प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने करे गोवर्धन पूजा, जानिए पूजन विधि और शुभ मुहुर्त

टीम भारत दीप |

उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ ।
उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ ।

ज्योतिषाचार्य सर्वेश दुबे ने बताया कि गोवर्धन पूजा का जिक्र पुराणों में है। बात उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण माता यशोदा के साथ ब्रज में रहते थे। उस समय अच्छी बारिश के लिए सभी लोग भगवान इंद्र का पूजा अर्चना करते थे। एक वर्ष भगवान श्रीकृष्ण ने ठान लिया कि वो इंद्र का घमंड तोड़ कर रहेंगे।

आगरा। दीपोत्सव पांच दिन का त्योहार होता है। दीपावली के दिन माता लक्ष्मी के पूजन के साथ मनाया जाता है। पर दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा विधि विधान से होती है।

गोवर्धन पूजा वाले दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा भी होती है, साथ ही गाय के गोबर से गोवर्धन देव बनाकर उन्हें पूजने की परंपरा है। गोर्वधन पूजा ब्रजवासियों ने भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर शुरू की थी।

मान्यता है कि भगवान ने ब्रजवासियों को इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था। क्योंकि वहीं से ही पूरे ब्रज की गायों को चारा मिलता था।

इस दिन गाय बैल को स्नान कराकर उन्हें सजा कर  गुड़ और चावल मिलाकर खिलाये जाते है। गोवर्धन की पूजा कर लोग प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग भी लगाया जाता हैं।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

ज्योतिषाचार्य सर्वेश दुबे ने बताया कि गोवर्धन पूजा का जिक्र पुराणों में है। बात उस समय की है जब भगवान श्रीकृष्ण माता यशोदा के साथ ब्रज में रहते थे। उस समय अच्छी बारिश के लिए सभी लोग भगवान इंद्र का पूजा अर्चना करते थे।

एक वर्ष भगवान श्रीकृष्ण ने ठान लिया कि वो इंद्र का घमंड तोड़ कर रहेंगे और सभी से इंद्र के पूजन की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा। सबने श्री कृष्ण की बात मान तो ली पर डर सभी को इंद्र के कोप का था।

पूजा अर्चना नहीं होने से भगवान इंद्र देव का नाराज होकर तेज बारिश करने का आदेश दे दिया, इससे ब्रज में चारों तरफ पानी भर  गया। ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और सभी लोगों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली।

जब तक इंद्र का क्रोध बरसता रहा भगवान मुस्कान के साथ पर्वत को अपनी उंगली पर थामे रहे और पूरा ब्रज वहीं पर शरण लेकर रहता रहा। जब इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उनका कोप शांत हुआ। माना जाता है उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक चला आ रहा है।

गोर्वधन पूजा की विधि

सबसे पहले गाय के गोबर से चौक और पर्वत बनाएं। इसके बाद इसे अच्छी तरह सुंदर फूलों से सजाएं। अब रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान,  रखें और दीप जलाकर भगवान गोवर्धन की पूजा करें। 

जब पूजा संपन्‍न हो जाए तो भगवान गोवर्धन की सात बार परिक्रमा जरूर करें। इस दौरान ध्‍यान रखें कि आपके हाथों में जल जरूर होना चाहिए। जल को किसी लोटे में लेकर इस तरह परिक्रमा करते रहें कि जल थोड़ा-थोड़ा गिरता जाए। गोवर्धन पूजा जब संपन्‍न हो जाए तो अन्‍नकूट का प्रसाद चढ़ाएं। इसे घर के सभी लोगों को दें।

गोवर्धन पूजा  मुहूर्त

कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 5 नवंबर सुबह 2 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर रात 11 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। 
 सुबह पूजा का मुहूर्त - सुबह 6 बजकर 36 मिनट से 8 बजकर 47  मिनट तक 
शाम का मुहूर्त - दोपहर 3 बजकर 22 मिनट से शाम 5 बजकर 33 मिनट तक

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