मौलाना फिरंगी का फतवा: कोई विकल्प नहीं तो पिग जिलेटिन से बनी वैक्सीन जायज

टीम भारत दीप |

शीर्ष इस्लामी निकाय ‘फतवा काउंसिल' ने पिग जिलेटीन से बनी कोरोना की वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है।
शीर्ष इस्लामी निकाय ‘फतवा काउंसिल' ने पिग जिलेटीन से बनी कोरोना की वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है।

इस बीच इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया (आईसीआई) के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली एक सवाल के जवाब में फतवा जारी करते हुए वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी है। मौलाना राशिद ने कहा कि यदि वैक्सीन में सुअर का गोश्त या चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है तब भी लोगों की जान बचाने के लिए इसका टीका लगवाना इस्लाम में जायज है।

लखनऊ। कोविड-19 को मात देने के लिए विश्व के सभी वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे है। कई देशों की वैक्सीन तैयार हो गई है तो कही अंतिम दौर में चल रही है।

इस बीच वैक्सीन को लेकर एक अलग तरह की बहस छिड़ी हुई है। दरअसल इस्लामिक धर्मगुरुओं में असमंजस है कि सुअर के मांस (पिग जिलेटिन) का इस्तेमाल कर बनाए गए कोविड-19 के टीके इस्लामिक कानून के तहत जायज हैं या नहीं।

इस बीच इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया (आईसीआई) के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली एक सवाल के जवाब में फतवा जारी करते हुए वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दी है। मौलाना राशिद ने कहा कि यदि वैक्सीन में सुअर का गोश्त या चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है तब भी लोगों की जान बचाने के लिए इसका टीका लगवाना इस्लाम में जायज है।

फतवा काउंसिल से भी मिल चुकी है मंजूरी

जानकारी के लिए बता दें कि अरब देशों के शीर्ष इस्लामी निकाय ‘फतवा काउंसिल' ने पिग जिलेटीन से बनी कोरोना की वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में पिग जिलेटीन से बनी कोरोना वैक्सीन को लेकर ऊहापोह की स्थिति है।

इसी संबंध में दरगाह हजरत शाहमीना शाह के सज्जादानशीं व मुतवल्ली शेख राशिद अली मीनाई ने इस्लामिक सेन्टर आफ इंडिया अध्यक्ष से सवाल पूछा था कि पिग जिलेटीन से बनी वैक्सीन हलाल है या नहीं। यह पता चला है कि चीन ने जो वैक्सीन बनाई है‚ उसमें सुअर की जिलेटीन का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में जो भी वैक्सीन भारत आएगी‚ उसे मुसलमान लगवा सकते हैं या नही?

मनुष्य का जीवन अनमोल है

मौलाना फिरंगी महली ने बताया कि इस्लाम जान बचाने को पहली प्राथमिकता देता है। मनुष्य का जीवन अनमोल है। अगर कोई और विकल्प नहीं है‚ तो कोरोना वायरस के टीके को इस्लामी पाबंदियों से अलग रखा जा सकता है।

मौलाना ने कहा कि दवा में सुअर जिलेटीन का इस्तेमाल होता है। इस मामले में पोर्क जिलेटीन को दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाना है न कि भोजन के तौर पर। ऐसे में दुनिया भर के मुसलमान इस वैक्सीन को लगवा सकते हैं।

भारत में उपलब्ध वैक्सीन में क्या होगा

अब तक सिर्फ फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका ने ही बताया है कि उनकी वैक्सीन जिलेटिन-फ्री है। बाकी वैक्सीन कंपनियों ने कंटेंट्स के बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं की है। भारत बायोटेक, जायडस कैडिला समेत अन्य कंपनियों ने भी यह नहीं बताया है।

इससे यह तो साफ है कि भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) में बन रही एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन पोर्क-फ्री होगी। इतना ही नहीं, भारत में इमरजेंसी अप्रूवल मांग रही फाइजर की वैक्सीन में भी पोर्क का इस्तेमाल नहीं हुआ है।

इंडोनेशिया से शुरू हुआ विवाद

वैक्सीन को लेकर सबसे पहले इंडोनेशिया में ही विरोध की शुरुआत हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी कंपनियों ने अपनी वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया है। लेकिन, अब भी कई मुस्लिम देशों में चीनी वैक्सीन इमरजेंसी यूज के तहत लगाए जा रहे हैं।

पाकिस्तान में चीनी कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स वैक्सीन के अंतिम स्टेज के क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। बांग्लादेश ने सिनोवेक बायोटेक की वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए एग्रीमेंट किया था। बाद में फंडिंग विवाद की वजह से यह ट्रायल्स टल गए।


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