नवरात्र: सहज भक्ति से प्रसन्न होती हैं मां कुष्मांडा, भक्त केवल इन कामों से करें परहेज

टीम भारत दीप |

सूर्यलोक में रहने की शक्ति-क्षमता केवल इन्हीं में है।
सूर्यलोक में रहने की शक्ति-क्षमता केवल इन्हीं में है।

सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। कुष्मांडा मां का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है।

धर्म डेस्क। आज नवरात्र का चैथा दिन है। इस दिन मां के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा होती है। श्रद्धालुओं ने आज मां के इसी रूप की पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आर्शीवाद मां कुष्मांडा से मांगा। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण मां को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। 

शास्त्रों में वर्णित है कि जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब देवी ने अपने ईशत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदि शक्ति कहा गया है। मां के इस स्वरूप में देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। 

इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। कुष्मांडा मां का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। पुरोहित रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं, इसलिए देवी को कुष्मांडा। 

मां कुष्मांडा का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति-क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। 

उन्होंने बताया कि अचंचल और पवित्र मन से नवरात्र के चैथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा-आराधना करने से भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है और आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। 

उन्होंने बताया कि विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः मां कुष्मांडा की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए। 

नवरात्र को लेकर पुरोहित रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि श्रद्धालुओं को नवरात्र के दिनों में कुछ कामों को भूलकर भी नहीं करना चाहिए नहीं तो मां क्रोधित हो जाती हैं और भक्तों को उनका कोपभाजन भी बनना पड़ सकता है। 

उन्होंने बताया कि अगर आप नवरात्र का व्रत रखने में असमर्थ हैं तो भी नौ दिनों तक अपने खान-पान पर विशेष नियंत्रण रखना चाहिए। इस दौरान मांस-मछली-मदिरा, लहसुन और प्याज जैसी चीजों का उपयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए।

देवी पुराण में भी उल्लेखित है कि मां भगवती उन्हीं की पूजा-अर्चना स्वीकार करती हैं, जो नारी का पूरा आदर-सम्मान करते हैं। नारी की इज्जत करने वालों से मां लक्ष्मी सदा प्रसन्न रहती हैं। देवी मां की पूजा शांति, श्रद्धा और प्रेम के साथ की जानी चाहिए। 

नवरात्रि के दिनों में घर में कलह, द्वेष और किसी का अपमान किए जाने पर घर में अशांति रहती है और बरकत भी नहीं होती। नवरात्र में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। नौ दिनों तक सूर्योदय के साथ ही स्नानकर स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए। इस दौरान काले रंग के परिधान न पहनें और न ही चमड़े की बेल्ट पहनें। 

नौ दिनों तक बाल, दाढ़ी और नाखून भी नहीं कटवाने चाहिए। मूक और बेबस पशु-पक्षियों को परेशान नहीं करना चाहिए।  इनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था अवश्य करें। मां दुर्गा का वाहन भी एक पशु ही है। यदि घर में कलश की स्थापना की है तो मान लीजिए कि आपने देवी को घर पर आमंत्रित किया है। 

अतः दोनों समय उनकी पूजा-आरती करें और नैवेद्य चढ़ाना न भूलें। अगर आपने नौ दिनों का उपवास रखा है तो पति-पत्नी से दूरी बनाकर रखें। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें। मां भगवती की पूजा-अर्चना शुद्ध एवं पवित्र मन से करनी चाहिए। 

दिन में ईश्वर का पाठ करें।  प्रातः स्नान-ध्यान कर पड़ोस के लोगों या परिजनों के साथ कीर्तन, रामायण-पाठ इत्यादि करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करे तो सबसे उत्तम है।

कानुपर में है मंदिर 
उत्तर प्रदेश में कानपुर के घाटमपुर में मां कुष्मांडा देवी का करीब 1000 साल पुराना मंदिर है। यहां मां को लेटा हुआ विग्रह है। पिंड के रूप में इस विग्रह से लगातार पानी रिसता रहता है। यह पानी आता कहां से है, ये अभी रहस्य है। मान्यता है कि इस जल को ग्रहण करने से जटिल से जटिल रोग दूर हो जाता है। 

बताया जाता है कि 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने इस मंदिर की नींव रखी थी। 1890 में घाटमपुर के कारोबारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण कराया था। 


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