बालमन पर यूं पड़ रहा कोरोनाकाल का साइड इफेक्ट, बच्चों में आ रही ये समस्याएं, अध्ययन में हुआ खुलासा

टीम भारत दीप |

एनसीपीसीआर के अध्य्यन में कई खुलासे हुए हैं।
एनसीपीसीआर के अध्य्यन में कई खुलासे हुए हैं।

बच्चों की आनलाइन क्लासेज भी संचालित हो रही हैं। लेकिन इसका भी कुछ अलग ही असर सामने आ रहा है। बच्चों का पढ़ाई में मन लगने के बजाय वह स्मार्ट फोन पर एंटरटेनमेंट करना ज्यादा पसंद कर रहे है। जिसके बच्चों पर दुष्प्रभाव भी पड़ रहे है। साथ ही बच्चों में कई तरह की समस्या भी देखी जा रही है।

 लखनऊ। कोरोना के त्रासदी के बीच इसका बाल मन पर खासा प्रभाव देखा जा रहा है। दरअसल करीब डेढ बरस का समय बीच चुका है। बच्चों के स्कूल बंद है। ऐसे में आनलाइन पढ़ाई पर जोर दिया जा रहा है। बच्चों की आनलाइन क्लासेज भी संचालित हो रही हैं। लेकिन इसका भी कुछ अलग ही असर सामने आ रहा है। बच्चों का पढ़ाई में मन लगने के बजाय वह स्मार्ट फोन पर एंटरटेनमेंट करना ज्यादा पसंद कर रहे है।

जिसके बच्चों पर दुष्प्रभाव भी पड़ रहे है। साथ ही बच्चों में कई तरह की समस्या भी देखी जा रही है। दरअसल हाल में एक अध्ययन में ये बातें सामने आई। यह अध्ययन बच्चों के मोबाइल फोन यूज करने को लेकर हुआ है। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) की स्टडी में पाया गया कि देश में 30.20 फीसदी बच्चों के पास अपने स्मार्ट फोन हैं।

इनमें से 10.10 फीसदी बच्चे ही इसका इस्तेमाल आनलाइन पढाई या एजुकेशन के लिए कर रहे हैं। जबकि 59.20 फीसदी बच्चे पढ़ाई से ज्यादा मैसेजिंग ऐप्स में रूचि दिखा रहे हैं। अध्ययन में बताया गया कि 10 साल के 37.80 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है, जबकि 24.30 फीसद बच्चे इंस्टाग्राम पर अपना अकाउंट बनाए हुए है।

बता दें फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अकाउंट खोलने के लिए न्यूतम उम्र 13 बरस निर्धारित है। अध्ययन में पाया गया कि 13 बरस से ज्यादा उम्र के किशोरों में खुद का स्मार्टफोन यूज करने का ट्रेंड लगातार बढ़ रहा है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि ज्यादातर बच्चे अपने माता—पिता के फोन के जरिए सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर अपनी पहुंच बनाए हुए हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक जहां 29.70 फीसदी बच्चों को लगता है कि कोरोना महामारी का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है तो वहीं 43.70 फीसदी बच्चों का मानना है कि इससे उनकी शिक्षा पर बहुत कम नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वहीं रिपोर्ट्स में कहा गया कि आनलाइन लर्निंग बहुत अच्छी साबित नहीं हुई है। बताया गया कि इस अध्ययन में कुल 5,811 प्रतिभागी शामिल रहे।

इनमें 3,491 बच्चे,1,534 अभिभावक तथा 786 शिक्षक व 60 स्कूलों को शामिल किया गया था।

नींद न आने की बढ़ रही समस्या
अध्ययन में 8 से 18 उम्र के बच्चे और किशोरों को शामिल किया गया था। इनकी औसत उम्र 14 के करीब रही। बताया गया कि सोशल मीडिया एक्सेस करने पर उन पर दुष्प्रभाव भी पड़ रहे हैं। अध्ययन में सामने आया कि सोने से पहले मोबाइल के प्रयोग के कारण बच्चों में नींद न आने, चिन्तित रहने व थकान जैसी समस्याएं पैदा हो रही है।

डाक्टर की ये है सलाह
इस बाबत एशिया के प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में शुमार यूपी की राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय(केजीएमयू) के डॉ. आदर्श त्रिपाठी बताते हैं कि यह समस्या चिन्ताजनक है। उनके मुताबिक बच्चों में इंटरनेट सिंड्रोम या गेमिंग,सोशल मीडिया जैसी लत आगे चलकर गंभीर समस्या बन सकती है।

उन्होंने बताया कि ऐसे में अभिभावकों के लिए जरूरी है कि वे आनलाइन पढ़ाई अपनी निगरानी में करवाएं। साथ ही स्क्रीन टाइम को कम से कम करें। ऐसे में मनोवैज्ञानिक की भी सलाह ली जा सकती है।
 


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