लखनऊ के शिक्षाविद डॉ. कल्बे सादिक का निमोनिया से इंतकाल, आज होंगे सुपुर्दे खाक

टीम भारत दीप |
अपडेट हुआ है:

डॉ. सादिक अपने पीछे तीन बेटे एक बेटी और भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।
डॉ. सादिक अपने पीछे तीन बेटे एक बेटी और भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।

देश के दूसरे सर सैय्यद अहमद खान, शिक्षाविद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामी स्कॉलर मौलाना डॉ.कल्बे सादिक का इलाज के दौरान इंतेकाल हो गया। वो 81साल के थे। पिछले दो साल से वो बीमार चल रहे थे।

लखनऊ। देश के दूसरे सर सैय्यद अहमद खान, शिक्षाविद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामी स्कॉलर मौलाना डॉ.कल्बे सादिक का इलाज के दौरान इंतेकाल हो गया।

वो 81साल के थे। पिछले दो साल से वो बीमार चल रहे थे। निमोनिया होने पर इन्हें लखनऊ के एरा अस्पताल के आईसीयू में पांच दिन पहले भर्ती कराया था। यही पर डॉ.सादिक़ ने अंतिम सांस ली।डॉ. सादिक अपने पीछे तीन बेटे एक बेटी और भरापूरा परिवार छोड़ गए हैं।

उनके इंतकाल की सूचना उनके बेटे कल्बे सिब्तैन नूरी ने दी। उन्होंने बताया कि रात तकरीबन 10 बजे मौलाना कल्बे सादिक की मृत्यु हुई है।कोविड टेस्ट था निगेटिव: पांच दिन पहले मौलाना कल्बे सादिक की तबियत खराब हुई थी।

इसके बाद उन्हें एरा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरोंं ने बताया था कि उन्हें निमोनिया हुआ है। कोविड टेस्ट नेगेटिव आया था। उनका ब्लडप्रेशर और ऑक्सीजन का स्तर भी लगातार घट रहा था। जिसके बाद आज उन्होंने अंतिम सांस ली।

सभी के थे​ प्रिय: मौलाना कल्बे सादिक के बारे में कहा जाता है कि उनकी सर्वधर्म स्वीकार्यता थी। मौलाना धर्मकर्म के कामों के बीच पढ़ाई पर बहुत जोर दिया करते थे। उनके प्रयासों से तमाम संस्थान शुरू हुए। एरा मेडिकल कॉलेज, यूनिटी कॉलेज जैसे तमाम शिक्षण संस्थानों के वह फाउंडेशन मेम्बर रहे हैं।

उनकी सोच थी कि समाज मे गरीबी, अंधविश्वास, संकीर्णता, कुरीतियां और सांप्रदायिकता को सिर्फ अच्छी शिक्षा से ही खत्म किया जा सकता है। मौलाना कल्बे सादिक ने लखनऊ में घण्टाघर पर सीएए और एनआरसी के विरोध में चल रहे महिलाओं के धरना प्रदर्शन का समर्थन किया था और इसे काला कानून बताया था।

कता के मिशाल: विभिन्न धर्मों, जातियों और मुसलमानों के तमाम मसलकों की एकता स्थापित करने के प्रयास करने वाले डॉ. सादिक ने हमेशां अशिक्षित समाज में शिक्षा की अलख जलाने पर बल दिया। सर सय्यद अहमद खान की तरह डॉ.सादिक़ ने मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए इल्म की रोशनी फैलाने पर विशेष बल दिया। 

आरक्षण के थे खिलाफ:  सिख समाज की तारीफ करते हुए वो कहा करते थे कि इस अल्पसंख्यक कौम ने कभी भी आरक्षण नहीं लिया और वो मेहनत और संघर्षों से कतरा-कतरा हासिल करके तरक्की की रेस में आगे रहते हैं।मौलाना कल्बे सादिक अज्ञानता,

भ्रष्टाचार और गरीबी को देश की तरक्की की रुकावट मानते थे। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भी खूब तकरीरें दीं। उनका कहना था कि किसी भी किस्म के आतंकवाद का वास्ता किसी भी मजहब से नहीं हो सकता हां किसी भी तरह की सियासत से दहशतगर्दी का रिश्ता ज़रूर हो सकता है।


संबंधित खबरें