अयोध्या में हरियाली तीज पर चांदी के झूले पर विराजमान हुए रामलला, दर्शन को लगी कतार

टीम भारत दीप |

जिला प्रशासन को झूलनोत्सव पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए श्रद्धालुओं के शामिल होने पर रोक लगानी पड़ी है।
जिला प्रशासन को झूलनोत्सव पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए श्रद्धालुओं के शामिल होने पर रोक लगानी पड़ी है।

आपकों बता दें कि रामलला को चांदी का भव्य झूला श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने दिया है। जो 21 किलो वजन का व 4 फिट ऊंचा है। इस झूलन पर मोर व भगवान सूर्य बने हुए हैं। इससे पहले रामलला लकड़ी के झूले पर बैठते थे। रामादल ट्रस्ट के अध्यक्ष कल्किराम हर पर्व पर रामलला को वस्त्र भेंट करते हैं

अयोध्या। अयोध्या में नागपंचमी के अवसर पर भगवान श्रीरामलला चांदी के भव्य झूले पर झूल रहे है।प्रभु के दर्शन करने सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।  शुक्रवार को सुबह 7 बजे पूजन-अर्चन के बाद रामलला को झूले पर बैठाया। गया।

रामलला के ठाठ को देख मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास भावुक हो उठे। उन्होंने कहा कि रामलला को इस रूप में देखकर उन्हें अपार सुख मिला है। उनका जीवन धन्य हो गया है।

पहले लकड़ी के झूलन पर बैठते थे रामलला

आपकों बता दें कि रामलला को चांदी का भव्य झूला श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने दिया है। जो 21 किलो वजन का व 4 फिट ऊंचा है। इस झूलन पर मोर व भगवान सूर्य बने हुए हैं। इससे पहले रामलला लकड़ी के झूले पर बैठते थे।

रामादल ट्रस्ट के अध्यक्ष कल्किराम हर पर्व पर रामलला को वस्त्र भेंट करते हैं। उन्होंने कहा कि सब कुछ तो भगवान का ही है। हम उन्हें क्या दे सकते हैं पर यह हम सब का भाव है कि भगवान की अनेक प्रकार से सेवा कर हम खुद आनंद का अनुभव करते हैं।

झूलन दर्शन से जीवन -मरण के झूले से मुक्ति मिलती है

धार्मिक मान्यता है कि सावन में हरियाली तीज से शुरू हुए झूलन उत्सव में भगवान को झूला झुलाने या उनके झूलन दर्शन से जीवन मरण के झूले से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रद्धालु मंदिरों में झूला झुलाते हैं।

भगवान के दर्शन करते हैं और अपने जीवन को सफल बनाने की कामना करते हैं। हालांकि बीते 2 सालों से अयोध्या में झूलनोत्सव पर्व में कोविड-19 का असर पड़ा है। जिला प्रशासन को झूलनोत्सव पर्व में जुटने वाली भीड़ को देखते हुए श्रद्धालुओं के शामिल होने पर रोक लगानी पड़ी है।

ऐसे बना मणि पर्वत

ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जब विवाह के बाद मां सीता को अयोध्या लेकर आए तो महाराजा जनक ने उपहार स्वरूप मणियों की श्रृंखला भेंट किया था। जिसको महाराजा दशरथ ने विद्या कुंड के पास रखवा दिया। इतनी ज्यादा मणियां थी कि वहां मणियों का पहाड़ बन गया।

जो आज मणि पर्वत के रूप में प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक मणि पर्वत पर भगवान श्री राम मां सीता के साथ श्रावण मास में तृतीया तिथि हरियाली तीज के दिन झूला लगा कर झूला झूलते थे। त्रेता युग से शुरू हुई झूलनोत्सव परंपरा आज कलयुग में भी चली आ रही है। इस बार कोविड 19 के प्रतिबंधों के चलते केवल मणिपर्वत मंदिर का झूला चल रहा है।

श्रद्धालु इस बार पहले की तरह भगवान श्रीरामलला को झूला पर देखने के लिए बहुत कम संख्या में पहुंच रहे हैं। झूलनोत्सव की समाप्ति रक्षा बंधन के दिन श्रावण पूर्णिमा को होगी। जिला प्रशासन ने मेले में बिना आरटीपीसीआर निगेटिव रिपोर्ट के अयोध्या आने पर रोक लगा दी है, इससे कम संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे है।

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