पीरियड्स के मुश्किल दिनों में भी लगवा सकती हैं कोरोना वैक्सीन, इसलिए न घबराएं

टीम भारत दीप |
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माहवारी  के दरम्यान इम्यूनिटी कम नहीं होती है।
माहवारी के दरम्यान इम्यूनिटी कम नहीं होती है।

क्वीन मेरी हॉस्पिटल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस.पी.जैसवार बताती हैं कि माहवारी का कोविड के टीके से कोई संबंध नहीं है। माहवारी के समय भी टीका लगाया जा सकता है। यदि टीका लगाने के बाद टीके की जगह दर्द हो या बुखार हो तो पैरासिटामाल की गोली खा सकते हैं।

लखनऊ। प्रत्येक वर्ष 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छ्ता दिवस मनाया जाता है। इस बार इस दिवस की थीम है –“We need to step up action and investment in menstrual health and hygiene now” अर्थात अब माहवारी स्वच्छता और  स्वास्थ्य में कार्रवाई और निवेश को आगे बढ़ाने की जरूरत है। मौजूदा समय में कोरोना का कहर चारों ओर फैला हुआ है।

कोरोना को मात देने के लिए कोविड टीकाकरण अभियान भी सरकार द्वारा चलाया जा रहा है और अब तो 18 वर्ष से अधिक के युवाओं को टीका लगना शुरू हो गया है। ऐसे में किशोरियों के मन में यह सवाल है कि माहवारी के समय में टीका लगवाना चाहिए या नहीं, जोरो से कौंध रहा है।

इस सम्बन्ध में क्वीन मेरी हॉस्पिटल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एस.पी.जैसवार बताती हैं कि माहवारी का कोविड के टीके से कोई संबंध नहीं है। माहवारी के समय भी टीका लगाया जा सकता है। यदि टीका लगाने के बाद टीके की जगह दर्द हो या बुखार हो तो पैरासिटामाल की गोली खा सकते हैं। डॉ.जैसवार के मुताबिक माहवारी के दरम्यान इम्यूनिटी कम नहीं होती है।

उनके मुताबिक माहवारी स्वच्छता व प्रबंधन के बारे में महिलाओं और किशोरियों को जानकारी देना बहुत जरूरी है। जिससे कि वह सशक्त हों। उनमें आत्मविश्वास जागे और वह माहवारी प्रबंधन के लिए उपलब्ध साधनों के बारे में और उपयोग के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय ले सकें।

बताया गया कि इसके लिए विद्यालयों के पाठ्यक्रम, नीतियों और कार्यक्रम में माहवारी स्वच्छता से सम्बंधित जानकारी शामिल करायी जानी चाहिए। डॉ. एस.पी.जैसवार के मुताबिक समाज में लड़कों, पुरुषों, शिक्षकों व स्वास्थ्य कर्मचारियों को इससे सम्बंधित जानकारी उपलब्ध करानी चाहिए। जिससे कि उन्हें माहवारी से जुड़े नकारात्मक मानदंडों के सम्बन्ध में सही जानकारी हो पाए।

और वह इन्हें दूर करने में मदद कर सकें। उन्होंने बताया गया कि आज भी समाज में मासिक धर्म के दौरान महिलायें दैनिक कार्यों, स्कूल व कार्यस्थल पर नहीं जा पाती हैं। इसका मुख्य कारण माहवारी से से जुड़े हुए अनेक मिथक, भ्रांतियां तथा बुनियादी ढांचे की कमी जैसे शौचालय और हाथ धोने की सुविधाओं आदि की कमी है।

डॉ. जैसवार के मुताबिक माहवारी के दौरान स्वच्छता के अभाव में प्रजनन प्रणाली के संक्रमित (आरटीआई) होने की सम्भावना बढ़ जाती है| बताया गया कि इसी कारण विद्यालयों, सार्वजनिक स्थानों व कार्यस्थलों में स्वच्छता से जुड़ी चीजें, जैसे उपयुक्त शौचालय, साबुन ,पानी और माहवारी में इस्तेमाल पैड के  सही तरीके से निस्तारण की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि माहवारी के पांच दिनों में यदि हम सुरक्षित प्रबंधन नहीं करते हैं तो पेशाब की थैली, नली व बच्चेदानी में संक्रमण हो सकता है और आगे चलकर बच्चेदानी के मुंह में सिस्ट व घाव हो सकता है। बांझपन एवम् एक्टोपिक प्रेगनेंसी  (बच्चेदानी की नली में बच्चा ) भी हो सकता है। बताया गया कि लंबे समय तक संक्रमण मृत्यु का कारण भी बन सकता है।

उन्होंने बताया कि इन दिनों में संक्रमण से बचने के लिए नियमित नहाना चाहिए। नहाते समय अपने जननांगों को पानी से अच्छे से साफ़ करना चाहिए और सूती कपड़े से पोंछना चाहिये।माहवारी के दौरान सूती कपड़े के पैड का उपयोग सबसे अच्छा रहता है। हर 24 घंटे में कम से कम 2 बार पैड बदलने चाहिए। पैड बदलने के समय जननांग को पानी से धोकर सुखाना चाहिए।

क्या होती है माहवारी ? 
डॉ.एस.पी.जैसवार ने बताया गया कि माहवारी लड़की के जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसमें योनि से रक्तस्राव होता है। माहवारी लड़की के शरीर को माँ बनने के लिए तैयार करती है। लड़की की पहली माहवारी 9-13 वर्ष के बीच कभी भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि हर लड़की के लिए माहवारी की आयु अलग-अलग होती है। हर परिपक्व लड़की की 28-31 दिनों के बीच में एक बार माहवारी होती है।

माहवारी का खून गन्दा या अपवित्र नहीं होता है। यह खून गर्भ ठहरने के समय बच्चे को पोषण प्रदान करता है। कुछ लड़कियों को माहवारी के समय पेट के निचले हिस्से में दर्द, मितली और थकान हो सकती है। यह घबराने की बात नहीं है।

इन बातों का  रखें ध्यान
डॉ. जैसवार का कहना है यदि अत्यधिक रक्तस्राव हो या पेट में अत्यधिक दर्द हो तो प्रशिक्षित चिकित्सक को दिखाना चाहिए। संक्रमण से बचने के लिए रक्त या स्राव के संपर्क होने पर शरीर को अच्छे से साबुन व पानी से धोना चाहिये। माहवारी में उपयोग किये गए पैड या कपड़े को खुले में नहीं फेंकना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से उठाने वाले व्यक्ति में संक्रमण का खतरा हो सकता है।

उन्होंने बताया कि हमेशा पैड को पेपर या पुराने अखबार में लपेटकर फेंकना चाहिये या जमीन में गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिये। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार भारत में  में 15-24 वर्ष की 57.6 % महिलायें माहवारी के दौरान हाइजिन विधियों को अपनाती हैं जबकि उत्तर प्रदेश में इनका प्रतिशत 47.1 है।


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