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की तैयारी की जा रही है। वहीं एक पक्ष द्वारा ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस केस को बाबरी मस्जिद की तरह राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है। दरअसल यूपी के वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने गुरूवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिसर में बने ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी है।

लखनऊ। बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर और इसी परिसर में बने ज्ञानवापी मजिस्द को लेकर गुरूवार को आए वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले के बाद हलचल तेज हो गई है। अब कोर्ट के फैसले को चुनौती देने की तैयारी की जा रही है। वहीं एक पक्ष द्वारा ऐसा भी कहा जा रहा है कि इस केस को बाबरी मस्जिद की तरह राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है।

दरअसल यूपी के वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने गुरूवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिसर में बने ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद में पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी है।

अदालत द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार पुरातत्व विभाग की पांच सदस्यीय टीम पूरे परिसर की खुदाई कर इस बात का अध्यन करेगी कि क्या ज्ञानवापी परिसर के नीचे जमीन में मंदिर के अवशेष हैं या नहीं? फैसले के बाद इस मसले पर अब हलचल तेज हो गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोर्ट के फैसले को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी के मुताबिक वो इस फैसले को चुनौती देंगे। उनके मुताबिक 1991 के प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट में यह बात साफ लिखी है कि बाबरी मस्जिद और दूसरे इबादतगाह पर 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बदलाव नहीं किया जाएगा।

कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को वहां मस्जिद थी। यह बात न्यायालय पहले ही मान चुका है। वहीं मामले को लेकर ऑल इंडिया तजीम उलमा-ए-इस्लाम के महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के मुताबिक बनारस की ऐतिहासिक ज्ञानवापी मस्जिद मुगल बादशाह हजरत औरंगजेब आलमगीर ने बनवाई थी ये सरासर झूठ बात है।

बताया गया कि साल 1669 के वक्फ नामा का हवाला दिया जा रहा है, मगर उसके अध्ययन से कहीं यह बात साबित नहीं होती कि मंदिर को तोड़ा गया है। उनके मुताबिक सिविल जज के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष फैसले का अध्ययन करने के बाद जिला कोर्ट में अपील दायर करेगा। बताया गया कि चूंकि इसी से संबंधित हाईकोर्ट में एक मुकदमा विचाराधीन है।

कानून के मुताबिक अगर एक ही मामले में सिविल जज और हाईकोर्ट में केस चल रहा है तो हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा। बताया गया कि जब तक हाईकोर्ट का कोई फैसला नहीं आ जाता उस वक्त तक सिविल कोर्ट कोई फैसला नहीं सुना सकती है।

मौलाना के मुताबिक केंद्र सरकार ने 1991 में धर्म स्थलों से जुड़े विवादों में यथा स्थिति बनाए रखने के लिए एक कानून पार्लियामेंट में पास किया था। इस कानून में बाबरी मस्जिद मुद्दे को बाहर रखा गया था। बताया गया कि इस कानून में स्पष्ट तौर पर यह कहा गया है कि 1947 से पहले जो धर्म स्थल जिस स्थिति में था उसी स्थिति में रहेगा।

बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद को भी इसी कानून के तहत सुरक्षा मिली हुई है। मौलाना के मुताबिक चंद फिरकापरस्त ताकतें भारत की गंगा—जमुनी तहजीब और हिंदू-मुस्लिम इत्तेहाद को तोड़ने में लगी हुई हैं। कहा गया कि देश के लोगों को इससे होशियार रहना चाहिए।

उनके मुताबिक ज्ञानवापी मस्जिद को बाबरी मस्जिद की तरह राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है।


संबंधित खबरें