उपराष्ट्रपति ने पत्रकारिता के भविष्य पर जताई चिन्ता, कही ये बातें

टीम भारतदीप |

पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर बुरा असर पड़ा है।
पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर बुरा असर पड़ा है।

सार्वजनिक धारणाओं और दृष्टिकोणों को आकार देने के लिए मीडिया की क्षमता का उल्लेख करते हुए उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि वे समाधान का हिस्सा बनें न कि समस्या का । क्योंकि हर नागरिक, सरकार और अन्य हितधारकों की तरह, राष्ट्र के प्रति मीडिया की भी एक निश्चित जिम्मेदारी है।

नई दिल्ली। देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने मीडिया और पत्रकारिता के भविष्य पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट के आने से फटाफट खबरें देने पर जोर दिया जा रहा है। इससे सच्ची खबर और फेक न्यूज में अंतर करना मुश्किल होता है जोकि चिंता का विषय है।

उपराष्ट्रपति शुक्रवार को हैदराबाद से वर्चुअल माध्यम से ‘पत्रकारिता-कल, आज और कल’ विषय पर आयोजित छठे एमवी कामथ इन्डावमेंट लेक्चर को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि इंटरनेट के आने से परम्परागत पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है।

पहले प्रिंट मीडिया में खबर को विकसित होने के लिए 24 घंटे का समय मिलता था। आज समय ब्रेकिंग न्यूज पत्रकारिता का है और इसमें फटाफट खबरों पर जोर है। ऐसे में असली खबर और नकली फेक न्यूज में अंतर करना मुष्किल होता जा रहा है।

ये चिंता का विषय है। श्री नायडू ने कहा कि सूचना तकनीक में विकास और उसके फलस्वरूप सूचना के लिए बढ़ती भूख के लिए ये बहुत बड़ी कीमत है। उन्होंने पाठकों और दर्शकों की संख्या को बढ़ाने के लिए पीत पत्रकारिता पर चिंता जताते हुए कहा कि पीत पत्रकारिता के बढ़ने से पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर बुरा असर पड़ा है।

आगे उन्होंने कहा कि पीत पत्रकारिता सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले समाचार या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का सहारा लेकर तथ्यों को बदल देना चाहती है।  विकृत और गलत सूचना को बढ़ावा देती है। इससे मीडिया जगत को बचने की उन्होंने सलाह दी। 

उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया द्वारा तैयार सूचना और रिपोर्टों को सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा हाईजैक किया जा रहा है जोकि अनुचित है। कुछ देश प्रिंट मीडिया के साथ सोशल मीडिया दिग्गजों द्वारा राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं।

हमें भी इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने और पारंपरिक मीडिया के अस्तित्व के लिए उपयुक्त राजस्व साझाकरण मॉडल के साथ आने की जरूरत है। समाचार पत्रों की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए श्री वेंकैया ने कहा कि 20वीं शताब्दी में रेडियो और टेलीविजन के बाद भी समाचार पत्रों के पाठकों में कमी नहीं आई थी।

उन्होंने कहा कि इंटरनेट के वर्तमान युग के दौरान भी, लाखों लोग हैं जो एक कप कॉफी और अखबार के साथ उठना पसंद करते हैं और वह स्वयं उनमें से एक हैं। सार्वजनिक धारणाओं और दृष्टिकोणों को आकार देने के लिए मीडिया की क्षमता का उल्लेख करते हुए उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि वे समाधान का हिस्सा बनें न कि समस्या का ।

क्योंकि हर नागरिक, सरकार और अन्य हितधारकों की तरह, राष्ट्र के प्रति मीडिया की भी एक निश्चित जिम्मेदारी है। उन्होंने मीडिया को विकास के मुद्दे पर फोकस करने की सलाह दी।
 


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