यूपी का रण: सपा-रालोद गठबंधन में टिकटों के बंटवारे को जानिए क्यों ठगा सा महसूस कर रहे है कार्यकर्ता

टीम भारत दीप |

दोनों दलों के प्रदर्शन की तुलना करें तो सपा को सात और रालोद को छह सीटें मिलीं।
दोनों दलों के प्रदर्शन की तुलना करें तो सपा को सात और रालोद को छह सीटें मिलीं।

रालोद को मेरठ में कैंट सीट मिली है जिसमें एक दिन पूर्व पार्टी में शामिल हुईं मनीषा अहलावत जैन को उम्मीदवार बनाया गया है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि इससे कहीं अच्छा गठबंधन वर्ष 2002 में भाजपा के साथ हुआ था जब पार्टी को 34 सीटें मिली थीं और 14 विधायक जीतकर पहुंचे थे।

मेरठ। यूपी की सत्ता से बीजेपी को बाहर करने के लिए सपा और रालोद के बीच हुए गठबंधन से कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। सपा पर एकतरफा निर्णय लेकर सात में पांच सीटों पर मनमाने ढंग से प्रत्याशी उतारने का आरोप लग रहा है।

किसानों से जुड़े मुद्दों को उठाने का दावा करने वाले रालोद का जनाधार ग्रामीण और कस्बाई अंचल में ज्यादा माना जाता है। रालोद कार्यकर्ताओं की पीड़ा है कि खांटी शहरी समझी जाने वाली कैंट विधानसभा सीट रालोद को थमाकर सपा ने उसके साथ खेला किया है, जबकि रालोद के वोटर गांवों में बसते है। 

मनीषा अहलावत जैन प्रत्‍याशी

रालोद को मेरठ में कैंट सीट मिली है जिसमें एक दिन पूर्व पार्टी में शामिल हुईं मनीषा अहलावत जैन को उम्मीदवार बनाया गया है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि इससे कहीं अच्छा गठबंधन वर्ष 2002 में भाजपा के साथ हुआ था

जब पार्टी को 34 सीटें मिली थीं और 14 विधायक जीतकर पहुंचे थे। बागपत की तीन सीटों समेत मेरठ की सिवालखास सीट रालोद के खाते में गई थी और चारों में जीत हासिल हुई थी। बुधवार को छपरौली से वीरपाल का टिकट काटकर जिन अजय कुमार को टिकट दिया गया है, वह भी उस समय जीते थे और सिवालखास से रणवीर राणा विजयी हुए थे।

सिवालखास में सपा अपना दावा इसलिए मजबूत बता रही है कि वर्ष 2017 में गुलाम मोहम्मद दूसरे स्थान पर रहे थे और 2012 में उन्होंने जीत हासिल की थी। रालोद के यशवीर चौधरी को साढ़े तीन हजार वोटों के मामूली अंतर से हराया था।

उस हार के पीछे पार्टी के भितारघातियों का हाथ बताया जाता है। हाल में हुए जिला पंचायत चुनावों पर नजर डालें और दोनों दलों के प्रदर्शन की तुलना करें तो सपा को सात और रालोद को छह सीटें मिलीं।

पार्टी में पनप रहा आक्रोश

किसान आंदोलन ने पार्टी को मेरठ में संजीवनी दी मगर प्रभाव वाली सीटों में से एक पर दावेदारी न मिलने से पार्टी में आक्रोश पनप रहा है। सिवालखास के अलावा रालोद ने हस्तिनापुर, सरधना, मेरठ दक्षिण से टिकट मांगा था। इन सीटों पर सपा का कोई प्रत्याशी 2017 में जीता भी नहीं था, इसके बावजूद रालोद को कोई टिकट नहीं मिला। इससे वषों से जुड़े रालोद कार्यकर्ता मायूस हैं।

इसे भी पढ़ें...


संबंधित खबरें